20 दिसंबर 2014

मां को दिया वायदा पूरा करने के लिये जख्मों की परवाह न करते हुये पढ़ी गुंजन कामरा

डबवाली (लहू की लौ) मां से वायदा किया था, एक दिन डॉक्टर बनूंगी। अग्निकांड में मां तथा दादी को खो दिया। उससे मुझे जो जख्म मिले, वह वायदे से बढ़कर नहीं थे। मुझे वायदा पूरा करने पर खुशी है। गम इस बात का है कि वह आज इस दुनियां में नहीं, जिससे वायदा किया था। यह कहना है गुंजन कामरा का। अग्निकांड से पीडि़त गुंजन कामरा शहर की ऐसी पहली लड़की है, जो लड़कों को पछाड़कर चिकित्सक बनी। आज यह पीडि़ता ऑस्ट्रेलियन को चिकित्सीय सेवाएं दे रही है।
23 दिसंबर 1995 को गुंजन अपने पिता मुकेश कामरा, मां नरेश उर्फ प्रीति कामरा, भाई वरूण कामरा के साथ डीएवी स्कूल का वार्षिक कार्यक्रम देखने के लिये राजीव मैरिज पैलेस में गई थी। उन दिनों गुंजन का एमबीबीएस के लिये कर्नाटक स्थित हुबली में एडमिशन हुआ था। वहीं डीएवी स्कूल की प्रिंसीपल उनकी मां नरेश कामरा ही थीं। गुंजन तथा मुकेश कामरा आग में झुलसने के बाद बाहर आ गये। वरूण भी अपनी मां नरेश कामरा के साथ बाहर आ गया थे। मैरिज पैलेस से सही सलामत बाहर आने के बावजूद प्रिंसीपल नरेश कामरा बच्चों को आग में जलता नहीं देख सकी। वह बच्चों को बचाने के लिये दौड़ी। लेकिन उनके पति मुकेश कामरा ने उनकी बाजू पकड़ ली। अपने पति की बाजू छुड़वाते हुये वह बच्चों को बचाने के लिये आग के दरिया में कूद गई। लेकिन वापिस नहीं लौटी। आग में झुलसने के बाद गुंजन तथा मुकेश कामरा को डीएमसी लुधियाना में लेजाया गया। आग में 25 से 30 फीसदी तक झुलसने के बाद गुंजन तीन माह तक उपचाराधीन रही।
पांच साल तक चला उपचार
आग में झुलसने के बावजूद गुंजन एमबीबीएस करने के साथ-साथ करीब पांच साल तक उपचार लेती रही। वर्ष 2000 में एमबीबीएस की डिग्री हाथ में आई। वर्ष 2002 में गुंजन की शादी बंगलुरू निवासी साईकोट्रिस्ट प्रसून्न से हुई। बंगलुरू में एक साल तक प्रेक्टिस करने के बाद वर्ष 2004-06 में पेथोलॉजी की डिग्री प्राप्त की। बाद में अपने पति के साथ जुलाई 2006 में ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गई।
ऑस्ट्रेलिया ने सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक के अवार्ड से नवाजा
भारत में चिकित्सीय डिग्री लेकर ऑस्ट्रेलिया गई इस अग्निकांड पीडि़ता ने वहां भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सा सेवाएं देने के लिये उसने एक वर्ष तक कड़ी मेहनत की। बाद में उसका इग्जाम हुआ। जिसमें उसने करीब 80 फीसदी से ऊपर अंक प्राप्त किये। ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय क्षेत्र मे सरकारी जॉब मिलने पर गुंजन ने फिजिशयन के तौर पर टैंमब्रथ सिटी में कार्य शुरू किया। ऑस्ट्रेलियन सरकार ने उसे वर्ष 2012 की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक के अवार्ड से नवाजा। इन दिनों वह क्वींसलैंड (ब्रिसबेन) में कार्यरत है। डबवाली अग्निकांड को 19 वर्ष बीत चुके हैं। यह पहला मौका है कि गुंजन डबवाली में है। वह तीन साल बाद भारत लौटी है। हादसे के बाद पहली बार वह अग्निकांड स्मारक पर कदम रखेगी।
प्रतिदिन कमा रही 1000 डॉलर
ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय सेवा दे रही गुंजन काम के बदले प्रतिदिन 1000 डॉलर कमा रही है। अगर इसकी तुलना भारतीय मुद्रा से की जाये तो वह हर रोज 63 हजार रूपये से ज्यादा कमा रही है। गुंजन के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में पैसा काम के बदले मिलता है। जिस दिन काम नहीं, उस दिन वेतन नहीं। यहीं नहीं ऑस्ट्रेलिया में पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप के तहत काम किया जा सकता है।
आज भी सताता है अग्निकांड का दर्द
गुंजन के अनुसार अग्निकांड का दर्द उसे हमेशा सताता है। वह इतना आग में नहीं झुलसी थी। लेकिन गलत चिकित्सीय सेवा मिलने के कारण उसके जख्म बढ़ गये। उसे हाथों पर ग्राफटिंग करवानी पड़ी। अग्निकांड पीडि़ता के अनुसार आज भी चिकित्सीय सेवाओं का अभाव है। मैं मानती हूं कि प्रत्येक मेडिकल संस्थान में बर्न यूनिट स्थापित नहीं किया जा सकता। लेकिन ऑस्ट्रेलिया की तरह टेली कांफ्रेंसिंग की जा सकती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों से संबंधित मरीज का पूरा बायोडाट शेयर करके उपचार किया जा सकता है।
अग्निकांड पीडि़तों की काऊंसलिंग जरूरी
ऑस्ट्रेलिया की बेहतरीन चिकित्सकों शुमार इस अग्निकांड पीडि़ता का कहना है कि वह चाहे दुनिया के किसी भी कोने में चली जाये, उसे हमेशा अग्निकांड का दर्द सताता रहेगा। अग्निकांड में ऐसे परिवार भी आये, जिनकी आर्थिक हालत इतनी बेहतर नहीं थी, जो आज तक भी इससे उभर नहीं पाये हैं। कुछ ऐसे परिवार थे, जिनकी आर्थिक हालत बेहतर थी, उन परिवारों के युवा बेशक आगे बढ़ गये हैं। मेरा मानना है कि अग्निकांड पीडि़तों की काऊंसलिंग होनी चाहिये। वर्तमान समय में काऊंसलिंग करके ही उनकी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
दादी गई थी, बाद में पता चला
गुंजन का कहना है कि मां को दिया वायदा बेशक पूरा हो गया। लेकिन वो आज इस दुनियां में नहीं हैं। 23 दिसंबर 1995 को उसके भाई ने कार्यक्रम में भागीदारी की थी। अपने पोते को कार्यक्रम करता देखने के लिये दादी रेशमा देवी उनसे पहले ही बिना बताये चली गई। उनकी मृत्यु की खबर हादसे के आठ दिन बाद लगी।

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