31 जनवरी 2011

बहू ने अपना लीवर देकर बचाई सास की जान

Indira Khurana

Parveen Khurana

डबवाली (लहू की लौ) आम तौर पर टीवी में सास बहू की झगड़ते हुए दिखाया जाता है। प्राय: समाज में भी यह धारणा है कि सास और बहू में कभी बन नहीं सकती। लेकिन इसके विपरीत एक बहू ने इस किदवंती को केवल झुठलाया ही नहीं बल्कि सास को अपना लीवर देकर उसकी जान भी बचा डाली।
डबवाली के देसाई बीड़ी विक्रेता भगवान दास मोंगा की बेटी प्रवीण (35) सिरसा में हर्ष खुराना के साथ विवाहिता है। उसकी सास इन्दिरा खुराना (61) सावन पब्लिक स्कूल में पिं्रसीपल है। सन् 2006 में इन्दिरा खुराना बीमार हुई और उसे इलाज के लिए कई बड़े अस्पतालों में ले जाया गया। लेकिन उसकी हालत बिगड़ती गई। अक्तूबर 2010 में उसे अपोलो हॉस्पीटल दिल्ली में इलाज के लिए ले जाया गया।
अपोलो अस्पताल दिल्ली के सर्जन डॉ. सुभाष गुप्ता ने बताया कि इन्दिरा खुराना का लीवर खराब हो चुका है और उसे बदलने की जरूरत है। इसके लिए किसी का लीवर चाहिए। इस की जानकारी जैसे ही प्रवीण को मिली तो उसने अपनी सास के लिए लीवर देना स्वीकार किया। इस संबंध में डाक्टर ने भी प्रवीण को कई बार पूछा कि उसने यह निर्णय किसी दबाब में तो नहीं लिया। लेकिन प्रवीण के यह कहने पर कि वह अपनी इच्छा से यह काम कर रही है। इस पर डाक्टर ने 10 जनवरी 2011 को प्रवीण से 60 प्रतिशत लीवर लेकर इन्दिरा खुराना में डाल दिया। इस ऑप्रेशन में डाक्टर को करीब सोलह घंटे लगे। 20 जनवरी 2011 को प्रवीण खुराना को छुट्टी दे दी गई। जबकि ऑपरेशन से करीब 18 दिनों बाद 28 जनवरी को इन्दिरा खुराना को अस्पताल से छुट्टी दी गई।
इस संदर्भ में जब प्रवीण खुराना से पूछा गया तो उसने बताया कि उसे खुशी है उसने अपनी सास को लीवर दान करके समाज के इस मिथक को तोड़ा है कि सास और बहू का रिश्ता अक्सर खटास भरा होता है। उसके अनुसार वह तो यहीं मानती है कि सास मां के समान है और उसने अपनी मां को लीवर दान करके उसके कर्ज को चुकाया है।
प्रवीण के पिता भगवान दास के अनुसार उसकी बेटी अपनी सास के लिए कुर्बानी करके समाज की सभी बहूओं और सास को प्रेरणा देने का काम किया है कि सास और बहू में मां तथा बेटी का रिश्ता होता है और इसे निभा कर ही वर्तमान समय में टूटते समाज को बचाया जा सकता है। उनके अनुसार वे डॉक्टर सुभाष गुप्ता और उनकी टीम के डाक्टर विवेक, मानव तथा प्रगति के भी आभारी हैं जिन्हों सफल ऑप्रेशन करके और बहू द्वारा सास को दिये गये लीवर का सम्मान करते हुए  समाज को नई दिशा देने का काम किया है। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने अंगदान की प्रेरणा राधा स्वामी डेरा ब्यास से ली है।
इस ऑपरेशन को अंजाम देने वाले डॉ. सुभाष गुप्ता ने बताया कि यह ऑपरेशन काफी पेचीदा था। इसे पूरा करने में उन्हें सोलह घंटे लगे। ऑपरेशन सफल रहा। इस समय लीवर दान करने वाली तथा लीवर दान पाने वाली दोनों ही स्वस्थ हैं। सही मायने में तो सास के प्रति बहू का प्रेम इस ऑपरेशन की सफलता का कारण बना।