16 दिसंबर 2014

आशू के आगे फीके पड़ रहे अग्निकांड के जख्म

अग्निकांड पीडि़त हर माह कर रहा एक करोड़ से ज्यादा का कारोबार


डबवाली (लहू की लौ) अग्निकांड में मिले जख्म पीडि़त आशीष बांसल उर्फ आशू की प्रतिभा के आगे फीके नजर आते हैं। पंचकूला में सेटल यह युवक हर माह करीब एक करोड़ रूपये से अधिक का टाईल का कारोबार करता है। एक सफल बिजनेसमैन बनने की ओर अग्रसर इस अग्निकांड पीडि़त के हौंसले बुलंद हैं। वह टाईल की इंडस्ट्री स्थापित करने का सपना पाले हुये है। जिसे मूर्त रूप देने के यह युवक खूब मेहनत कर रहा है।

महज 9 वर्ष थी
अग्निकांड के समय आशीष की उम्र महज 9 वर्ष थी। वह डीएवी स्कूल की 5वीं कक्षा में पढ़ता था। जबकि उसका छोटा भाई दीपक पहली कक्षा में पढ़ता था। 23 दिसंबर 1995 को दोनों अपनी मां रेखा बांसल के साथ विद्यालय का वार्षिक कार्यक्रम देखने के लिये राजीव मैरिज पैलेस में गये थे। आग की लपटों में गिरे पैलेस में मची भगदड़ के बीच दीपक तथा रेखा की मृत्यु हो गई। आशीष जैसे-तैसे बाहर आने लगा। साईकिल में फंसने के कारण वह गिर गया। पैलेस में लगाया गया टैंट जलते हुये उसके ऊपर आ गिरा। इस युवक ने हिम्मत नहीं हारी। आग की लपटों के साथ वह कुछ दूरी पर पड़े पानी से भरे पड़े एक ड्रम में कूद गया। पचास फीसदी से अधिक जलने पर उसे डीएमसी लुधियाना में लेजाया गया। मुंह सहित शरीर का एक हिस्सा जलने के बाद भी आशीष ने हिम्मत नहीं हारी। उपचार के बाद पुन: पढ़ाई शुरू की। अग्निकांड में मिले जख्म काफी तकलीफदेय थे। लेकिन उसने पढ़ाई निरंतर जारी रखी।
पिता ने डबवाली छुड़वा दी
घावों ने आशीष को हमेशा विचलित किये रखा। दिसंबर माह में ये घाव उसे झकझोर कर रख देते। अपने बेटे की पीड़ा समझते हुये विजय बांसल ने उसे डबवाली से अलग कर दिया। चंडीगढ़ में 12वीं करने के बाद 2009 में उसने चंडीगढ़ स्थित एक शिक्षण संस्थान से इलेक्ट्रोनिक्स कम्युनिकेशन में बीटेक पास की। आशीष की प्रतिभा का सम्मान करते हुये एक अमेरिकी कंपनी ने कैंपस के दौरान उसे गुडग़ांव में नौकरी दे दी। करीब साढ़े चार लाख रूपये के सालान पैकेज पर एक साल नौकरी की। इस अग्निकांड पीडि़त के हौंसले बुलंद थे। किसी के नीचे काम न करने की अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते उसने पंचकूला में अपना बिजनेस सेटल करना शुरू कर दिया। पहले रिटेल में टाईल कारोबार की शुरूआत की। अब पिछले करीब छह माह से टाईल का होलसेलर बन गया है। प्रतिमाह करीब एक करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार कर रहा है।
इंडस्ट्री लगाने की जिद्द
टाईल कारोबारी बने इस अग्निकांड पीडि़त की जिद्द सफल बिजनेसमैन के रूप में स्थापित होने की है। इसके चलते यह युवक अथक मेहनत कर रहा है। उसके पिता विजय बांसल बताते हैं कि आशीष के मन में टाईल की इंडस्ट्री स्थापित करने का विचार चल रहा है। इसके लिये वह देश की कई टाईल फेक्टरी का विजिट कर चुका है।
बीटेक से पहले मांगा विकलांगता का सर्टिफिकेट
अग्निकांड के फौरन बाद आशीष को पचास फीसदी से अधिक का विकलांगता संबंधी सर्टिफिकेट मिला। इसके बाद कई वर्षों तक आशीष का उपचार चला। उपचार के बाद यह विकलांगता कम हो गई। उपचार के बाद बाईं बाजू बिल्कुल सही होकर ऊंची उठने लगी। लेकिन बीटेक में एडमिशन लेते समय उसे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एडमिशन के दौरान संस्थान ने उससे विकलांगता संबंधी सर्टिफिकेट मांगा। जिसे बनाने के लिये उसे काफी माथा पच्ची की। एडमिशन की अंतिम तिथि को एडमिशन हो सका।

जीवन संगिनी ने जख्म नहीं, प्रतिभा देखी
आशीष के पिता विजय बांसल ने बताया कि शादी का रिश्ता तय करते समय उन्हें काफी मुश्किल सहनी पड़ी। जो भी आशीष को देखने के लिये आया, उसके बेटे के जख्म देखकर वापिस हो गया। करीब दो वर्ष पूर्व राजस्थान की घड़साना मंडी से एक रिश्ता आया। लड़की के मां-बाप ने आशीष को पसंद कर लिया। लेकिन उन्होंने उसकी मुलाकात लड़की से करवाई। जीवन संगिनी ने जख्मों को पहल न देते हुये उसकी प्रतिभा का सम्मान किया। आज दोनों पंचकूला में रह रहे हैं।

दिसंबर माह देता है दर्द
जैसे ही वर्ष का आखिरी माह शुरू होता है दर्द शुरू होने लग जाता है। जैसे-जैसे हादसे की तारीख नजर आती है, वैसे ही दर्द बढ़ता जा रहा है। अपने बेटे को पंचकूला भेजकर सकून मिला है। चूंकि इन दिनों वह करीब होता है तो उसके जख्म देखकर आंखों से आंसू नहीं रूकते।
-विजय बांसल

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