16 दिसंबर 2014

कभी गवाह था, आज हाईकोर्ट का जस्टिस हूं


बच्चों पर स्ट्रेस बढ़ रहा है, प्रत्येक स्कूल में हो काऊंसलर-परमजीत सिंह


डबवाली (लहू की लौ) पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट चंडीगढ़ के जस्टिस परमजीत सिंह ने कहा कि बच्चों में अध्यापक बनना चाहता था, एक जज के सामने गवाह के तौर पर प्रस्तुत हुआ था, उन्होंने मुझे वकील बनने के लिये प्रेरित किया। वकील बन गया, लेकिन ताने बहुत सहे। जस्टिस बनने का सपना देखा था, पूरा हुआ तो अपनी मेहनत पर गर्व हुआ। आप सपना देखकर, उसे पूरा करने के लिये जी-जान लगाओ। फिर देखना, सपना कैसे पूरा होता है।
भाषण लिखकर लाये थे, लेकिन खोलकर तक नहीं देखा
जस्टिस रविवार को बाल मंदिर सीनियर सैकेंडरी स्कूल के 39वें वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह में बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वे पहली बार किसी जनसमूह को संबोधित करने जा रहे हैं। इसलिये वे अपना भाषण लिखकर लाये थे। लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं है। चूंकि भाषण में जो बातें मैंने लिखी थी, वह बच्चों ने मंच के जरिये प्रस्तुत कर दी। बच्चों के साथ अपनी जिंदगी के पहलू सांझे करते हुये जस्टिस ने कहा कि उनकी प्राथमिक शिक्षा गोबिंदपुरा बरेटा के सरकारी स्कूल में हुई। आठवीं भी गांव के स्कूल में की। 10वीं रामपुरा फूल से पास की। बठिंडा के डीएवी कॉलेज से बीएससी की। वेयर हाऊसिंग कापोरेशन में नौकरी की। इसी विभाग में वरिष्ठ पद मिल गया। साथ में एलएलबी करने लगा।
जब जज ने कहा आप वकील क्यों नहीं बनते
पहली बार अदालत में गवाह के तौर पर जज के सवालों का सामना किया। उत्तर सुनकर जज ने कहा कि आप वकील क्यूं नहीं बन जाते। उसी समय नौकरी छोड़कर मानसा स्थित अदालत में प्रेक्टिस शुरू कर दी। फौजदारी केस लड़ते हुये एक वर्ष बीत गया। फिर सिविल सूट मामला आया। साथी वकीलों से मदद लेनी चाही तो ताने मिले। लेकिन पीछा नहीं छोड़ा। वो दिन के बाद आज का दिन है। सिविल सूट के लिये सलाह मांगने वाला वकील आज जस्टिस है।
हर विद्यालय में काऊंसलर जरूरी
उन्होंने बच्चों को थ्री पी हमेशा याद रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्ले, पेशन और परपज को जिंदगी में उतार लें। सफलता खुद ब खुद कदम चूमेगी। उन्होंने कहा कि आज के बच्चों पर स्ट्रेस बहुत ज्यादा है। बच्चों की स्ट्रेस दूर करने के लिये प्रत्येक स्कूल में काऊंसलर होना जरूरी है। ताकि बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का अच्छा वातावरण मिल सकें।
बच्चों को गिफ्ट नहीं समय की जरूरत
उन्होंने अभिभावकों को सलाह देते हुये कहा कि बच्चों को गिफ्ट नहीं समय की जरूरत होती है। इसलिये बच्चों को जितना भी समय दे सकें, उतना दें। 12-13 वर्ष की उम्र ऐसी होती है, जिसमें बच्चे को आपकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इस स्थिति में बच्चे को वॉच करें, उसके साथ अच्छे मित्र वाला बर्ताव करें।

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