17 दिसंबर 2014

मुआवजा से दूसरों को जिंदगी दे रहे अग्निकांड पीडि़त

डबवाली (लहू की लौ) 19 वर्ष पहले आग की सुनामी ने सबकुछ तबाह कर दिया। अपने बिछुड़ गये। कभी न भूलने वाला दर्द दिया। लेकिन ऐसे दो अग्निकांड पीडि़त परिवार सामने आये हैं, जिन्होंने समाजसेवा के जरिये इस दर्द को भूलने की कोशिश की है। ये पीडि़त परिवार अदालत से मिले मुआवजे को जरूरतमंदों में बांट रहे हैं। यहीं नहीं एक परिवार तो ऐसा है, जो दूसरों को नई जिंदगी देने में लगा है।
एक परिवार ने खो दिये आठ लोग : डबवाली में बारदाना की दुकान चलाने वाले तीन भाईयों पवन, अनिल, सुशील के लिये 23 दिसंबर 1995 का दिन सबसे मनहूस घड़ी साबित हुआ। तीनों भाईयों ने आठ लोग खो दिये। उस दिन पवन का बेटा अनीश (10), बेटी ममता (9), सुशील की पत्नी कैलाश देवी (28), बेटा राजीव (8), राहुल (साढ़े छह साल), अनिल की पत्नी रेखा (20) अपने 9 माह के बेटे सागर के साथ डीएवी स्कूल का वार्षिक उत्सव देखने के लिये राजीव मैरिज पैलेस में गई थी। उनके साथ भाईयों की फुफेरी बहन रमन (18) भी थी। लेकिन इनमें से कोई वापिस नहीं लौटा। पवन कुमार ने बताया कि उसने धुआं उठते देखा था। तभी उसे एक कर्मचारी ने आकर सूचना दी कि उत्सव में लगी आग से सबकुछ नष्ट हो गया है। वे मौका पर पहुंचे। उन्होंने वहां कोई नहीं मिला।
अस्पतालों में ढूंढ़ते रहे अपने परिजन : पवन के अनुसार वे तीनों भाई तथा पूरा परिवार अपनों को सिरसा, लुधियाना, बठिंडा ढूंढ़ता रहा। उन्हें तरह-तरह की सूचना दी गई कि परिवार वहां है, उनका परिवार बच गया है। लेकिन उन्हें कहीं कोई नहीं मिला। बाद में उनके शव मिले। बताते हैं कि जिस समय हादसा हुआ उस समय भतीजा राहुल हाथी बनकर स्टेज पर था। पवन के अनुसार भाभी कैलाश देवी की मृत्यु आग में झुलसने से हुई। शेष सभी की मृत्यु दम घुटने के कारण हुई थी।
आज भी लगता है डर
पवन के भाई सुशील कुमार ने बताया कि बेशक रि-मैरिज करके वे दोबारा सेटल हो गये हैं। लेकिन 19 वर्ष पूर्व जो दर्द मिला है, उसे आज तक नहीं भूले हैं। आज भी उस हादसे को याद कर डर लगता है। अग्निकांड में मिले दर्द ने मानसिकता को गहरा आघात पहुंचाया है। परिजन सुबह आंख खोलेंगे या नहीं, इस तरह के ख्यालात आते हैं। इसके अतिरिक्त अग्निकांड ने स्वास्थ्य आघात भी पहुंचाया है। जिसकी क्षति पूर्ति नहीं हो सकती।
ट्रस्ट बनाकर कर रहे समाजसेवा : पवन कुमार ने बताया कि हादसे के कुछ समय बाद उन्होंने अनीश कुमार गोयल चेरिटेबल ट्रस्ट खड़ा किया था। उन्हें जो भी मुआवजा राशि मिली, उसमें से एक पाई भी उन्होंने अपने पर खर्च नहीं की। बल्कि ट्रस्ट के जरिये उसे धार्मिक, सामाजिक कार्यों में लगाया। जो आज भी जारी हैं।
......वापिस आने का वायदा किया था : अग्निकांड में अपनी पत्नी आशा रानी (27), बेटी स्माईल (5), किट्टू (ढाई साल) को गंवाने के बाद भी पीडि़त आरके नीना का समाजसेवा के प्रति हौंसला बुलंद है। यह शख्स मुआवजे के रूप में मिली राशि को समाजसेवा में बहा रहा है। डबवाली जन सहारा सेवा संस्था के नाम से डबवाली में एंबुलैंस सेवा देकर सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों को अस्पताल तक पहुंचाकर नई जिंदगी दे रहा है, जोकि किसी मिसाल से कम नहीं। इसके अतिरिक्त शहर में सात जगहों पर वाटर कूलर, टैंकी तथा शव वाहन भी दे चुका है। यहीं नहीं हर साल मुआवजा राशि से आने वाले गर्म कपड़ों को जरूरतमंदों में वितरित कर रहा है। एंबुलैंस राशि पर हर वर्ष खर्च आने वाले डेढ़ लाख रूपये को वह मुआवजा राशि से ही चुका रहा है।
वापिस आने का वायदा किया था : आरके नीना के अनुसार वह खुद अपनी बेटियों तथा पत्नी को कार्यक्रम में छोड़कर आया था। उस दिन उन्होंने बठिंडा जाना था। घर पर उसकी सास अपनी बेटी आशा के इंतजार में बैठी थी। इसी बीच उसे जानकारी मिली कि कार्यक्रम में आग ने सब खत्म कर दिया है। वह मौका पर पहुंचा उसकी पत्नी बुरी तरह से जल चुकी थी। गले में डाले राकेश-आशा के लॉकेट के आधार पर उसकी पहचान की। किट्टू की पहचान उसके चेहरे से हो गई। लेकिन स्माईल का पता नहीं चल पाया। डबवाली के रामबाग में अंतिम संस्कार के लिये जगह न मिलने पर उन्होंने जिला बठिंडा की संगत मंडी में शवों को मुखाग्नि दी।
किसी ओर ने कर दिया स्माईल का संस्कार : आरके नीना के अनुसार शव बुरी तरह से जलने के बाद पहचान के काबिल नहीं थे। उसकी बेटी स्माईल का अंतिम संस्कार किसने किया, वह नहीं जानता। जब उसने प्रशासन से अपनी बेटी का सुराग लगाने की मिन्नतें की तो उसे कुछ फोटोग्राफ दिखाये गये। एक शव के पहनी ड्रेस के आधार पर ही उन्होंने स्माईल की पहचान की। चूंकि उसकी बेटी फैंसी ड्रेस में थी। ड्रेस कुछ दिन पूर्व ही उसे दिलाई गई थी। उस दिन घटना हुये को 8 दिन बीत चुके थे।

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