26 नवंबर 2014

केंद्रीय टीम ने जुटाये आंकड़े, हर साल बादल के हलके से आते हैं 50 टीबी रोगी



टीबी तथा एचआईवी रोगियों की एक साथ जांच पर जताई आपत्ति

डबवाली (लहू की लौ) पिछले दस वर्षों से चल रहे टीबी रोग नियंत्रण कार्यक्रम का फीडबैक लेने के लिये केंद्रीय टीम मंगलवार को डबवाली पहुंची। टीम ने सरकारी अस्पताल में चल रहे टीबी केंद्र के रिकॉर्ड की जांच की। जिसके बाद कर्मचारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये।
सुबह करीब 10.30 बजे केंद्रीय टीम के चार सदस्य अस्पताल में पहुंचे। आते ही कार्य शुरू कर दिया। टीम की एक महिला सदस्य अस्पताल की लैब में पहुंची। लैब में मौजूद कर्मचारी से महिला सदस्य ने अपनी पहचान शिखा के रूप में करवाते हुये कहा कि हम केंद्र से आये हैं। टीबी कार्यक्रम के तहत जिला सिरसा की सीआईडी की जा रही है। आप मुझे मरीज समझकर बताईये जरा, मेरी बलगम जांच कैसे करोगे। कर्मचारी के जवाब पर संतोष जाहिर किया। महिला सदस्य ने एक के बाद एक कई सवाल दागे। डॉ. शिखा ने कर्मचारी से पूछा आप बलगम जांच के लिये नई स्लाईड प्रयोग करते हो, जवाब मिला हां। फिर सवाल किया कि वेस्ट कहां जाता है, जवाब मिला एक निजी कंपनी लेजाती है। डॉ. शिखा ने लैब में प्रयोग किये जा रहे डस्टबिन पर आपत्ति जाहिर करते हुये कहा कि मैटल या स्टील वाले डस्टबिन प्रयोग किये जायें।
सामाजिक कार्यक्रम बनाने से चूकें
टीम ने समाज में एक भी टीबी रोगी न रहने देने की सलाह देते हुये कहा कि टीबी कार्यक्रम से जुड़े लोग बाजार या कम्युनिटी में किसी भी व्यक्ति या बच्चे को खांसते देखें, उसे तत्काल अपनी बलगम जांच करवाने की सलाह दें। जिस पर टीबी यूनिट डबवाली के प्रभारी डॉ. सुखवंत सिंह ने लोगों के विचार सांझे किये। केंद्रीय टीम के सदस्य ने कहा कि हम इसे सामाजिक कार्यक्रम बनाने से चूक गये हैं। कम्युनिटी में एक मरीज भी मिस न होने दें। टीम ने मरीजों से रिलेशनशिप बनाने की सलाह दी। ताकि उनके पूरे परिवार का फीडबैक मिल सकें।
मुझे तो सैल दिखाई नहीं दे रहे
रिकॉर्ड की जांच करते हुये केंद्रीय टीम ने स्लाईड नं. 1824/ए तथा 1835/बी तथा ए को दिखाने के लिये कहा। टीम सदस्य ने माईक्रोस्कोपी से खुद स्लाईड की जांच करते हुये कहा कि मुझे तो इसमें से सैल ही दिखाई नहीं दे रहे। आप ऐसा कैसे करते तो, इसमें लैंस बदलने वाले हैं। जिस पर डॉ. सुखवंत सिंह ने कहा कि माईक्रोस्कोपी करीब 9 वर्ष पुरानी है। इसके लैंस बदल दिये जाएंगे।
दो रोगों की एक साथ जांच पर उठाई अंगुली
केंद्रीय टीम ने सिविल अस्पताल की लैब में एचआईवी तथा टीबी रोगियों की एक साथ जांच पर सवाल उठाये। केंद्रीय टीम ने कहा कि एचआईवी पीडि़त को टीबी होने का सबसे अधिक खतरा रहता है। यह बहुत बड़ा इश्यू है। इसे टीम सदस्य डिस्कस करेंगे।
पंजाब से आ रहे हैं रोगी
केंद्रीय टीम ने हरियाणा से सटे पंजाब एरिया से रोगियों के बारे में पूछा। डॉ. सुखवंत सिंह ने बताया कि प्रति वर्ष करीब 50 टीबी रोगी पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल के गृहक्षेत्र से निकलते हैं। जिस पर टीम ने सवाल दागने शुरू कर दिये। टीम के सवालों का जवाब देते हुये डॉ. सुखवंत तथा कार्यक्रम कर्मचारी विजय कुमार ने कहा कि पंजाब से आने वाले मरीजों को रैफर कर दिया जाता है। इसकी रिपोर्ट जिला स्तर पर लगे रैफरल रजिस्टर में दर्ज की जाती है। टीम ने इस मुद्दे को टीबी कार्यक्रम पर होने वाली बैठकों में उठाने के लिये कहा। टीम ने कहा कि रैफरल रजिस्टर में दर्ज होने के बाद संबंधित मरीज संबंधी चिट्ठी संबंधित टीबी केंद्र में चली जाती है। इससे मरीज को सुविधा रहती है। फीडबैक में मिल जाता है। इस मामले पर केंद्रीय टीम अवश्य विचार करेगी।
चार सदस्यीय टीम शाम तक डबवाली में रही। गांव चौटाला स्थित अस्पताल का भी निरीक्षण किया। जांच के बाद टीम ने संबंधित कर्मचारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये। रिपोर्ट बनाकर टीम निकल गई।

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