29 सितंबर 2011

दहेज प्रताडऩा के 90 फीसदी मामले झूठे


डबवाली (लहू की लौ) कोर्ट में निर्णय के लिए आने वाले 90 प्रतिशत दहेज प्रताडऩा के मामले झूठे होते हैं। असल में इन केसों के पीछे विवाद कुछ ओर होता है। ये शब्द उपमण्डल न्यायिक दण्डाधिकारी तथा लीगल सैल के अध्यक्ष डॉ. अतुल मडिया ने प्रथम नवरात्र को मातृशक्ति दिवस के रूप में मनाते हुए बुधवार को कोर्ट परिसर में कन्या भ्रूण हत्या पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि दहेज प्रताडऩा के अधिकतर मामलों में कहानी मामूली लड़ाई-झगड़े या फिर सास-बहू के बीच झगड़े की होती है। जिसे दहेज प्रताडऩा का रंग देकर पेश किया जाता है। जबकि असल मामले सामने नहीं आते। न तो वे पंचायत में पहुंचते हैं और न ही थाना, कचहरी में। ऐसे मामलों में पीडि़ता स्वयं जल जाती है या फिर जला दी जाती है। मडिया के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या कोई समस्या नहीं है, अपितु समस्याओं की जननी है। कन्या भ्रूण हत्या और घरेलू हिंसा के पीछे महिला खुद जिम्मेवार है। जब तक महिला अपनी भूमिका तय नहीं करती, तब तक यह कलंक समाज पर लगा रहेगा। इस प्रकार के किसी मामले में निर्णय सुना देने या इसके खिलाफ कानून बना देने से काम नहीं चलने वाला। लोगों की सोच में परिवर्तन करके ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
सरकारी अस्पताल के कार्यकारी एसएमओ डॉ. एमके भादू ने सेमिनार को अपनी कविता प्यार की संजीव कहानी होती है बेटी, चंद दिनों में बेगानी होती है बेटी...के माध्यम से संबोधित किया। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों को बताया। स्वास्थ्य कर्मी मंजू बाला ने मां-बेटी पर आधारित कविता मैं गर्भ से बोल रही हूं, अच्छी मम्मी-प्यारी मम्मी..., राज वर्मा ने हो गई है हैवानियत की तन्हां और कोई बोले न बोले मेरी आवाज बाकी है...से अपने विचार प्रकट किए। अधिवक्ता कुलवंत सिधू ने अपने गीत टोटे करके कतल कातों करदी मां... तथा अधिवक्ता एसके गर्ग ने घरेलू हिंसा से स्त्रियों की सुरक्षा अधिनियम 2005 का विस्तार पूर्वक उल्लेख लिया। बाल कलाकार लक्की वधवा ने स्वयं रचित गीत धीयां जन्मियां ते गुड़ भी ना बंडेआ, बेआही तो क्यों रोया बाबुला....के जरिए सेमिनार में उपस्थित लोगों की आंखें नम कर दी। राजकीय महाविद्यालय की प्राध्यापिका शन्नो आर्य ने मैं नदी हूं, मुझे मेरा हुनर मालूम है, जिस तरफ भी जाऊंगी रास्ता हो जाएगा... जैसी पंक्तियों के माध्यम से भारतीय समाज में नारी की दशा और संघर्ष की कहानी ब्यां की। इस मौके पर अधिवक्ता एससी शर्मा तथा प्राध्यापिका पूनम वधवा ने भी अपने विचार रखे। मंच का संचालन अधिवक्ता गंगा बिशन गोयल ने बखूबी निभाया।
इससे पूर्व सेमिनार का शुभारंभ अंकिता मडिया ने कन्या भ्रूण हत्या पर स्लोगन लिखित बोर्डों से पर्दा हटाकर किया। इस अवसर पर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र दंदीवाल, कुलदीप सिंह सिधू, बलजीत सिंह, वाईके शर्मा, कुलवीर पासी, राजेश यादव, धर्मवीर कुलडिया आदि उपस्थित थे।

कोई टिप्पणी नहीं: