07 सितंबर 2009

अपने आप को जानो और पूर्ण बनो-वकील साहब

डबवाली (लहू की लौ) मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम के गद्दीनशीन संत वकील साहिब ने मासिक सत्संग के दौरान फरमाया कि कुल मालिक अर्थात परमपिता परमात्मा सदा सबके साथ रहता है लेकिन उसे वही पहचान सकता है जो उसकी र•ाा में रहते हुए उसके आगे अपनी दलीलें नहीं देता।
उन्होंने कहा कि दुख:-सुख कर्मों के हिसाब से आते हैं, मालिक की मर्जी के आगे किसी का कोई चारा नहीं है। मन काल का एजैन्ट है और इसके पास कर्मों का हथियार होता है। इसका काम है जीव को विषय-विकारों में भटकाना और भक्ति तथा राम-नाम का सिमरन न करने देना। जब तक हमारे पुराने पाप कर्म खत्म नहीं होते तब तक सिमरन या भक्ति हो ही नहीं सकती। सन्तों द्वारा बताया राम नाम का सिमरन करना मालिक सेे प्यार करना है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए फरमाया कि बच्चे स्कूल जाते हैं और अपने मास्टर का कहना मानते हैं और मेहनत करते हैं तो धीरे-धीरे पढ़ाई करके उनमें से कोई बड़ा आफीसर, डाक्टर, इंजीनियर, साईंसदान व कोई वकील बन जाता है। ठीक इसी तरह जो संतों का हुक्म मानते हैं तथा उनके द्वारा बताए रामनाम का सिमरन करते हैं, उनकी आत्मा परमात्मा से मिल जाती है और जन्म मरण के बन्धनों से वे मुक्त हो जाते हैं।
संत ने आगे फरमाया कि हम दुनियां की लज्जतों, परिवारिक झंझटों व इंद्रियों के भोगों में उलझे रहते हैं। हम सोचते हैं कि मरने वाला कोई और है, हमें तो मरना ही नहीं है। मौत ने इक दिन जरूर आना है और यमदूत जब सिर पर आ जाते हैं तब होश आता है, पर उस समय कुछ हो नहीं सकता। मालिक हमारे अन्दर बैठा हमारी हर करतूत देखता है। जब तक हम मालिक की बंदगी नहीं करते, हमारा एक दूसरे से प्यार हो ही नहीं सकता। इन्सान वह है जिसने जीते जी अर्थात जीवन काल में ही मालिक को प्रगट कर लिया है बाकी सब पशुओं के समान हैं।
उन्होंने फरमाया कि धार्मिक किताबों के पढऩे से मालिक की प्राप्ति नहीं होती। क्योंकि अगर इनके पढऩे से मालिक मिलता तो अनपढ़ कहां जाएंगे। मालिक की प्राप्ति केवल संतों द्वारा बताए नाम-सिमरन से ही हो सकती है। इसलिए संत कभी घर बार नहीं छुड़वाते बल्कि घर में रहते हुए भक्ति व सिमरन करने की हिदायत देते हैं। क्योंकि अगर घर बार छोड़ोगे तो कहीं जंगल, मंदिर, मस्जिद या गुरूदारा में जा कर रहोगे। अर्थात रहे तो दुनिया में और ख्याल भी दुनिया के। फिर घर बार छोडऩे का फायदा ही क्या। उन्होंनेे फरमाया कि जग में रहो पर जग से अलग रहो। कितने लोग आपको जानते हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम अपने आपको जानते हो या नहीं सवाल तो यह है अर्थात अपने आप को जानो और पूर्ण बनो।
इस अवसर पर देश विदेश से श्रदलुओं ने भाग लिया। अखुट लंगर बरताया गया और इच्छुक जीवों को संत वकील साहिब जी दारा नाम दान की दीक्षा भी दी गई। आश्रम की ओर से निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाया गया।

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