25 जून 2020

खुद फौजी बनना चाहते थे रिटायर्ड हैड ड्रॉफ्टमैन हरभजन सिंह गिल सपना पूरा नहीं हुआ तो बेटे को फौजी बनाया, अब चाइना बॉर्डर पर है तैनाती


डबवाली (लहू की लौ) मैं फौजी बनना चाहता था। इसलिए वर्ष 1975-76 में सपना पूरा करने के लिए फिरोजपुर चला गया था। मेरे पहुंचने से एक दिन पहले ही भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। किस्मत को दोष देकर सपना भूला दिया। फिर बेटा अमनदीप सिंह गिल हुआ तो उसमें फौजी का अक्स नजर आया। बचपन में ही उसे फौजी बनाने की ठान ली। दिवाली होती तो उसे पटाखे देता, पर वो कहता कि ओरिजनल बजाने का मौका मिलेगा तो पीछे नहीं हटूंगा। मेरा विश्वास ज्यादा दृढ़ हो गया।
पॉवर हाऊस कॉलोनी में रहते हुए सुबह-सुबह उसे सैर पर लेजाता। पूरा एक घंटा स्टेडियम के चक्कर कटवाता, ताकि फिटनेस का मंत्र जान सकें। 6वीं में कपूरथला के सैनिक स्कूल में दाखिला करवाया। स्कूल मैनेजमेंट के साफ फरमान थे कि पीटीएम में हाजिरी जरुरी है। मैं अपनी नौकरी की परवाह किए बगैर पीटीएम में पहुंचता था। 12वीं के बाद उसने एनडीए पास की। उसके घुटने पर गंभीर चोट लगी। कई दिन तक वह अस्पताल में उपचाराधीन रहा। बेटे के इरादे डगमगाए ना, इसलिए अस्पताल में जाने की अपेक्षा फोन पर कह दिया कि मामूली सी चोट है, कुछ दिन बाद जख्म भर जाएंगे। फिर प्रैक्टिस शुरु कर लेना। वर्ष 2016 में अमनदीप ने इंडियन मिल्ट्री अकादमी से निकलकर उसने बतौर लेफ्टिनेंट जॉइन करते हुए चंडीगढ़ में डयूटी संभाली। वर्ष 2018 में कैप्टन बनने के बाद बेटे को चाइना बॉर्डर पर तैनात किया गया। लगातार तीन माह तक सियाचिन में 18 हजार फीट पर डयूटी कर चुका है। अब लद्दाख क्षेत्र में तैनात है। यह कहना है बिजली निगम से हैड ड्राफ्टमैन सेवानिवृत्त डबवाली निवासी हरभजन सिंह गिल का। जिन्होंने देश सेवा का अपना सपना पूरा करते हुए इकलौते बेटे को फौजी बनाया है।

वो फौजी बने, उसकी मां यहीं चाहती थी
मेरी तरह अमनदीप की मां परमजीत कौर की चाहती थी कि बेटा फौजी बने, इसलिए वे अक्सर सैन्य अधिकारियों से सलाह लेते रहते थे। जब वह फौजी बन गया तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ऐसा लगा कि रब्ब ने सारी मन्नतें पूरी कर दी। मेरा बेटा डोगरा रेजीमेंट में है। वह चाइना बॉर्डर पर तैनात है।
-हरभजन सिंह गिल (कैप्टन अमनदीप सिंह गिल के पिता)

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