22 दिसंबर 2014

राजनीतिकों तथा भ्रष्ट अफसरशाही के जुल्मों का शिकार हुई उमा

उन्नीस वर्षों से इंसाफ के लिये जंग लड़ रही अग्निकांड पीडि़ता


डबवाली (लहू की लौ) इस अग्निकांड पीडि़ता की कहानी सबसे जुदा है। जिसे सुनकर आंखें खुद-ब-खुद रो पड़ती हैं। बच्चों को बचाते हुये पति अग्निकांड में शहीद हो गया। पति की मौत के बाद इस पीडि़ता ने राजनीतिकों तथा भ्रष्ट अफसरशाही के इतने जुल्म सहे कि उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी। अदालत से आये फैसले ने इस पीडि़ता की जिंदगी में नई रोशनी दी। लेकिन संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है, अभी भी पीडि़ता राजनीतिकों के साथ अपने हक की लड़ाई लड़ रही है। हम बात कर रहे हैं अग्निकांड में शहीद हुये भागीरथ की पत्नी उमा की। 23 दिसंबर 1995 को भागीरथ बतौर गनमैन एसडीएम सोमनाथ कंबोज के साथ डीएवी स्कूल के कार्यक्रम में मौजूद था।

आग भड़कने पर वह तीन बार एसडीएम को बाहर लेकर आया। अपनी पत्नी तथा बच्चों को आग से बचाने के लिये गये एसडीएम के पीछे चला गया। लेकिन इस बार वापिस नहीं लौटा। हालांकि हर बार आग से बचाते हुये उसने बच्चों को दीवार से बाहर फेंका। आग में खुद झुलसते हुये इस पुलिस कर्मी ने पंद्रह बच्चों को बचाया। हादसे के एक दिन बाद भागीरथ ने जख्मों का ताप न सहते हुये दम तोड़ दिया। मरणोपरांत भागीरथ की इस बहादुरी के लिये 1999 में लखनऊ में आयोजित एक समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सम्मानित किया। पति की बहादुरी का मैडल भागीरथ की पत्नी उमा ने प्राप्त किया। लेकिन राजनीतिकों तथा अफसरशाही के जुल्मों में यह मैडल दबकर रह गया है।
गर्भवती होने पर क्वार्टर से निकाला
उमा पर जुल्मों का सिलसिला 24 दिसंबर 1995 को पति की मौत के साथ ही शुरू हो गया था। उमा के दो बेटे हैं। हादसे के दौरान बड़ा बेटा बलदेव पांच साल का था। जबकि छोटा बेटा सुनील गर्भ में था। पति की मौत होते ही तीन माह से गर्भवती उमा से उसका सरकारी क्वार्टर खाली करवा लिया गया। इस हालत में सड़कों पर आई उमा को उसके परिजनों ने सहारा दिया। सरकार ने एक ओर जुल्म ढहाया। शहीद की पेंशन के रूप में उमा को महज 1045 रूपये प्रतिमाह देने शुरू कर दिये। जिसमें मेडिकल अलाऊंस, बेसिक पे शामिल थी। 1997 में यह पेंशन 1272 रूपये हो गई। दूसरी तरफ एसडीएम सोमनाथ कंबोज के आश्रितों को उनकी पूरी तनख्वाह पेंशन के रूप में मिलने लगी। इसे मुद्दा बनाते हुये वर्ष 2001-02 में उमा पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चली गई। मात्र दो हफ्तों की कार्रवाई में हाईकोर्ट ने उसके पक्ष में निर्णय सुना दिया।
खुद के विभाग ने लगा दिया एक साल
बेशक हाईकोर्ट के निर्णय ने उमा को नई ऊर्जा देने का काम किया। लेकिन भागीरथ के खुद के विभाग ने हाईकोर्ट के नियमों को मानने के लिये एक वर्ष लगा दिया। भागीरथ के परिजन इसके लिये ऊंचे ओहदे पर बैठे एक आईएएस अधिकारी से मिले। अधिकारी ने काम के बदले पचास हजार रूपये की रिश्वत मांगी। यह न देने पर उमा को मिलने वाली रकम में से 25 प्रतिशत हिस्सा मांगा। पेंशन न लेने की बात कहते हुये उमा का परिवार वापिस लौट आया। बाद में लड़-झगड़ते वर्ष 2003 में विभाग से पेंशन बढ़ौतरी वाला पत्र जारी करवाया। जिसके बाद 2004 में उमा को 1996 से बकाया चल रही पेंशन के रूप में डेढ़ लाख रूपये मिले।
2007-08 में मिलने लगा हक : विभाग से पत्र जारी होने के बावजूद उमा ने काफी लंबा संघर्ष किया। 2004 से 2008 तक उमा बैंक अधिकारियों के पास इस पत्र को लिये घूमती रही। लेकिन किसी ने एक न सुनी। संघर्ष करते-करते थक चुकी उमा का साथ उसके देवर विनोद कुमार ने दिया। विनोद ने बैंक प्रबंधकों से जवाब तलबी की तो एकाएक पेंशन शुरू हो गई। अब उमा को प्रति माह करीब 16 हजार रूपये पेंशन के रूप में मिल रहे हैं।
यूं पढ़ाया बच्चों को
उमा के अनुसार क्वार्टर से निकाले जाने के बाद उसके परिजनों ने उसकी डिलीवरी करवाई। वह पुन: डबवाली में आ गई। पेंशन राशि से किराये के मकान में रहकर अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया। उसके दोनों बच्चे डीएवी संस्थान में पढ़े, जिसमें अग्निकांड पीडि़त परिवारों के लिये मुफ्त शिक्षा मिलती थी। घर का खर्च चलाने के लिये उसने उपमंडलाधीश कार्यालय में नौकरी की। कुछ देर बाद उससे नौकरी छीन ली गई। बाद में विवाह के समय दहेज में मिले दो पशु काम आये। उनका दूध बेचकर बच्चों की परवरिश की। इस वर्ष बड़ा बेटा बी-टेक कर गया है, जबकि छोटा बेटा बीए में दाखिल हुआ है। अदालत में हुये फैसले के बाद जो पैसा मिला, उससे घर बना लिया है।
नौकरी का वायदा पूरा करे सरकार : उमा के अनुसार मदद करने की बजाये गिरगिट की तरह राजनीतिक अपना रंग बदलते रहे हैं। वर्ष 1999 में उसे पुलिस महानिदेशक का एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसके अनुसार पति की मौत के बाद उसके बड़े बेटे को नौकरी देने का वायदा करते हुये एक नंबर जारी करके बालिग होने पर नौकरी के लिये अप्लाई करने के लिये कहा। वर्ष 2000 में फिर एक पत्र प्राप्त हुआ। जिसमें सरकार के नियमों के फेरबदल का हवाला देते हुये पुलिस विभाग के अधिकारियों ने नौकरी देने से मना कर दिया।
अब गृह मंत्रालय में अटकी है फाईल : उमा ने बताया कि जुलाई 2014 में पुलिस विभाग ने नियमों का हवाला देते हुये उसके बेटे को पुन: मेडिकल परीक्षण देने के लिये कहा। उसके छोटे बेटे सुनील ने मेडिकल परीक्षण दिया। जिसकी फाइल अभी तक गृह मंत्रालय में अटकी हुई है। हालांकि हरियाणा की मौजूदा खट्टर सरकार ने तत्कालीन हुड्डा सरकार के निर्णयों की समीक्षा करने की बात कही है। जिससे एक बार फिर उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।


बच्चों को बचाता शहीद हुआ भाई
मेरा भाई अस्पताल में था। वह बुरी तरह से झुलसा हुआ था। मैं उसे पहचान नहीं पाया। लेकिन उसने मुझे आवाज लगाई। वह कह रहा था कि मैंने बच्चों को बचाकर अपना फर्ज अदा किया है। मैं नहीं बचूंगा। मेरी मौत की खबर मेरी उमा को न देना, वह गर्भवती है। मेरे भाई की शहादत पर बेशक सरकार ने बहादुरी का मैडल देकर सम्मानित किया। लेकिन राजनीतिकों तथा भ्रष्ट अफसरशाही ने हमेशा जुल्म किये। जो अभी तक जारी हैं।
-विनोद कुमार (भागीरथ का भाई)

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