24 नवंबर 2014

सिर्फ नाम बदला, सिस्टम अंग्रेजों वाला

स्कूली बच्चों को पढ़ाया जा रहा है काल्पनिक इतिहास-डॉ. चमन लाल


डबवाली (लहू की लौ) आजादी के लिये चले आंदोलनों तथा भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारी के जीवन का बिगड़ा हुआ स्वरूप देश में स्कूली बच्चों को इतिहास के रूप में पढ़ाया जा रहा है, जोकि महज कल्पना पर आधारित है। क्रांतिकारियों की जन्म शताब्दी पर करोड़ों रूपये बर्बाद करके सरकारें महज ड्रामा कर रही हैं। भगत सिंह के सपनों का भारत आज तक नहीं बसा है। यह कहना है चर्चित लेखक एवं विचारक डॉ. चमन लाल का।

वे रविवार को राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में गदर पार्टी, करतार सिंह सराभा की परंपरा तथा भगत सिंह की विचारधारा विषय पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। वरच्युस क्लब की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी में डॉ. चमन लाल ने मौजूदा सिस्टम पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुये सरकार को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि 1857 को जंग ए आजादी पर इतिहास में सबसे ज्यादा किताबें लिखी हैं। कुछ लेखकों ने बड़े अच्छे ढंग से इसको पेश किया है। लेकिन हमारे देश में ज्ञान की परंपरा नहीं है। हम लोग पढऩा नहीं जानते। हम अपना इतिहास न जाने, अंधे बने रहें, ऐसी सोच रखते वाले कुछ लोगों ने इतिहास को गट्टर में फेंक दिया है। जो स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है वह काल्पनिक इतिहास है। जिससे बच्चों को सही ज्ञान नहीं मिल पा रहा।
शहीद का दर्जा सरकार नहीं, लोग देते हैं
उन्होंने टिप्पणी करते हुये कहा कि शहीद का दर्जा मांगने से नहीं मिलता। यह दर्जा लोग देते हैं। शहीदों के नाम पर सरकार केवल नाटक करना जानती है। जन्म शताब्दी मनाने के नाम पर पैसे की बर्बादी की जाती है। ऐसा कम अक्ल वाले लोग करते हैं। जिनके पास ज्ञान नहीं होता, जो इतिहास नहीं पढ़ते।
अभी भी चल रही अंग्रेजों जैसी सरकार
प्रख्यात लेखक तथा विचारक ने कहा कि देश में आज भी अंग्रेजों जैसी व्यवस्था चल रही है। सिर्फ नाम बदला है। कलोनियन स्ट्रक्चर में चलने वाला इंडियन सिविल सर्विसज अब इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस हो गया है। लेकिन ढंग वहीं है। राजनीतिक लोग जनता की आवाज दबाने के लिये अधिकारियों का सहारा लेते हैं। क्रीमिनल लोग राजनीति में आराम से आ रहे हैं। बात चाहे रूलिंग पार्टी की हो या फिर विरोधी पार्टी के सांसदों की। इस बार भी ऐसे क्रीमिनल टाईप एमपी या मंत्रियों की तादाद कम नहीं है। जिनका स्थान कटघरे में होना चाहिये, उनकी सुरक्षा के लिये सैंकड़ों जवान तैनात रहते हैं।



राजनीतिकों ने दिखाये सब्जबाग


आजादी मिले को लंबा समय हो गया है। हमने प्रत्येक पार्टी को अवसर देते हुये सरकार बनाई। अब भी वे हमारे पास आ रहे हैं, हमें तरह-तरह के सब्जबाग दिखाते हैं। मेरा प्रश्न है कि क्या कभी समस्याओं में कमी आई? क्या इसी रास्ते पर चलते रहना सही है? आज अन्नदाता भूखा मर रहा है। बड़े-बड़े भवन बनाने वाला भूखा मर रहा है। एक किसान 1 क्विंटल फसल लेने के पांच हजार रूपये ले रहा था, आज उसे तीन हजार मिल रहे हैं। क्या अब उस किसान पर महंगाई की मार नहीं है? मैं मानता हूं कि बेशक इकनोमिक्स, मैथ भाड़ में जाये, अब जरूरत शहीद भगत सिंह के आदर्श अपनाने की है। उनके दिखाये रास्ते पर चलने की है। बच्चों को दी जा रही शिक्षा में परिवर्तन की जरूरत है। बड़ी शर्म आती है यह बात कहते हुये कि षडयंत्र के साथ भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी के जीवन को किताबों में हटा दिया गया।

-सतीश कुमार, एसडीएम, डबवाली (समारोह के अध्यक्ष)

भगत सिंह को जानने के मात्र दो रास्ते
उन्होंने कहा कि अगर भगत सिंह के जीवन को सही तरीके से जानना है, तो उसके केवल दो रास्ते हैं। शहीद ए आजाम की भतीजी वरिंद्र संधू की लिखित पुस्तक तथा दूसरा रास्ता भगत सिंह के खुद के लिखित पत्र। इस मौके पर उन्होंने स्पष्ट किया कि भगत सिंह ने अपने जीवन में कभी भी पीली पगड़ी नहीं पहनी थी। वे हमेशा सिर्फ सफेद रंग की पगड़ी पहना करते थे। कुछ लोग भ्रमित करने के लिये ऐसा कर रहे हैं। प्रसिद्ध लेखक ने भगत सिंह को तस्वीरों में पिस्तौल तथा बम वाला करार देने वालों की तीखी आलोचना करते हुये ऐसे लोगों को मूर्ख व गधे कहकर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भगत ङ्क्षसह की जेल डायरी पढऩे पर खुद-ब-खुद पता चल जाता है कि वे कैसे इंसान थे। भगत सिंह की एक जेब में अंग्रेजी का शब्दकोष तथा दूसरी जेब में नॉबेल होती थी।

प्रत्येक विद्यालय में बांटी जायेगी भगत सिंह की जीवनी
इस मौके पर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में परिचर्चा स्थल की स्थापना करने की घोषणा हुई। वरच्युस क्लब ने भगत सिंह पर आधारित पुस्तकें विद्यालय की लाईब्रेरी में रखने की घोषणा की। इस मौके पर उपमंडलाधीश ने भगत सिंह पर लिखित पुस्तकों को प्रत्येक विद्यालय में पहुंचाने की घोषणा भी की। मंच का संचालन कोरियोग्राफर संजीव शाद ने बखूबी किया। इस अवसर पर विद्यालय के प्रिंसीपल सुरजीत मान, केशव शर्मा, परमजीत कोचर, वेदप्रकाश भारती, सतपाल जग्गा, शशिकांत शर्मा, राम लाल बागड़ी, नरेश शर्मा, मुकंद लाल सेठी, राजेंद्र सिंह देसूजोधा, राजेश हाकू, एडवोकेट जतिंद्र खैरा मौजूद थे।

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