28 सितंबर 2010

हिन्दुस्तानी पर लट्टू हुए गोरे

डीडी गोयल
मो. 093567-22045
डबवाली। जोधपुर के लोग और मुकाम की धार्मिक यात्रा पर आए श्रद्धालु जिस व्यक्ति को पॉलीथीन का कचरा बीनते देखकर पागल की संज्ञा देते थे, आज वह व्यक्ति केवल पर्यावरण प्रेमी के नाम से ही विख्यात नहीं है, बल्कि विदेशों में भी प्रेरणा का स्त्रोत बनकर विश्व को पॉलीथीन के कचरे के खिलाफ खड़ा करने का एक आंदोलन बन गया है। गोरे उस पर इतने लट्टू हुए हैं कि उन्होंने उस पर वीडियो फिल्म तैयार करनी शुरू कर दी है।
यह व्यक्ति कोई ओर नहीं, बल्कि हिन्दोंस्तान के राजस्थान राज्य के जोधपुर का एमकॉम पास खमु राम बिश्नोई है। जोकि राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर में न्यायिक सहायक के पद पर कार्यरत है। खमु राम बिश्नोई डबवाली की बिश्नोई धर्मशाला में गुरूवार को बिश्नोई समाज द्वारा खेजड़ी के शहीदों समर्पित पर्यावरण रैली में भाग लेने के लिए आए हुए थे और इस संवाददाता से पर्यावरण पर विशेष बातचीत कर रहे थे। पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण संस्थान, जोधपुर के संस्थापक खमुराम बिश्नोई ने बताया कि उसे प्लास्टिक का कचरा बीनने की न तो कोई सनक है और न ही इसे इक्ट्ठा करके कबाडिय़ों को बेचना उसका पेशा है। बल्कि वह निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज, राज्य, देश और विश्व के भले के लिए इस काम को अंजाम दे रहा है। उसका एकमात्र उद्देश्य है कि पृथ्वी के पर्यावरण को संतुलित रखकर प्रदूषण से कैसे बचाए रखा जा सकें। यहीं कारण है कि वह स्थान-स्थान पर यहां भी उसे प्लास्टिक का कचरा दिखाई देता है, वह उसे बीनने लग जाता है।
खमुराम के अनुसार वे इस बात से भली प्रकार से परिचित हैं कि प्लास्टिक के कचरे को जलाने से निकलने वाली हानिकारक गैसें वातावरण को प्रदूषित करती हैं, जो मानव जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक है। यदि कचरे को मिट्टी में दबा दिया जाए, तो वह दब तो जाता है, लेकिन सैंकड़ों सालों तक भी वह नष्ट नहीं होता।
उन्होंने बताया कि वे पहली बार हरियाणा की भूमि पर आए हैं और उन्हें पंजाब, राजस्थान तथा हरियाणा की त्रिवेणी कही जाने वाली मण्डी डबवाली में आने का सौभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि इस मिट्टी की सुगंधी को अपने मात्थे से लगाने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। विशेषकर ऐसे मौके पर जब पर्यावरण के लिए 281 वर्ष पूर्व 363 बिश्नोईयों ने शहीदी दी और उसमें भी एक विरांगना अमृता देवी शामिल थी। जिसका आज स्मृति दिवस है।
उन्होंने बताया कि वे एमकॉम करने के बाद राजस्थान सरकार की न्यायिक सेवा में चला गया। लेकिन इसके बावजूद भी उसके दिल में पर्यावरण के प्रति एक टीस थी। धरती को बिगड़ रहे पर्यावरण से कैसे बचाया जा सके, इससे सुरक्षा पाने की सनक उसके सिर पर सवार थी। उसने धरती मां की रक्षा के लिए जब कचरा बीनने की सेवा का कार्य अपने हाथ में लिया तो जोधपुर नगर के लोग उसे पागल कहने लगे। कुछ लोग तो उससे नफरत भी करने लगे। लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि वे यह काम अपने लिए नहीं, उन लोगों के लिए कर रहा है तो उन्होंने धीरे-धीरे उसका साथ देना शुरू किया। उन्होंने दुकानदारों को भी समझाया कि वे पॉलीथीन को काम में न लेकर कागज की थैलियों, गत्ते के डिब्बों या फिर कपड़े के थैलों का प्रयोग करें। नक्कारखाना में तूती की आवाज कौन सुनता, लेकिन वह भी अपनी धुन का पक्का था। उसने कपड़े के थैले बनाए और उसे बाजार में लोगों को नि:शुल्क दिया। देखते-देखते पर्यावरण संरक्षण के लिए और भी लोग आगे आए। जोधपुर महानगर उसका मिशन बन गया और मारवाड़ को मुक्त करने का अभियान शुरू हो गया। गांधीवाद के आदर्शों पर चलते हुए उसने विरोधियों के पैर छुए और अपने मिशन में सफलता अर्जित की।
परिणामस्वरूप साल 2004 में फ्रांस से पर्यावरण शोधकर्ता फ्रेंक वोगेल अपनी थीसिस के सिलसिले में भारत आए और इसी दौरान वह राजस्थान के धार्मिक स्थलों की यात्रा पर निकल पड़े। वोगेल की दृष्टि एक मेले में प्लास्टिक का कचरा बीननते खमुराम पर पड़ी। खमुराम इस मेले में केवल कचरा ही नहीं बीनन रहा था, बल्कि लोगों को इस कचरे के खतरों से सचेत और जागरूक भी कर रहा था। जिससे प्रभावित होकर फ्रेंक ने उससे बातचीत की और उसके ढ़ेर सारे फोटो खींचकर अपने देश ले गया। फ्रेंक ने यूरोपीय देशों की इस भ्रांति को दूर करने का प्रयास किया कि भारतीय पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। फ्रेंक वोगेल की इस दृष्टि ने खमुराम को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया। 11 दिसंबर 2008 को कोर्चेवेल सिटी (पेरिस) में प्रारम्भ होने वाले तीन दिवसीय इंटरनेशनल प्लेनेट वर्कशॉप में केवल शामिल होने का गौरव ही प्राप्त नहीं हुआ। बल्कि एशिया महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करने का मौका भी मिला। इस वर्कशॉप में वल्र्ड के 300 पर्यावरण शोधकर्ताओं ने शिरकत की थी।
खमुराम ने बताया कि उस पर फ्रेंक वोगेल द्वारा बनाई जा रही डाक्यूमेंट्री (फिल्म) का पहला चरण पूरा हो चुका है। पुन: इसकी शूटिंग 29 सितंबर से जोधपुर में होनी है। इस फिल्म में शोधकर्ता ने प्लास्टिक के प्रभाव को दिखाते हुए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है। खमुराम का मानना है कि सरकारें पर्यावरण की रक्षा के लिए कानून तो बना रहीं हैं, लेकिन इसको एम्पलीमेंट करने में लापरवाह हैं। जिसके चलते पर्यावरण की रक्षा उतनी तीव्र गति से नहीं हो रही है, जितनी तीव्र गति से होनी चाहिए। उनके अनुसार सावन और भादो में बड़ी तादाद में वृक्षारोपण किया जाता है और यह वृक्षारोपण केवल नाटक ही साबित होता है। चूंकि वृक्षारोपण के बाद उसकी पालना करना हम सब भूल जाते हैं। पर्यावरण प्रेमी खमुराम ने बताया कि पिछले दस वर्षों के दौरान वह और उसकी संस्था के सदस्य करीब एक करोड़ लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर चुके हैं। यहां भी मेला भरता है, वे लोग वहीं पहुंच जाते हैं।

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