31 अगस्त 2009

मोबाइल टावर मधुमक्खियों के लिए खतरनाक

तिरुवनंतपुरम। मोबाइल फोनों के टावर केरल में मधुमक्खियों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। एक नए अध्ययन में खुलासा किया गया है कि मोबाइल टावरों और सेल फोन से निकलने वाले वैद्युत चुंबकीय विकिरण में श्रमिक मधुमक्खियों का जीवन समाप्त करने की क्षमता होती है।

उल्लेखनीय है कि श्रमिक मधुमक्खी ही फूलों से मकरंद एकत्रित करती हैं। पर्यावरणविद और प्राणी विज्ञान विभाग में रीडर डा. सैनुद्दीन पत्ताजे ने अपने अध्ययन में कहा है कि केरल के विभिन्न भागों में मधुमक्खियों के छत्तों की संख्या में कमी देखी जा रही है और यदि मोबाइल टावरों की संख्या को रोका नहीं गया तो एक दशक के भीतर केरल से मधुमक्खियों का सफाया हो सकता है।

पत्ताजे ने अपने अध्ययन में पाया है कि जब एक मोबाइल फोन को छत्ते के करीब रखा गया तो पांच से 10 दिनों के भीतर उसकी बस्ती उजड़ गई। क्योंकि श्रमिक मधुमक्खियां अपने छत्ते में नहीं लौटीं, वहां केवल रानी, अंडे और छत्ते में रहने वाली अवयस्क मधुमक्खियां बची रह गई। टावरों से उत्पन्न होने वाली शक्तिशाली तरंगे श्रमिक मधुमक्खियों के खोजी और उद्यमी कौशल को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त होती हैं।

कोल्लम जिले में पुनालुर के एस एन कालेज में अध्यापन करने वाले पत्ताजे ने कहा कि मधुमक्खियों की बस्तियों में जीवन निर्वाह में श्रमिक मधुमक्खियां महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। कुछ महीने पहले पत्ताजे के नेतृत्व में पर्यावरणविदों के दल ने केरल के कोल्लम जिले के विभिन्न भागों में अध्ययन किया था।

उन्होंने पाया कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले विकिरण से गौरैया के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। ये शहरी इलाकों सहित मनुष्यों के रिहायशी क्षेत्रों के पास समूह में रहती हैं। वायनाड के एक मधुमक्खी पालक पैरक्कल चाको ने कहा कि यह सही है कि क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर मधुमक्खियों के छत्तों का विनाश हो रहा है। अभी तक ऐसा माना जाता था कि जलवायु परिवर्तन और आक्रांता कीटों के हमलों के कारण ऐसा हो रहा है।

उन्होंने कहा कि मोबाइल टावर भी खतरे का स्रोत हो सकते हैं। इस बिंदु से जांच की जानी चाहिए। पत्ताजे ने कहा कि हालांकि इस संबंध में विस्तार से अध्ययन की जरूरत है, लेकिन यह तर्कसंगत बात लगती है कि कीट और इसी प्रकार के छोटे जंतु मोबाइल टावरों और सूक्ष्म तरंगों से सबसे आसानी से प्रभावित होते हैं। पत्ताजे ने दावा किया कि जो छत्ते मोबाइल टावरों के पास होते हैं, उनमें मधुमक्खियों के व्यवहारगत पैटर्न में अंतर देखा जा रहा है।

कृषकों को मधुमक्खी पालन से शहद और मोम के रूप में अतिरिक्त आय कराने के अलावा मधुमक्खियां परागण वाले पुष्पों तथा पादपों की मदद कर वनस्पति को फलने फूलने में मदद करती हैं। मधुमक्खी की एक कालोनी [छत्ता] में एक रानी और कुछ ड्रोन सहित 20 से 31 हजार के करीब मधुमक्खियां होती हैं। मधुमक्खियों की आबादी का 90 फीसदी हिस्सा श्रमिक मधुमक्खियों से बना होता है।

हाल में केरल में व्यावसायिक मधुमक्खियों की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है। इसका आधिकारिक कारण उनमें होने वाली बीमारियों और ततैए, चीटियों और मोम कीट के हमले को बताया जा रहा है। उसे रोकने के लिए मधुमक्खी पालकों को लगातार निगरानी रखनी पड़ती है। किसानों ने शिकायत की है कि मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट किस्मों का उपयोग किए जाने से भी नुकसान हुआ है। क्योंकि ए नई किस्म की मधुमक्खियां जलवायु के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं पाती हैं। मधुमक्खियां और अन्य कीट अब भी जीवित बचे हुए हैं और लाखों वर्षो की अवधि में उनमें एक जटिल प्रतिरक्षा प्रणाली उत्पन्न हुई है।

पत्ताजे ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए विचार करना महत्वपूर्ण हो गया है कि वे अचानक क्यों मर रही हैं। स्वाभाविक है कि मानव निर्मित कारकों के बिंदु का मुद्दा उठेगा, जो मधुमक्खियां गायब हो जाती हैं उनका कभी पता नहीं लग पाता।

मधुमक्खी पालकों ने कहा है कि कई छत्तों को वे अचानक ही छोड़ देती हैं। पत्ताजे ने कहा कि मोबाइल टावरों की गैर तार्किक रूप से बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने की जरूरत है और व्यावहारिक समाधान निकालने की जरूरत है। केरल में करीब छह लाख मधुमक्खी के छत्ते हैं और एक से सवा लाख लोग मधुमक्खी पालन में शामिल हैं। अधिकतर लोगों के लिए यह अतिरिक्त आय अर्जित करने का जरिया है। एक छत्ते से चार से पांच किलोग्राम शहद का उत्पादन होता है।

कोई टिप्पणी नहीं: