13 दिसंबर 2014

डबवाली अग्निकांड में दोनों टांगें गंवाई समाजसेवा के लिये फिर खड़ी हुई गीता


नेत्रदान के फार्म भरे, मरणोपरांत शरीर दान की चाह

डबवाली (लहू की लौ) मैं चाहती हूं कि मरणोपरांत मेरी आंखें दान कर दी जायें, ताकि दूसरों की जिंदगी में उजाला भर सकें। मेरे शरीर को रिसर्च के लिये मेडिकल इंस्टीच्यूट को दान दे दिया जाये। ताकि मेडिकल छात्रों का भविष्य संवर सकें। यह कहना है अग्निकांड पीडि़ता गीता का। दर्द भरा पल याद करके वह आज भी सिहर उठती है। अग्निकांड के बाद अब तक की जिंदगी कैसे कटी, वह ही जानती है।
शादी से एक दिन पहले आया आग का सैलाब
23 दिसंबर 1995 को गीता अपनी अध्यापिका सहेली मंजू के साथ डीएवी स्कूल का वार्षिक कार्यक्रम देखने के लिये गई थी। दर्शकों के लिये लगी अंतिम कुर्सियों पर वह बैठी हुई थी। आग भी पीछे से शुरू हुई थी। जोकि तेजी से आगे बढ़ी। आग का पता लगने पर मैरिज पैलेस में अफरा तफरी मच गई। सभी दर्शक अपनी जान बचाने के लिये भागे। गीता नीचे गिर गई। उसके ऊपर लोग गिरते गये। आग लगने के कारण उसकी दोनों टांगें बुरी तरह से झुलस गईं। हालांकि 24 दिसंबर 1995 को गीता की शादी श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) में होनी तय थी। लेकिन गीता ने आगजनी में दोनों टांगें गंवा दी।
बचाओ, बचाओ कहकर सिर उठती थी
अग्निकांड के बाद चार साल तक गीता की जिंदगी कोमा में रही। ऐसा कोई पल नहीं था, जब अग्निकांड की भयावह को याद कर वह विचलित नहीं हुई हो। गीता के पिता अमर सिंह ने 13 दिसंबर 1999 की घटना को याद करते हुये बताया कि अग्निकांड के ठीक चार साल बाद, उसी तारीख को गीता इतनी भयभीत हुई कि आग-आग कहते हुये बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगी। अग्निकांड से उसकी बेटी को मानसिक आघात लगा। अग्निकांड में अपनी दोनों टांगें गंवाने के बाद जब भी वह उनकी तरफ देखती तो उसके बेहोश होने की स्थिति हो जाती। आज भी अग्निकांड का जिक्र करते ही गीता व्यथित हो जाती है। जिसके चलते घर में अग्निकांड के संबंध में बातचीत करने पर पाबंदी लगाई हुई है। साथ में अग्निकांड के संबंध में जानने के लिये गीता से मिलने आने वालों के लिये दरवाजे बंद किये हुये हैं।
शादी न करने का फैसला
अमर सिंह ने बताया कि 24 दिसंबर 1995 को उसकी बेटी के हाथ पीले होने थे, लेकिन अग्निकांड ने उसकी बेटी की टांगों के साथ भगवान ने उससे यह हक भी छीन लिया कि वह अपनी बेटी को डोली में विदा करे। हालांकि कुछ सालों तक उसने गीता की शादी के प्रयास किये। दो युवक गीता की हालत को समझते हुये शादी के लिये तैयार भी हुये। लेकिन उसकी बेटी ने शादी करवाने से साफ इंकार कर दिया। जिसके बाद उन्होंने कभी भी गीता को शादी के लिये नहीं कहा।


अभी सफर बाकी है
आर्टिफिशयल टांगों के जरिये पुन: खड़ी हुई गीता के हौंसले बुलंद हैं। वह डेरा सच्चा सौदा सिरसा की शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग में पिछले दो वर्षों से सेवारत है। मानवता भलाई के लिये चलाये जा रहे 104 कार्यों में अपना योगदान दे रही है। गीता को समाजसेवा के कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लेते देख उसकी सहयोगी भी उससे खासी प्रभावित हैं। उसके सहयोगियों का कहना है कि अग्निकांड जैसी भीषण त्रासदी में से गुजरने के बावजूद गीता में समाजसेवा का जज्बा काबिले तारीफ है। जब उसे आराम करने की सलाह दी जाती है, तो गीता कहती है अभी सफर बाकी है।

नेत्रदान का फार्म भरा
मैं नेत्रदान के साथ-साथ मरणोपरांत अपना शरीर दान करना चाहती हूं। चूंकि मेरे नेत्र किसी की जिंदगी में उजाला फैलाएंगे। शरीर पर रिसर्च करके देश के भावी चिकित्सक कुछ सीख पाएंगे। पिछले दो वर्षों से आध्यात्म के मार्ग पर चलकर बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं। समाजसेवा करके मजा आ रहा है।
-गीता (अग्निकांड पीडि़ता)

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