22 जनवरी 2011

बस में जेब काटी बीस हजार उड़ाए


डबवाली (लहू की लौ) मां का ऑपरेशन करवाने के लिए हनुमानगढ़ से बठिंडा जा रहे एक व्यापारी की चलती बस में बदमाश ने जेब काटकर हजारों रूपए की राशि उड़ा ली।
हनुमानगढ़ की आढ़ती फर्म मै. अरिहन्त ट्रेडिंग कंपनी के मालिक अशोक जिन्दल (46) ने बताया कि उसकी माता लाजवंती देवी (80) बठिंडा के एक निजी अस्पताल में उपचाराधीन है। शुक्रवार को उसकी माता के सिर की ब्लॉकेज का ऑपरेशन होना था। ऑपरेशन के लिए आवश्यक धन राशि जुटाकर वह शुक्रवार सुबह करीब 9 बजकर 45 मिनट पर हनुमानगढ़ से बठिंडा के लिए हरियाणा रोड़वेज की बस से रवाना हुआ था।
डबवाली आकर मालूम पड़ा
बस करीब 11 बजकर 15 मिनट पर डबवाली बस अड्डा के बाहर पहुंची। बस से उतरकर उसने बठिंडा के लिए बस पकडऩे से पूर्व अपनी जेब को टटोला तो देखा कि कोट की अंदरूनी जेब में रखी 20 हजार रूपए की राशि गायब है। जब उसने अपने कोट की जेब को चैक किया तो कोट की बाईं जेब कटी हुई है। इसी दौरान उसकी निगाह भागते हुए एक युवक पर पड़ी, जिसने उसके साथ बस में सफर किया था।
पीछा भी किया
भागते युवक को देखकर अशोक जिन्दल ने शोर मचाया। वहां खड़े ऑटो चालकों की मदद से बदमाश का पीछा भी किया। लेकिन न्यू बस स्टैण्ड रोड़ पर आकर बदमाश आंखों से ओझल हो गया। पीडि़त के अनुसार यह युवक हनुमानगढ़ से ही उसके साथ बैठा था। आयु करीब 23-24 साल थी। युवक का रंग सांवला, कद करीब साढ़े पांच फुट था। पेंट-शर्ट पहनी हुई थी। साथ में पीले रंग का कोट पहना हुआ था। उसने सात-आठ साल की एक बच्ची को गोद में उठा रखा था। युवक हिन्दी बोलता था।
आढ़ती के अनुसार हनुमानगढ़ जंक्शन से डबवाली के लिए बस पकड़ते समय उसने टिकट कटवाने के चक्कर में बीस हजार रूपए की नकदी बाहर निकाल ली। उस समय युवक उसके पीछे खड़ा सब देख रहा था। बस में बैठते समय युवक उसके साथ आकर बैठ गया। हालांकि उसने खतरे को भांपते हुए उसे सीट से उठाने का प्रयास भी किया। लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण, ऊपर से युवक की गोद में लड़की उठाई होने के चलते युवक उसकी जेब काटने में सफल रहा। जेब में बीस हजार रूपए की राशि थी। जिसमें 500-500 रूपए के 40 नोट थे।
पुलिस को नहीं किया सूचित
हालांकि बस अड्डा थाना शहर के बिल्कुल सामने हैं। लेकिन इसके बावजूद पीडि़त अशोक जिन्दल ने पुलिस को सूचित नहीं किया। चूंकि बठिंडा के निजी अस्पताल में उपचाराधीन उसकी माता लाजवंती का ऑपरेशन होना था। मां की फिक्र उसे खाये जा रही थी। पैसों की परवाह किए बगैर उसने तत्काल बठिंडा की बस पकड़कर बठिंडा जाना मुनासिब समझा।

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