05 सितंबर 2009

शिक्षक राष्ट्र निर्माता है

5 सितम्बर पर विशेष
5 सितम्बर का दिन पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन की स्मृति में अध्यापक दिवस के रूप में श्रद्धा एवं विश्वास से मनाया जाता है। इस दिन सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा तथा राज्य सरकारों एवं भारत सरकार द्वारा उन प्रतिभावान अध्यापकों को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष सफलताएं प्राप्त की हो तथा जो शेष समाज के लिए अनुकरणीय बन गये हों। भारत में 10+2+3 शिक्षा प्रणाली के सूत्रधार डॉ. दौलत सिंह कोठारी ने 1968 ईं. में कोठारी आयोग की रिपोर्ट में लिखा कि शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। वह आचार्य है, जो अपने आचरण से आदर्श उदाहरण बनता है। वह गुरू है जो ज्ञान की गुरूता से परिपक्व है। वह कक्षा में राष्ट्र की भावी पीढ़ी को ढालता है। यह कथन शत् प्रतिशत सत्य है। आज सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में अग्रणीय भूमिका निभाने वाले सभी यशस्वी व्यक्तित्वों का निर्माण किसी शिक्षक ने ही तो किया है। आज डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हैं। क्या वे अपने उन शिक्षकों को भूल सकते हैं जिन्होंने उनकी प्रतिभा को विकसित किया। कभी नहीं। जैसे माली एक-एक पौधे को संवारता है, कारीगर एक-एक पत्थर को तराशता है और सुन्दर मूर्ति बनाता है। वैसे ही शिक्षक एक-एक बालक के गुणों को विकसित करता है। कोई चिकित्सक बन जाता है तो कोई इंजीनियर। कोई प्रशासनिक अधिकारी बन जाता है तो कोई व्यापारी। कोई विधानसभा सदस्य बन जाता है, तो कोई संसद सदस्य। कोई प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करता है तो कोई राष्ट्रपति के पद को। कोई पत्रकार बन जाता है तो कोई किसान। इसलिए शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं। लेकिन शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने विषय का इतना ज्ञान तो अवश्य प्राप्त कर ले जिससे उस द्वारा पढ़ाये गये छात्र संतुष्ट हो सकें और उनके हर प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकें। शिक्षक नित्यप्रति अपने घर पर 3-4 घण्टे अवश्य अपने विषय का अध्ययन करें और पूरी तैयारी के साथ कक्षा में जायें। शिक्षक श्यामपट्ट, चाक और डस्टर को सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग करें। यह भी आवश्यक है कि श्यामपट्ट लेख आकर्षक और सुस्पष्ट हो ताकि हर विद्यार्थी को समझने में कठिनाई न हो। शिक्षक का बाह्य व्यक्तित्व प्रभावशाली हो। वेष साफ-सुथरा और सादा हो। कक्षा में विभिन्न परिवारों से आये बच्चों के साथ शिक्षक का व्यवहार ममतापूर्ण होना चाहिए। केवल इतना ही नहीं बल्कि बच्चों के माता-पिता से भी पारिवारिक सम्बन्ध रखने चाहिए। इससे शिक्षक की समाज में अपनी गरिमा बढ़ती है। शिक्षक के अन्त: करण में समाज के प्रति सेवा और समर्पण का भाव हो। निश्चित रूप से ऐसा शिक्षक अपने पद के साथ न्याय करने में समर्थ होगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का जन्म सन् 1835 में हुआ। इसके प्रवत्र्तक लॉड मैकाले, जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी की शिक्षा समिति के प्रथम अध्यक्ष थे, उसने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैरिंग को सिफारिश की थी कि भारत में अंग्रेजी शासन को चलाने के लिए ऐसे बाबू पैदा किये जायें जो रंग-नस्ल से तो भारतीय हो, लेकिन अपने रहन-सहन, आचार-विचार, बोलचाल तथा वेषभूषा में पूर्ण रूप से अंग्रेजों की कार्बन कॉपी लगे। आज आजादी के 62 वर्षों बाद भी शिक्षा प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन नहीं है। शिक्षित युवा शक्ति रोजगार की तालाश में है। एक अनार सौ बीमार की कहावत चरितार्थ हो रही है। सरकारी पदों की प्राप्ति के लिए आज जितनी विकट समस्या है, पहले कभी नहीं थी। आज इंग्लैंड, कनाड़ा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में जाने की होड़ लगी है, शिक्षित भारतीय नवयुवकों में। क्योंकि वहां रोजगार के साधन उपलब्ध हैं। आज भारत से विदेशों को युवा शक्ति का पलायन हो रहा है, जिसे रोकना आवश्यक है। आधुनिक शिक्षा के नाम पर सांस्कृतिक आक्रमण रोकना भी अति आवश्यक है। भारत का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अपनी ओर से प्रयत्नशील है कि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हो। बहुत कुछ किया जा चुका है। लेकिन बहुत कुछ करना भी शेष है। राष्ट्र निर्माण के पुनीत कार्य में शिक्षक, छात्र, अभिभावक एवं प्रशासक सभी मिलकर अपनी-अपनी भूमिका निभायें। -कृष्ण वोहरा सेवानिवृत्त प्रिंसीपल 641, जेल ग्राऊंड, सिरसा (हरि.)

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