05 सितंबर 2009

क्या हजकां सत्ता तक पहुंच सकेगी

डबवाली (लहू की लौ) हजकां में अगर किसी की रणनीति इस समय चल रही है तो वह कुलदीप बिश्नोई की नहीं बल्कि भजनलाल की रणनीति चल रही है। इसी के चलते ही भाजपा से तालमेल करने के लिए हजकां ने बसपा को साथ छोडऩे के लिए मजबूर किया। ऐसा राजनीतिक पर्यवेक्षकों का सोचना है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार हरियाणा में आया राम गया राम के सूत्रधार चौ. भजनलाल स्वयं को राजनीति के पीएचडी कहते रहे हैं और उन्होंने अपनी इस दक्षता को प्रकट करते हुए चौ. देवीलाल के पास बहुमत होते हुए भी उसके विधायकों को अपने पाले में लाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इस बार भी कुछ ऐसा ही खेल भजनलाल खेलने जा रहे हैं।
कहा तो यह जाता है कि हजकां ने बसपा से तालमेल करके एक तीर से दो शिकार किये हैं। एक तो बसपा को बदनाम कर दिया की उसके नेता कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं और दूसरा उसके अच्छे कार्यकर्ताओं को अपने खेमें में खींचने में सफलता हासिल कर ली। परिणामस्वरूप बसपा में विद्रोह हो गया और वे अपने ही राज्य अध्यक्ष के खिलाफ खड़े हो गये।
अब हजकां का भाजपा से गठबंधन की चर्चा फैलाकर हजकां बनने के समय की हवा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी मानते हैं कि भाजपा के सहयोग से हजकां शहरों में अपना अच्छा स्थान बना सकेगी। लेकिन दूसरी ओर भाजपा नेताओं का बार-बार अकेला चलो का नारा देना और किसी भी पार्टी से किसी भी सूरत में गठबंधन न करने का राग अलापना हजकां से दूरी बनाये रख सकता है। अगर भाजपा, हजकां से समझौता भी करती है तो जनता में भाजपा की छवि उसी प्रकार धुंधली हो जाएगी। जिस प्रकार से बंसीलाल को धोखा देने के बाद भाजपा धरातल में ही धंस गई थी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों की माने तो भजनलाल लाल की वर्तमान रणनीति विधानसभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा और यह रणनीति क्या हजकां को सत्ता तक ले जाएगी। इस प्रश्न का उत्तर भी 22 अक्तूबर को घोषित विधानसभा चुनाव के परिणाम बताएंगे।

कोई टिप्पणी नहीं: