डबवाली (लहू की लौ) डबवाली अग्निकांड के पंद्रह साल बाद भी इस कांड के शिकार हुए कई बच्चों के जख्म अभी भी वैसे के वैसे हैं। जैसे पंद्रह साल पूर्व थे। युवा अवस्था में भी प्रभावित बच्चे ही नजर आ रहे हैं। फिलहाल तो मां-बाप इनकी संभाल कर रहा है। लेकिन भविष्य में उनकी संभाल कौन करेगा। विशेषकर उन परिस्थितियों में जब वह लड़की है।
अग्निकांड में आई डीएवी की चौथी कक्षा की नेहा पंद्रह साल बाद भी जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। उसकी हालत उसका दर्द ब्यां कर रही है। पंद्रह साल पूर्व हुए अग्निकांड के बाद नेहा का परिवार चण्डीगढ़ चला गया था। डबवाली कोर्ट परिसर में अपने पिता संजय मिढ़ा के साथ मुआवजा राशि लेने आई नेहा की हालत देखकर कोर्ट परिसर में खड़े सैंकड़ों लोगों की आंखे नम हो गई। अग्निकांड में स्वयं झुलसे संजय मिढ़ा (45) ने बताया कि अग्निकांड से पूर्व उसका डबवाली में ट्रेक्टरों का अच्छा कारोबार था। लेकिन वह और उसकी बेटी नेहा मिढ़ा इस अग्निकांड का शिकार हुई। तभी से उनके पांव नहीं लगे और उन्हें यहां चण्डीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा। उनके अनुसार उनकी बेटी नेहा उस समय डीएवी में चौथी कक्षा की छात्रा थी और आठ वर्ष की थी। इन दिनों उसकी आयु 23 वर्ष है।
मिढ़ा के अनुसार 23 दिसंबर 1995 की घटना को पंद्रह साल बीत चुके हैं। लेकिन नेहा के जख्मों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। उसकी हालत इतनी नाजुक है कि वह न तो उठ-बैठ सकती है और न ही आगे पढऩे के लायक रही है। वह कमजोर इतनी हो चुकी है कि डॉक्टर ने उसकी प्लास्टिक सर्जरी करने से भी इंकार कर दिया है। आयु 23 वर्ष होने के बावजूद भी उसका शारीरिक विकास रूक जाने से वह छोटी बच्ची ही लग रही है। उन्हें चिंता है तो केवल यहीं कि इस समय तो वे उसे संभाल रहे हैं। लेकिन उनके बाद नेहा की परवरिश कौन करेगा।
अग्निकांड त्रासदी का शिकार इस नन्हीं बच्ची की जिन्दगी कैसे बीतेगी और इसको संसार में जीने का अधिकार दे रखने के लिए सरकार इसके लिए क्या करेगी, यह प्रश्न अब भी स्वयं नेहा के जहन में हिलोरे खा रहा है।
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Lahoo Ki Lau
25 दिसंबर 2010
.....नहीं रूकते 'सागरÓ के आंसू
डबवाली (लहू की लौ) 23 दिसंबर को डबवाली के इतिहास का काला दिन कहा जाता है। कहा भी क्यूं ना जाए। 23 दिसंबर 1995 को हुए अग्निकांड ने सैंकड़ों परिवारों को उजाड़कर रख दिया। अग्निकांड में झुलसे लोगों की पहचान तक नहीं हुई। उस दिन सगे-संबंधियों ने अंदाजे भर से शव को अपने सीने से लगाया और मुखाग्नि दी। इतने साल बीतने के बावजूद भी वह दिन किसी को नहीं भूलता। हर साल दिसंबर माह की शुरूआत जख्म कुरेदती है। दिसंबर 23 को प्रत्येक शहर वासी की आंख भर आती है। इस दिन शहर का प्रत्येक व्यक्ति नम आंखों से अग्निकांड स्मारक पर पहुंचकर अग्निकांड में झुलसे लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
दिसंबर 22, 2010। समय 12 बजकर 06 मिनट। अग्निकांड स्मारक स्थल के एक कोने में बैठ इधर-उधर देखता एक व्यक्ति। जैसे किसी को ढूंढ रहा हो। बार-बार आंखे पौंछ रहा। लेकिन उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। संवाददाता की नजर इस व्यक्ति पर पड़ी। भरी आंखों से इस व्यक्ति ने संवाददाता को अपनी पहचान विद्या सागर (50) निवासी एकता नगरी, डबवाली के रूप में करवाई और अपनी दर्द भरी कहानी से भी अवगत करवाया।
विद्या सागर ने बताया कि उसके दो बच्चे नेहा गुप्ता (7) और जतिन (5) डीएवी में पढ़ते थे। 23 दिसंबर 1995 को डीएवी के सातवें वार्षिक समारोह में उन्होंने हिस्सा लिया था। समारोह के लिए दोनों बच्चों में बढ़ा उत्साह था। उन्होंने नई ड्रेसज भी सिलवाई थी। उसकी पत्नी किरण गुप्ता सवा साल के बेटे दीपक को गोद में उठाए समारोह में बच्चों की परफोरमेंस देखने के लिए चली गई।
23 दिसंबर 1995 को वह मेन बाजार में स्थित अपनी खल-बिनौले की दुकान में व्यस्त था। दोपहर बाद करीब 1 बजे उसने समारोह से किरण को लाने के लिए स्कूटर स्टार्ट किया ही था। अचानक दुकान पर ग्राहक आ गया और वह उसी में व्यस्त हो गया। 2 बजे के करीब उसे सूचना मिली कि समारोह में आग लग गई है। सैंकड़ों बच्चे, दर्शक झुलस गए हैं। यह सुनकर वह समारोह स्थल पर पहुंचा। शवों के बीच उसे सवा साल के बेटे दीपक तथा धर्मपत्नी किरण का शव मिला। दीपक अपनी मां किरण से लिपटा हुआ था। बिखरे शवों में से उसके दूसरे बेटे जतिन का शव भी मिल गया। लेकिन उसकी बेटी नेहा का शव नहीं मिला। 24 दिसंबर को उसने पुन: तालाश शुरू की। लेकिन शव बुरी तरह से जले हुए थे। जिन्हें पहचान पाना नामुमकिन था। कलेजे पर पत्थर रखकर उसने कद के अंदाजे से नेहा को पहचाना और अन्य शवों के साथ उसका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन उसे नहीं मालूम वह शव उसकी नेहा का था या किसी ओर का।
विद्या सागर के अनुसार हर साल दिसंबर माह शुरू होते ही 23 दिसंबर 1995 की हृदय को पिघला देनेे वाली घटना दोबारा जेहन में उतर आती है। आंखों में दर्द लिए हर साल दिसंबर 23 को अग्निकांड स्मारक पर आता है। करीब पंद्रह साल पहले घर से सज्ज-संवरकर निकले अपने पारिवारिक सदस्यों को ये आंखे न जाने क्यूं स्मारक में आकर ढूंढने लग जाती हैं। नेहा, जतिन, दीपक और किरण के साथ बिताया जिन्दगी का एक-एक पल खुद-ब-खुद सामने आने लगता है।
विद्या सागर ने बताया कि विश्व के सबसे बड़े अग्निकांड को हुए करीब पंद्रह साल हो चुके हैं। लेकिन आज तक देश की सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। सरकार को ऐसे प्रबंध करने चाहिए ताकि डबवाली अग्निकांड की पुनर्रावृत्ति न हो। उन्हें इस बात का दु:ख है कि 23 दिसंबर 1995 के बाद फौरी तौर पर सरकार ने डबवाली के लोगों तथा अग्निकांड पीडि़तों को इस गम से उबारने के लिए कुछ घोषणाएं की थी। लेकिन पंद्रह साल बाद भी वे महज घोषणाएं हैं।
दिसंबर 22, 2010। समय 12 बजकर 06 मिनट। अग्निकांड स्मारक स्थल के एक कोने में बैठ इधर-उधर देखता एक व्यक्ति। जैसे किसी को ढूंढ रहा हो। बार-बार आंखे पौंछ रहा। लेकिन उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। संवाददाता की नजर इस व्यक्ति पर पड़ी। भरी आंखों से इस व्यक्ति ने संवाददाता को अपनी पहचान विद्या सागर (50) निवासी एकता नगरी, डबवाली के रूप में करवाई और अपनी दर्द भरी कहानी से भी अवगत करवाया।
विद्या सागर ने बताया कि उसके दो बच्चे नेहा गुप्ता (7) और जतिन (5) डीएवी में पढ़ते थे। 23 दिसंबर 1995 को डीएवी के सातवें वार्षिक समारोह में उन्होंने हिस्सा लिया था। समारोह के लिए दोनों बच्चों में बढ़ा उत्साह था। उन्होंने नई ड्रेसज भी सिलवाई थी। उसकी पत्नी किरण गुप्ता सवा साल के बेटे दीपक को गोद में उठाए समारोह में बच्चों की परफोरमेंस देखने के लिए चली गई।
23 दिसंबर 1995 को वह मेन बाजार में स्थित अपनी खल-बिनौले की दुकान में व्यस्त था। दोपहर बाद करीब 1 बजे उसने समारोह से किरण को लाने के लिए स्कूटर स्टार्ट किया ही था। अचानक दुकान पर ग्राहक आ गया और वह उसी में व्यस्त हो गया। 2 बजे के करीब उसे सूचना मिली कि समारोह में आग लग गई है। सैंकड़ों बच्चे, दर्शक झुलस गए हैं। यह सुनकर वह समारोह स्थल पर पहुंचा। शवों के बीच उसे सवा साल के बेटे दीपक तथा धर्मपत्नी किरण का शव मिला। दीपक अपनी मां किरण से लिपटा हुआ था। बिखरे शवों में से उसके दूसरे बेटे जतिन का शव भी मिल गया। लेकिन उसकी बेटी नेहा का शव नहीं मिला। 24 दिसंबर को उसने पुन: तालाश शुरू की। लेकिन शव बुरी तरह से जले हुए थे। जिन्हें पहचान पाना नामुमकिन था। कलेजे पर पत्थर रखकर उसने कद के अंदाजे से नेहा को पहचाना और अन्य शवों के साथ उसका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन उसे नहीं मालूम वह शव उसकी नेहा का था या किसी ओर का।
विद्या सागर के अनुसार हर साल दिसंबर माह शुरू होते ही 23 दिसंबर 1995 की हृदय को पिघला देनेे वाली घटना दोबारा जेहन में उतर आती है। आंखों में दर्द लिए हर साल दिसंबर 23 को अग्निकांड स्मारक पर आता है। करीब पंद्रह साल पहले घर से सज्ज-संवरकर निकले अपने पारिवारिक सदस्यों को ये आंखे न जाने क्यूं स्मारक में आकर ढूंढने लग जाती हैं। नेहा, जतिन, दीपक और किरण के साथ बिताया जिन्दगी का एक-एक पल खुद-ब-खुद सामने आने लगता है।
विद्या सागर ने बताया कि विश्व के सबसे बड़े अग्निकांड को हुए करीब पंद्रह साल हो चुके हैं। लेकिन आज तक देश की सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। सरकार को ऐसे प्रबंध करने चाहिए ताकि डबवाली अग्निकांड की पुनर्रावृत्ति न हो। उन्हें इस बात का दु:ख है कि 23 दिसंबर 1995 के बाद फौरी तौर पर सरकार ने डबवाली के लोगों तथा अग्निकांड पीडि़तों को इस गम से उबारने के लिए कुछ घोषणाएं की थी। लेकिन पंद्रह साल बाद भी वे महज घोषणाएं हैं।
24 दिसंबर 2010
कानों में गूंजती है बच्चों की किलकारियां
डबवाली (लहू की लौ) बचपन में हिन्दोंस्तान-पाकिस्तान बंटवारे का दंश सहन करके डबवाली में आए। जवानी में मेहनत करके अपने आपको स्थापित किया। लेकिन बुढ़ापे में जब आराम का समय आया तो 23 दिसंबर 1995 ने उनके सपनों को उजाड़ दिया। पल भर में परिवार के सदस्य सदा के लिए जुदा हो गए। इस सदमें ने ऐसी टीस दी कि ताउम्र नहीं भुलाई जा सकती।
डबवाली की रामनगर कलोनी के निवासी बिशन कुमार मिढ़ा (72) तथा उनकी धर्मपत्नी कृष्णा मिढ़ा (70) ने बताया कि उनकी पुत्रवधू डिम्पल और बेबी तथा साथ में पौत्रियां रीतू, गुड्डू और पौत्र नन्नू पंद्रह साल पहले डीएवी स्कूल के सालाना समारोह में भाग लेने के लिए गए थे। लेकिन वहां पंडाल में लगी आग ने युवा पुत्रवधुओं सहित पौत्र-पौत्रियों को उनसे छीन लिया। घर के जिस आंगन में बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, पुत्रवधुओं का स्नेह घर में चार चांद लगा रहा था, वह आंगन कुछ पलो में सुनसान हो गया। भगवान का क्रूर खेल यही समाप्त नहीं हुआ। बल्कि पुत्रवधू डिम्पल और पौत्री गुड्डू की मौत के बाद जो सदमा उसके बेटे भूपिन्द्र सिंह को लगा, उसने उसके बेटे को भी छीन लिया।
बिशन कुमार मिढ़ा के अनुसार साल 1948 में वे लोग पाकिस्तान में अपना कपड़े का बढिय़ा कारोबार लूटा-पुटा कर भारत आए थे। डबवाली में आकर उन्होंने सख्त मेहनत की। जिसका फल उन्हें अच्छे कारोबार के रूप में मिला। क्षेत्र में उनका नाम था। लेकिन 1995 की विभित्सय घटना ने उन्हें बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया। जिसके चलते वे लोग अपनी दुकान छोड़कर घर पर बैठने को मजबूर हो गए।
आंखों में आंसू, चेहरे पर उदासी लिए हुए बिशन मिढ़ा ने बताया कि सदमें ने उन्हें जवानी में ही बुढ़ापा दे दिया। अब तो उनकी हालत यह है कि घर से दो कदम बाहर भी नहीं रख सकते। इन हालतों में उन्हें सरकार या डीएवी से कोई उम्मीद नहीं है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने पीडि़त परिवारों के सदस्यों को नौकरी देने का वायदा किया था, वह वायदा भी अब काफूर है। उन्होंने कहा कि मुआवजा किसी की जिन्दगी वापिस नहीं लौटा सकता। लेकिन जो गम पंद्रह साल पूर्व उन्हें मिला, वह अब भी उन्हें पहले जैसा दर्द दे रहा है। उठते-बैठते, सोते-जागते उनके कानों में केवल रीतू, गुड्डू और नन्नू की किलकारियां गूंजती हैं।
डबवाली की रामनगर कलोनी के निवासी बिशन कुमार मिढ़ा (72) तथा उनकी धर्मपत्नी कृष्णा मिढ़ा (70) ने बताया कि उनकी पुत्रवधू डिम्पल और बेबी तथा साथ में पौत्रियां रीतू, गुड्डू और पौत्र नन्नू पंद्रह साल पहले डीएवी स्कूल के सालाना समारोह में भाग लेने के लिए गए थे। लेकिन वहां पंडाल में लगी आग ने युवा पुत्रवधुओं सहित पौत्र-पौत्रियों को उनसे छीन लिया। घर के जिस आंगन में बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, पुत्रवधुओं का स्नेह घर में चार चांद लगा रहा था, वह आंगन कुछ पलो में सुनसान हो गया। भगवान का क्रूर खेल यही समाप्त नहीं हुआ। बल्कि पुत्रवधू डिम्पल और पौत्री गुड्डू की मौत के बाद जो सदमा उसके बेटे भूपिन्द्र सिंह को लगा, उसने उसके बेटे को भी छीन लिया।
बिशन कुमार मिढ़ा के अनुसार साल 1948 में वे लोग पाकिस्तान में अपना कपड़े का बढिय़ा कारोबार लूटा-पुटा कर भारत आए थे। डबवाली में आकर उन्होंने सख्त मेहनत की। जिसका फल उन्हें अच्छे कारोबार के रूप में मिला। क्षेत्र में उनका नाम था। लेकिन 1995 की विभित्सय घटना ने उन्हें बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया। जिसके चलते वे लोग अपनी दुकान छोड़कर घर पर बैठने को मजबूर हो गए।
आंखों में आंसू, चेहरे पर उदासी लिए हुए बिशन मिढ़ा ने बताया कि सदमें ने उन्हें जवानी में ही बुढ़ापा दे दिया। अब तो उनकी हालत यह है कि घर से दो कदम बाहर भी नहीं रख सकते। इन हालतों में उन्हें सरकार या डीएवी से कोई उम्मीद नहीं है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने पीडि़त परिवारों के सदस्यों को नौकरी देने का वायदा किया था, वह वायदा भी अब काफूर है। उन्होंने कहा कि मुआवजा किसी की जिन्दगी वापिस नहीं लौटा सकता। लेकिन जो गम पंद्रह साल पूर्व उन्हें मिला, वह अब भी उन्हें पहले जैसा दर्द दे रहा है। उठते-बैठते, सोते-जागते उनके कानों में केवल रीतू, गुड्डू और नन्नू की किलकारियां गूंजती हैं।
दर्द भरी कहानी है शैरी की
मां का साया उठने के बाद, पिता ने भी दुत्कारा, सरकारी मदद की जरूरत
डबवाली (लहू की लौ) दो साल की उम्र में मां ममता की ममतामयी छाया सिर से उठ गई। महज पांच साल की उम्र में पिता ने दुत्कार दिया। दादा-दादी, अपाहिज बुआ और चाचा ने परवरिश करके 17 साल का कर दिया। चार जनें मिलकर महज कुल 2500 रूपए महीना की पेंशन से अपने इस दुलारे को इंजीनियर बनाना चाहते हैं।
यह कोई हिन्दी फिल्म की कहानी नहीं। बल्कि यह दर्दभरी कहानी शैरी नामक युवक की है। जिसने 23 दिसंबर 1995 को डबवाली में घटित हुए अग्निकांड में अपनी माता को गंवा दिया। पिता के हाथ उसकी परवरिश आई, लेकिन पिता ने नई शादी के बाद बेटे को भूला दिया। जिसका सहारा बने वृद्धा अवस्था में उसके दादा-दादी तथा अपाहिज बुआ और चाचा।
शैरी शहर की रामनगर कलोनी में अपने दादा बिहारी लाल मिढ़ा (76), कृष्णा देवी (72), अपाहिज बुआ सरोज रानी (42), चाचा अशोक कुमार (35) के साथ रह रहा है। शैरी (17) ने बताया कि वह इस समय डीएवी स्कूल डबवाली में 12वीं कक्षा के नॉन मेडीकल ग्रुप का छात्र है। उसका सपना है कि वह इंजीनियर बनकर देश की सेवा के साथ-साथ अपने वृद्ध दादा-दादी और अपाहिज बुआ तथा चाचा का सहारा बन सके। लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए उसे पढ़ाई में मदद की जरूरत है। यहीं नहीं बल्कि इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी की भी जरूरत है।
शैरी के दादा बिहारी लाल मिढ़ा (76) ने बताया कि 1948 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान उन्हें अपना अच्छा चलता कपड़े का व्यवसाय पाकिस्तान से गंवाकर भारत के नगर डबवाली में आना पड़ा। यहां उन्होंने मेहनत की और शहर में नाम तथा यश पाया। अच्छा कारोबार था लेकिन डबवाली अग्निकांड ने उन्हें बुरी तरह से बिखेर दिया। उसकी आलीशान कोठी महज 8 लाख में बिक गई और नगर के मुख्य बाजार में स्थित कपड़े की बढिय़ा चलती दुकान महज 11 लाख में बेचनी पड़ी। जैसे-तैसे कर्ज तो चुका दिया। लेकिन अब उनके पास सहारे के लिए कुछ नहीं बचा। अग्निकांड में उसकी पुत्रवधू ममता मिढ़ा, जोकि डीएवी डबवाली में होनहार म्यूजिक अध्यापिका थी, 23 दिसंबर 1995 को वह मंच पर बच्चों का कार्यक्रम करवा रही थी, इस समारोह में लगी आग ने उसे उनसे छीन लिया। अब उन्हें तथा उनकी धर्मपत्नी को 500-500, अपाहिज बेटे अशोक तथा बेटी सरोज को 750-750 रूपये पेंशन मिलती है। इसी से ही वे गुजारा चलाते आ रहे हैं। उनकी इच्छा अपने पौत्र शैरी की इच्छा के अनुरूप उसे इंजीनियर बनाने की है। लेकिन आर्थिक हालतों के गुजरते वे उसे इंजीनियर कैसे बनाएं, यह समस्या उनके सामने है।
मिढ़ा ने कहा कि बुढ़ापे से जूझ रहे अग्निकांड पीडि़तों को सरकार मुआवजे के अतिरिक्त इतनी मासिक पेंशन दे कि उनका बुढ़ापा आसानी से गुजर सके। उनके आश्रय में पल रहे बच्चों को भी वे सहारा दे सकें। जिक्र योग है कि बिहारी लाल मिढ़ा की हालत इन दिनों काफी नाजुक है। वे मुश्किल से ही चल-फिर सकते हैं। हृदय और मधुमेह की समस्या ने उसकी आंखों की रोशनी भी छीन ली है। उसे सहारे की जरूरत है, जो सरकार आर्थिक सहायता करके ही कर सकती है।
यहां विशेषकर उल्लेखनीय है कि 23 दिसंबर 1995 को डीएवी स्कूल के सालाना समारोह में धधकी आग से वहां मौजूद 1300 दर्शकों में से 442 लोग शहीद हुए। जबकि 150 से भी ज्यादा घायल हुए। लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें अग्निकांड ने इतना भयंकर सदमा दिया है, कि वो अब तक भी इस सदमें से नहीं उठ पाए हैं। उनकी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति बुरी तरह डांवाडोल है।
डबवाली (लहू की लौ) दो साल की उम्र में मां ममता की ममतामयी छाया सिर से उठ गई। महज पांच साल की उम्र में पिता ने दुत्कार दिया। दादा-दादी, अपाहिज बुआ और चाचा ने परवरिश करके 17 साल का कर दिया। चार जनें मिलकर महज कुल 2500 रूपए महीना की पेंशन से अपने इस दुलारे को इंजीनियर बनाना चाहते हैं।
यह कोई हिन्दी फिल्म की कहानी नहीं। बल्कि यह दर्दभरी कहानी शैरी नामक युवक की है। जिसने 23 दिसंबर 1995 को डबवाली में घटित हुए अग्निकांड में अपनी माता को गंवा दिया। पिता के हाथ उसकी परवरिश आई, लेकिन पिता ने नई शादी के बाद बेटे को भूला दिया। जिसका सहारा बने वृद्धा अवस्था में उसके दादा-दादी तथा अपाहिज बुआ और चाचा।
शैरी शहर की रामनगर कलोनी में अपने दादा बिहारी लाल मिढ़ा (76), कृष्णा देवी (72), अपाहिज बुआ सरोज रानी (42), चाचा अशोक कुमार (35) के साथ रह रहा है। शैरी (17) ने बताया कि वह इस समय डीएवी स्कूल डबवाली में 12वीं कक्षा के नॉन मेडीकल ग्रुप का छात्र है। उसका सपना है कि वह इंजीनियर बनकर देश की सेवा के साथ-साथ अपने वृद्ध दादा-दादी और अपाहिज बुआ तथा चाचा का सहारा बन सके। लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए उसे पढ़ाई में मदद की जरूरत है। यहीं नहीं बल्कि इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी की भी जरूरत है।
शैरी के दादा बिहारी लाल मिढ़ा (76) ने बताया कि 1948 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान उन्हें अपना अच्छा चलता कपड़े का व्यवसाय पाकिस्तान से गंवाकर भारत के नगर डबवाली में आना पड़ा। यहां उन्होंने मेहनत की और शहर में नाम तथा यश पाया। अच्छा कारोबार था लेकिन डबवाली अग्निकांड ने उन्हें बुरी तरह से बिखेर दिया। उसकी आलीशान कोठी महज 8 लाख में बिक गई और नगर के मुख्य बाजार में स्थित कपड़े की बढिय़ा चलती दुकान महज 11 लाख में बेचनी पड़ी। जैसे-तैसे कर्ज तो चुका दिया। लेकिन अब उनके पास सहारे के लिए कुछ नहीं बचा। अग्निकांड में उसकी पुत्रवधू ममता मिढ़ा, जोकि डीएवी डबवाली में होनहार म्यूजिक अध्यापिका थी, 23 दिसंबर 1995 को वह मंच पर बच्चों का कार्यक्रम करवा रही थी, इस समारोह में लगी आग ने उसे उनसे छीन लिया। अब उन्हें तथा उनकी धर्मपत्नी को 500-500, अपाहिज बेटे अशोक तथा बेटी सरोज को 750-750 रूपये पेंशन मिलती है। इसी से ही वे गुजारा चलाते आ रहे हैं। उनकी इच्छा अपने पौत्र शैरी की इच्छा के अनुरूप उसे इंजीनियर बनाने की है। लेकिन आर्थिक हालतों के गुजरते वे उसे इंजीनियर कैसे बनाएं, यह समस्या उनके सामने है।
मिढ़ा ने कहा कि बुढ़ापे से जूझ रहे अग्निकांड पीडि़तों को सरकार मुआवजे के अतिरिक्त इतनी मासिक पेंशन दे कि उनका बुढ़ापा आसानी से गुजर सके। उनके आश्रय में पल रहे बच्चों को भी वे सहारा दे सकें। जिक्र योग है कि बिहारी लाल मिढ़ा की हालत इन दिनों काफी नाजुक है। वे मुश्किल से ही चल-फिर सकते हैं। हृदय और मधुमेह की समस्या ने उसकी आंखों की रोशनी भी छीन ली है। उसे सहारे की जरूरत है, जो सरकार आर्थिक सहायता करके ही कर सकती है।
यहां विशेषकर उल्लेखनीय है कि 23 दिसंबर 1995 को डीएवी स्कूल के सालाना समारोह में धधकी आग से वहां मौजूद 1300 दर्शकों में से 442 लोग शहीद हुए। जबकि 150 से भी ज्यादा घायल हुए। लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें अग्निकांड ने इतना भयंकर सदमा दिया है, कि वो अब तक भी इस सदमें से नहीं उठ पाए हैं। उनकी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति बुरी तरह डांवाडोल है।
पंद्रह सालों से राजनीति का शिकार बनाए जा रहे अग्निकांड पीडि़त
डबवाली (लहू की लौ) पंद्रह साल से अग्निकांड पीडि़तों को राजनीतिक अपनी राजनीति का ही शिकार बनाते आ रहे हैं। वोटों में पीडि़तों को सुविधाएं देने के नाम पर वोट तक बटोरते रहे हैं। लेकिन उन्हें पंद्रह सालों में कड़े संघर्ष के बाद केवल मुआवजा ही मिल पाया है। वह भी अभी अधूरा है। जबकि आश्वासनों के नाम पर कई लालीपॉप थमाए जा चुके हैं।
अग्निकांड के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने डबवाली आकर शहीदों की स्मृति में मेडीकल कॉलेज बनाने की घोषणा की थी और इसके साथ ही डबवाली के प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को सामान्य अस्पताल का दर्जा देकर 100 बिस्तर का अस्पताल देने के साथ-साथ इसमें बर्न यूनिट भी बनाने का वायदा किया था। लेकिन अभी तक यह अस्पताल 60 बिस्तरों तक ही सीमित है, वह भी कागजों में। बर्न यूनिट तो बनाने का नाम तक नहीं है।
सरकारों ने अग्निकांड पीडि़तों के नाम पर सहानुभूति बटोरने के लिए डबवाली में स्टेडियम बनाने की घोषणा की और स्टेडियम बना भी दिया। लेकिन इसे अग्निकांड में शहीद हुए बच्चों की स्मृति में केवल नाम दिया गया है। जबकि राजनीतिक फायदे के बाद इसका नाम चौ. दलबीर सिंह स्टेडियम रखा गया। हालांकि राजीव गांधी की स्मृति में कम्युनिटी हाल बनाया गया। लेकिन बाद में इसे भी यह कहकर प्रचारित किया गया कि इसे डबवाली अग्निकांड में आए बच्चों की स्मृति में बनाया गया है। अधिकांश अग्निकांड पीडि़तों का मानना है कि केवल भवन बनाने से उनके पेट की भूख शांत नहीं हो सकती। जिनको नौकरियों की जरूरत है, उन्हें नौकरी देकर और जिनको इलाज की जरूरत है, उन्हें इलाज देकर ही उनकी समस्या का समाधान किया जा सकता है।
अग्निकांड में अपने पति रविन्द्र कौशल को खो चुकी सरोज कौशल का कहना है कि उसके दो बेटे और एक बेटी है। मेहनत-मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से उसने उन्हें पाला-पोसा है। अग्निकांड के बाद सरकार ने मृतक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का भरोसा दिलाया था। लेकिन सरकारी नौकरी तो दूर सरकार ने उसकी कोई सहायता भी नहीं की।
अग्निकांड पीडि़त रमेश सचदेवा के अनुसार पिछले पंद्रह सालों से डबवाली अग्निकांड को लेकर सरकारों की भूमिका नकारात्मक ही रही है। जबकि सरकार को चाहिए कि वह इस दिन को पूरे देश में अग्नि सुरक्षा दिवस के रूप में मनाए और अग्नि से कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है, इस संबंध में जन जागरण अभियान चलाए।
उन्होंने कहा कि आज भी ऐसे पीडि़त परिवार हैं, जिनकी परिवारिक स्थिति काफी नाजुक हो चुकी है। कुछ की हालत तो रि-मैरिज के बावजूद भी पेचिदा हो चुकी है। उनको समाज की मुख्यधारा में लाने तथा उन्हें पुर्नस्थापित करने के लिए सद्भावना कमेटी का गठन किया जाए। जो उनके जख्मों पर मरहम लगाए। उनके अनुसार कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जिनको आज नौकरी की जरूरत है। सरकार उन्हें उनकी योग्यता अनुसार नौकरी दे। बॉबी और सुमन जैसे ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके लिए उनके पूरे जीवन भर के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए और जो बच्चे इस कांड के कारण अपनी पढ़ाई को आगे जारी नहीं रख सके, उन्हें भी गुजारा करने के लिए व्यापक आर्थिक सहायता की जरूरत है, जो उन्हें दी जानी चाहिए।
इधर कई अग्निकांड पीडि़तों ने तो हर साल की ब्यानबाजी के बाद अब अपना दुखड़ा भी सुनाना बंद कर दिया है। उनका कहना है कि वे पिछले पंद्रह बरसों से सरकारों को अपनी दु:ख भरी कहानी सुनाते आ रहे हैं। जब उनकी सुनवाई ही नहीं होनी, तो बेहतर है कि मन मसोस कर भीतर ही भीतर अपने दु:ख को पी लिया जाए।
सरकार ने अग्निकांड में शहीद हुए बच्चों की स्मृति में नाम में तो डबवाली नगर में अस्पताल, कम्युनिटी हाल और स्टेडियम बनाया है। लेकिन वास्तव में अग्निपीडि़तों के अनुसार उन्हें भूल-भुलैया में ही रखा गया है।
अग्निकांड के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने डबवाली आकर शहीदों की स्मृति में मेडीकल कॉलेज बनाने की घोषणा की थी और इसके साथ ही डबवाली के प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को सामान्य अस्पताल का दर्जा देकर 100 बिस्तर का अस्पताल देने के साथ-साथ इसमें बर्न यूनिट भी बनाने का वायदा किया था। लेकिन अभी तक यह अस्पताल 60 बिस्तरों तक ही सीमित है, वह भी कागजों में। बर्न यूनिट तो बनाने का नाम तक नहीं है।
सरकारों ने अग्निकांड पीडि़तों के नाम पर सहानुभूति बटोरने के लिए डबवाली में स्टेडियम बनाने की घोषणा की और स्टेडियम बना भी दिया। लेकिन इसे अग्निकांड में शहीद हुए बच्चों की स्मृति में केवल नाम दिया गया है। जबकि राजनीतिक फायदे के बाद इसका नाम चौ. दलबीर सिंह स्टेडियम रखा गया। हालांकि राजीव गांधी की स्मृति में कम्युनिटी हाल बनाया गया। लेकिन बाद में इसे भी यह कहकर प्रचारित किया गया कि इसे डबवाली अग्निकांड में आए बच्चों की स्मृति में बनाया गया है। अधिकांश अग्निकांड पीडि़तों का मानना है कि केवल भवन बनाने से उनके पेट की भूख शांत नहीं हो सकती। जिनको नौकरियों की जरूरत है, उन्हें नौकरी देकर और जिनको इलाज की जरूरत है, उन्हें इलाज देकर ही उनकी समस्या का समाधान किया जा सकता है।
अग्निकांड में अपने पति रविन्द्र कौशल को खो चुकी सरोज कौशल का कहना है कि उसके दो बेटे और एक बेटी है। मेहनत-मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से उसने उन्हें पाला-पोसा है। अग्निकांड के बाद सरकार ने मृतक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का भरोसा दिलाया था। लेकिन सरकारी नौकरी तो दूर सरकार ने उसकी कोई सहायता भी नहीं की।
अग्निकांड पीडि़त रमेश सचदेवा के अनुसार पिछले पंद्रह सालों से डबवाली अग्निकांड को लेकर सरकारों की भूमिका नकारात्मक ही रही है। जबकि सरकार को चाहिए कि वह इस दिन को पूरे देश में अग्नि सुरक्षा दिवस के रूप में मनाए और अग्नि से कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है, इस संबंध में जन जागरण अभियान चलाए।
उन्होंने कहा कि आज भी ऐसे पीडि़त परिवार हैं, जिनकी परिवारिक स्थिति काफी नाजुक हो चुकी है। कुछ की हालत तो रि-मैरिज के बावजूद भी पेचिदा हो चुकी है। उनको समाज की मुख्यधारा में लाने तथा उन्हें पुर्नस्थापित करने के लिए सद्भावना कमेटी का गठन किया जाए। जो उनके जख्मों पर मरहम लगाए। उनके अनुसार कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जिनको आज नौकरी की जरूरत है। सरकार उन्हें उनकी योग्यता अनुसार नौकरी दे। बॉबी और सुमन जैसे ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके लिए उनके पूरे जीवन भर के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए और जो बच्चे इस कांड के कारण अपनी पढ़ाई को आगे जारी नहीं रख सके, उन्हें भी गुजारा करने के लिए व्यापक आर्थिक सहायता की जरूरत है, जो उन्हें दी जानी चाहिए।
इधर कई अग्निकांड पीडि़तों ने तो हर साल की ब्यानबाजी के बाद अब अपना दुखड़ा भी सुनाना बंद कर दिया है। उनका कहना है कि वे पिछले पंद्रह बरसों से सरकारों को अपनी दु:ख भरी कहानी सुनाते आ रहे हैं। जब उनकी सुनवाई ही नहीं होनी, तो बेहतर है कि मन मसोस कर भीतर ही भीतर अपने दु:ख को पी लिया जाए।
सरकार ने अग्निकांड में शहीद हुए बच्चों की स्मृति में नाम में तो डबवाली नगर में अस्पताल, कम्युनिटी हाल और स्टेडियम बनाया है। लेकिन वास्तव में अग्निपीडि़तों के अनुसार उन्हें भूल-भुलैया में ही रखा गया है।
ज्यों के त्योंअग्निकांड के कारण
डबवाली (लहू की लौ) विश्व का सबसे बड़ा अग्निकांड जिन कारणों को लेकर घटित हुआ, वह कारण आज भी ज्यों के त्यों कायम है। इससे न तो प्रशासन ने और न ही सरकार ने कोई सबक लिया है।
डबवाली अग्निकांड फायर विक्टम एसोसिएशन के पूर्व प्रवक्ता रामप्रकाश सेठी ने बताया कि विश्व की सबसे बड़ी यह ट्रेजडी डबवाली में घटित हुई, तो उस समय केवल डबवाली का प्रशासन ही नहीं बल्कि प्रदेश, देश और विश्व की सरकारें हिल गई थीं। उस समय अग्निकांड के लिए जिम्मेवार कमियों को दूर करने के प्रयास किए जाने पर जोर दिया जाना शुरू हो गया था। लेकिन इस घटना को बीते पंद्रह वर्षों के बाद भी सरकार की सोच में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
आज भी विद्यालयों में अग्निश्मक यंत्र नहीं है, प्रशासन की अनुमति के बिना पण्डाल बन रहे हैं और उनमें निर्धारित संख्या में गेट नहीं रखे जाते, यहां तक की समारोह पंडालों के पास भी आग जलाकर भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है। हरियाणा में उस समय यह भी आदेश जारी किए गए थे, कि जब भी कहीं सार्वजनिक स्थल पर कोई विवाह समारोह, जागरण आदि हो तो उसकी स्वीकृत्ति नगरपालिका से ली जाए, ताकि वहां पर फायर ब्रिगेड की व्यवस्था की जा सकें। यह सब भी नदारद है।
इससे भी बढ़कर अगर कहीं कोई कमी रह गई है, तो वह डबवाली नगर में आज भी देखी जा सकती है। नगरपालिका की फायर ब्रिगेड को चलाने के लिए चालक ही नहीं है। यदि चालक नहीं होगा, तो फायर ब्रिगेड किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कैसे पहुंच पाएगी। जानकार सूत्रों के अनुसार फायर ब्रिगेड पर तीन चालकों की जरूरत है और सात फायरमैन लेकिन न तो चालक हैं और न ही पूरे फायरमैन।
इस संदर्भ में उपमण्डलाधीश तथा डबवाली नगरपालिका के कार्यकारी प्रशासक डॉ. मुनीश नागपाल से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि वे प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त थे। हालांकि इस संबंध में साक्षात्कार लिया जा चुका है और शीघ्र ही इनकी नियुक्ति कर दी जाएगी।
डबवाली अग्निकांड फायर विक्टम एसोसिएशन के पूर्व प्रवक्ता रामप्रकाश सेठी ने बताया कि विश्व की सबसे बड़ी यह ट्रेजडी डबवाली में घटित हुई, तो उस समय केवल डबवाली का प्रशासन ही नहीं बल्कि प्रदेश, देश और विश्व की सरकारें हिल गई थीं। उस समय अग्निकांड के लिए जिम्मेवार कमियों को दूर करने के प्रयास किए जाने पर जोर दिया जाना शुरू हो गया था। लेकिन इस घटना को बीते पंद्रह वर्षों के बाद भी सरकार की सोच में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
आज भी विद्यालयों में अग्निश्मक यंत्र नहीं है, प्रशासन की अनुमति के बिना पण्डाल बन रहे हैं और उनमें निर्धारित संख्या में गेट नहीं रखे जाते, यहां तक की समारोह पंडालों के पास भी आग जलाकर भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है। हरियाणा में उस समय यह भी आदेश जारी किए गए थे, कि जब भी कहीं सार्वजनिक स्थल पर कोई विवाह समारोह, जागरण आदि हो तो उसकी स्वीकृत्ति नगरपालिका से ली जाए, ताकि वहां पर फायर ब्रिगेड की व्यवस्था की जा सकें। यह सब भी नदारद है।
इससे भी बढ़कर अगर कहीं कोई कमी रह गई है, तो वह डबवाली नगर में आज भी देखी जा सकती है। नगरपालिका की फायर ब्रिगेड को चलाने के लिए चालक ही नहीं है। यदि चालक नहीं होगा, तो फायर ब्रिगेड किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कैसे पहुंच पाएगी। जानकार सूत्रों के अनुसार फायर ब्रिगेड पर तीन चालकों की जरूरत है और सात फायरमैन लेकिन न तो चालक हैं और न ही पूरे फायरमैन।
इस संदर्भ में उपमण्डलाधीश तथा डबवाली नगरपालिका के कार्यकारी प्रशासक डॉ. मुनीश नागपाल से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि वे प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त थे। हालांकि इस संबंध में साक्षात्कार लिया जा चुका है और शीघ्र ही इनकी नियुक्ति कर दी जाएगी।
अग्निकांड पीडि़तों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी
डबवाली (लहू की लौ) करीब पंद्रह साल पूर्व डबवाली में घटित अग्निकांड की दुखद छाया अभी भी नगर का पीछा नहीं छोड़ रही है। पीडि़तों में इस कांड का दर्द भले ही छुप गया है। लेकिन भीतर ही भीतर मधुमेह की तरह उन्हें खा रहा है। पीडि़तों को सरकारों से बड़ी आशाएं थी। लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला। अगर कहीं से कुछ मिला, तो वह न्याय अदालत से ही मिला। जिससे पीडि़तों के जख्म कुछ शांत हुए, लेकिन अभी भी जख्मों पर मरहम लगाने के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है।
23 दिसंबर 1995 को 1 बजकर 47 मिनट पर डबवाली के डीएवी स्कूल द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह में अचानक आग लगने से 442 दर्शक काल का ग्रास बन गए। जिसमें 136 महिलाएं, 258 बच्चे शामिल थे। जबकि 150 से भी अधिक घायल हुए। विश्व में अब तक का यह सबसे बड़ा अग्निकांड है। जिसमें इतनी भारी संख्या में जीवित लोग झुलस कर शहीद हो गए और घायल हुए। घायलों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चला और कुछ घायल हो ऐसे भी हैं, जिनका आज भी इलाज चल रहा है।
अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन डबवाली के प्रवक्ता विनोद बांसल ने बताया कि साल 1996 में न्याय पाने के लिए एसोसिएशन को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जाना पड़ा। अदालत ने एसोसिएशन की याचिका पर साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश टीपी गर्ग पर आधारित एक सदस्यीय आयोग का गठन करके उन्हें संबंधित पक्षों पर मुआवजा निर्धारित करने का अधिकार दिया। मार्च 2009 को आयोग ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दी। नवंबर 2009 में हाईकोर्ट ने मुआवजा के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार को 45 प्रतिशत और डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत मुआवजा राशि पीडि़तों को अदा करने के आदेश दिए। अदालत ने सरकार को 45 प्रतिशत मुआवजा के रूप में 21 करोड़, 26 लाख, 11 हजार 828 रूपए और 30 लाख रूपए ब्याज के रूप में अदा करने के आदेश दिए। जबकि डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत के रूप में 30 करोड़ रूपए की राशि अदा करने के लिए कहा।
आदेश के बावजूद भी करना पड़ा संघर्ष
अग्निकांड पीडि़तों को अदालत द्वारा मुआवजा दिए जाने के आदेश जारी करने के बावजूद भी जब सरकार ने इसके विरूद्ध अपील करने की ठानी तो इसकी भनक पाकर इनेलो से डबवाली के विधायक डॉ. अजय सिंह चौटाला को अग्निकांड पीडि़तों को साथ लेकर संघर्ष करना पड़ा। जिसके चलते सरकार ने तो अपने हाथ पीछे खींच लिए। लेकिन डीएवी मुआवजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चला गया।
डीएवी को भरना पड़ा 10 करोड़
सुप्रीम कोर्ट में मुआवजा से राहत पाने के लिए गए डीएवी संस्थान को उच्चतम न्यायालय ने 10 करोड़ रूपए की राशि पीडि़तों को देने के आदेश दिए और इसके बाद सुनवाई करने की बात कही। इससे मजबूर होकर 15 मार्च 2010 को डीएवी संस्थान ने 10 करोड़ रूपए की राशि अदालत में जमा करवाई। अब 5 जनवरी 2011 को इस याचिका पर सुनवाई होनी है। पीडि़तों को अदालत से न्याय की आशा है, जिसके चलते पीडि़तों को उम्मीद बंधी है कि उच्चतम न्यायालय केवल पीडि़तों के पक्ष में ही निर्णय नहीं करेगी, बल्कि उन्हें जो मुआवजा कम मिला है, उसे भी बढ़ाकर देगी।
अग्निकांड पीडि़तों को उच्च न्यायालय ने मुआवजा राशि अदा करने के आदेश देकर उनके जख्मों पर मरहम तो लगाई है। लेकिन जख्मों की टीस अभी भी पीडि़तों के बदन और मन पर कायम है। जिसको समय के साथ-साथ उनके रिहबेलीटेशन के लिए और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। जिसमें बेरोजगारों के लिए रोजगार, पीडि़तों के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा और जब तक उन्हें रोजगार नहीं मिलता, तब तक उन्हें आर्थिक सहायता।
23 दिसंबर 1995 को 1 बजकर 47 मिनट पर डबवाली के डीएवी स्कूल द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह में अचानक आग लगने से 442 दर्शक काल का ग्रास बन गए। जिसमें 136 महिलाएं, 258 बच्चे शामिल थे। जबकि 150 से भी अधिक घायल हुए। विश्व में अब तक का यह सबसे बड़ा अग्निकांड है। जिसमें इतनी भारी संख्या में जीवित लोग झुलस कर शहीद हो गए और घायल हुए। घायलों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चला और कुछ घायल हो ऐसे भी हैं, जिनका आज भी इलाज चल रहा है।
अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन डबवाली के प्रवक्ता विनोद बांसल ने बताया कि साल 1996 में न्याय पाने के लिए एसोसिएशन को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जाना पड़ा। अदालत ने एसोसिएशन की याचिका पर साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश टीपी गर्ग पर आधारित एक सदस्यीय आयोग का गठन करके उन्हें संबंधित पक्षों पर मुआवजा निर्धारित करने का अधिकार दिया। मार्च 2009 को आयोग ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दी। नवंबर 2009 में हाईकोर्ट ने मुआवजा के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार को 45 प्रतिशत और डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत मुआवजा राशि पीडि़तों को अदा करने के आदेश दिए। अदालत ने सरकार को 45 प्रतिशत मुआवजा के रूप में 21 करोड़, 26 लाख, 11 हजार 828 रूपए और 30 लाख रूपए ब्याज के रूप में अदा करने के आदेश दिए। जबकि डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत के रूप में 30 करोड़ रूपए की राशि अदा करने के लिए कहा।
आदेश के बावजूद भी करना पड़ा संघर्ष
अग्निकांड पीडि़तों को अदालत द्वारा मुआवजा दिए जाने के आदेश जारी करने के बावजूद भी जब सरकार ने इसके विरूद्ध अपील करने की ठानी तो इसकी भनक पाकर इनेलो से डबवाली के विधायक डॉ. अजय सिंह चौटाला को अग्निकांड पीडि़तों को साथ लेकर संघर्ष करना पड़ा। जिसके चलते सरकार ने तो अपने हाथ पीछे खींच लिए। लेकिन डीएवी मुआवजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चला गया।
डीएवी को भरना पड़ा 10 करोड़
सुप्रीम कोर्ट में मुआवजा से राहत पाने के लिए गए डीएवी संस्थान को उच्चतम न्यायालय ने 10 करोड़ रूपए की राशि पीडि़तों को देने के आदेश दिए और इसके बाद सुनवाई करने की बात कही। इससे मजबूर होकर 15 मार्च 2010 को डीएवी संस्थान ने 10 करोड़ रूपए की राशि अदालत में जमा करवाई। अब 5 जनवरी 2011 को इस याचिका पर सुनवाई होनी है। पीडि़तों को अदालत से न्याय की आशा है, जिसके चलते पीडि़तों को उम्मीद बंधी है कि उच्चतम न्यायालय केवल पीडि़तों के पक्ष में ही निर्णय नहीं करेगी, बल्कि उन्हें जो मुआवजा कम मिला है, उसे भी बढ़ाकर देगी।
अग्निकांड पीडि़तों को उच्च न्यायालय ने मुआवजा राशि अदा करने के आदेश देकर उनके जख्मों पर मरहम तो लगाई है। लेकिन जख्मों की टीस अभी भी पीडि़तों के बदन और मन पर कायम है। जिसको समय के साथ-साथ उनके रिहबेलीटेशन के लिए और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। जिसमें बेरोजगारों के लिए रोजगार, पीडि़तों के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा और जब तक उन्हें रोजगार नहीं मिलता, तब तक उन्हें आर्थिक सहायता।
21 दिसंबर 2010
बोले काण्डा, बड़ा दिन विकास की नई दिशा तय करेगा
कालांवाली (नरेश सिंगला) हरियाणा के गृह, उद्योग एवं खेल राज्य मंत्री गोपाल कांडा ने कहा है कि 25 दिसम्बर का दिन सिरसा के विकास की नई दिशा तय करेगा और इलाके के विकास में एक नए अध्याय की शुरूआत करेगा। इस दिन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा यहां आयोजित बढ़ते कदम रैली में करोड़ों रुपए की विकास योजनाओं की घोषणा एवं अनेक परियोजनाओं का उद्घाटन कर जिलावासियों को नव वर्ष का तोहफा देंगे।
कांडा गांव सुखचैन में ग्रामीणों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है और दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन है, जो एक दूसरे के पूरक हैं। मौजूदा राज्य सरकार ने किसानों को उनकी फसल का उचित भाव देने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अनेक ठोस फैसले भी लिए हैं। उन्होंने कहा कि किसान व मजदूर की खुशहाली से ही प्रदेश की समृद्धि का रास्ता खुलता है। ग्रामीण सभा को सम्बोधित करते हुए गृह राज्य मंत्री ने कहा कि वे जनसेवा के उद्देश्य से राजनीति में आए हैं और बिना किसी भेदभाव के अपने क्षेत्र व जिला के लोगों की निस्वार्थ सेवा करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि जनआंकाक्षाओं पर खरा उतरने और इस इलाके के लोगों की समस्याओं का स्थाई समाधान कर उन्हें सभी मूलभूत सुविधाएं प्रदान करवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।
उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि उनके दरवाजे हमेशा आम आदमी के लिए खुले हैं। कांडा ने कालांवाली, भादड़ा, झोरडऱोही तथा रोड़ी में भी ग्रामीण सभाओं को सम्बोधित किया और लोगों की समस्याएं सुनी। आज के दौरे के दौरान खेल राज्य मंत्री ने कई गांवों में स्कूली कमरों का उद्घाटन भी किया। उन्होंने गांव झोरडऱोही में सर्वशिक्षा अभियान के तहत राजकीय उच्च विद्यालय में 2 लाख 51 हजार रुपए की लागत से बनने वाले एक कमरे व एक बरामदे की आधारशिला रखी। कालांवाली में जिम खोलने की स्वीकृति प्रदान की। प्रत्येक गांव में कांडा का ग्रामीणों द्वारा जोरदार स्वागत किया गया और 25 दिसम्बर की रैली में भारी तादाद में पहुंचने का भरोसा भी दिया। इस अवसर पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं समाज सेवी गोबिन्द कांडा,दलजीत सिंह तिलोकेवाला, कृष्ण सैनी, सूरत सैनी, भूपेश गोयल, प्रेम शर्मा, भागीरथ गुप्ता, कुलदीप सिंह गदराना, तरसेम गोयल, गोबिन्द गोयल आदि उपस्थित थे।
कांडा गांव सुखचैन में ग्रामीणों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है और दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन है, जो एक दूसरे के पूरक हैं। मौजूदा राज्य सरकार ने किसानों को उनकी फसल का उचित भाव देने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अनेक ठोस फैसले भी लिए हैं। उन्होंने कहा कि किसान व मजदूर की खुशहाली से ही प्रदेश की समृद्धि का रास्ता खुलता है। ग्रामीण सभा को सम्बोधित करते हुए गृह राज्य मंत्री ने कहा कि वे जनसेवा के उद्देश्य से राजनीति में आए हैं और बिना किसी भेदभाव के अपने क्षेत्र व जिला के लोगों की निस्वार्थ सेवा करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि जनआंकाक्षाओं पर खरा उतरने और इस इलाके के लोगों की समस्याओं का स्थाई समाधान कर उन्हें सभी मूलभूत सुविधाएं प्रदान करवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।
उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि उनके दरवाजे हमेशा आम आदमी के लिए खुले हैं। कांडा ने कालांवाली, भादड़ा, झोरडऱोही तथा रोड़ी में भी ग्रामीण सभाओं को सम्बोधित किया और लोगों की समस्याएं सुनी। आज के दौरे के दौरान खेल राज्य मंत्री ने कई गांवों में स्कूली कमरों का उद्घाटन भी किया। उन्होंने गांव झोरडऱोही में सर्वशिक्षा अभियान के तहत राजकीय उच्च विद्यालय में 2 लाख 51 हजार रुपए की लागत से बनने वाले एक कमरे व एक बरामदे की आधारशिला रखी। कालांवाली में जिम खोलने की स्वीकृति प्रदान की। प्रत्येक गांव में कांडा का ग्रामीणों द्वारा जोरदार स्वागत किया गया और 25 दिसम्बर की रैली में भारी तादाद में पहुंचने का भरोसा भी दिया। इस अवसर पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं समाज सेवी गोबिन्द कांडा,दलजीत सिंह तिलोकेवाला, कृष्ण सैनी, सूरत सैनी, भूपेश गोयल, प्रेम शर्मा, भागीरथ गुप्ता, कुलदीप सिंह गदराना, तरसेम गोयल, गोबिन्द गोयल आदि उपस्थित थे।
अपनी डयूटी समझें कार्यकर्ता-जैन
डबवाली (लहू की लौ) इण्डियन नेशनल लोकदल जिला सिरसा के कार्यकर्ताओं की बैठक सोमवार को यहां के इनेलो कार्यालय में हुई। बैठक की अध्यक्षता पार्टी के जिला अध्यक्ष पदम जैन ने की।
बैठक को संबोधित करते हुए पदम जैन ने कार्यकर्ताओं को आपसी द्वेष भावना भूलकर पार्टी हित में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को जो भी जिम्मेवारी सौंपी गई है, उसे वह ईमानदारी से निभाए। पार्टी कार्यकर्ता सप्ताह में दो घंटे पनवाडी, आढ़ती, चाय विक्रेता, बारबर की दुकान पर बिताए और वहां एकत्रित लोगों को हरियाणा सरकार की तुगलकी नीतियों से परिचित करवाए। पार्टी का प्रत्येक पदाधिकारी अपने बूथ को मजबूत करे। बूथ मजबूत होगा, तो पार्टी का कैडर मजबूत होगा। जिला अध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि अगर कोई कार्यकर्ता कैडर में सही तरीके से कार्य नहीं करता, तो उसकी शिकायत पार्टी पदाधिकारियों को करें, ताकि उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सके।
जैन ने कहा कि लगातार छह साल से प्रदेश में राज कर रही कांग्रेस सरकार ने जिला सिरसा में विकास के नाम पर एक भी ईंट नहीं लगाई। लूट-खसूट करके अपने घर भरने वाली कांग्रेस जिला सिरसा में बढ़ते कदम रैली करने जा रही है। रैली को भ्रष्टाचार में बढ़ते कदम नाम दिया जाना चाहिए था। चूंकि कांग्रेस नेताओं ने कदम केवल अपने और अपने रिश्तेदारों के ही बढ़ाएं हैं। बैठक को बुद्धिजीवि प्रकोष्ठ हरियाणा के सदस्य राम सिंह चहल, केएल लूथरा, धर्मपाल बालासर, सूरजभान खनगवाल, एडवोकेट प्रदीप मैहता, धर्मवीर नैन, जसवीर सिंह जस्सा, कृष्णा फौगाट, चरणजीत रोड़ी एमएलए कालांवाली, कृष्ण कम्बोज एमएलए रानियां, जगरूप सिंह ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर रणवीर सिंह राणा, राधेराम गोदारा, डॉ. गिरधारी लाल, विनोद अरोड़ा, नरेन्द्र सिंह बराड़, संदीप सिंह सन्नी गंगा, सर्वजीत सिंह मसीतां, दर्शन मोंगा, रूकमा सिहाग, गुरप्रीत सिंह कुलार, गिरधारी लाल बिस्सू, लखविंद्र सिंह लक्खा, गुरजीत सिंह, भजन लाल नम्बरदार अबूबशहर, कृष्ण गुम्बर, सुरेश कुक्कू, कश्मीर करीवाला, गुलजिन्द्र सिंह सोना, हरी सिंह, सीता देवी, पुष्पा दैड़ान, बलदेव गर्ग, कुलदीप सिंह जम्मू, सुखविंद्र कुलार, नसीब गार्गी, नीलकांत मैहता लवली, सुरिन्द्र छिन्दा, सुभाष मित्तल, रणजीत सिंह अलीकां, गुरचरण सिंह, सुखजिन्द्र सिंह काला जापानी, जोगिन्द्र सिंह डाल, विक्की चोरा, देवीलाल लूगरिया, दर्शन सोनी, गुरविन्द्र सिंह भोला, गुरपाल सिंह पाली, रवि कुक्कड़, आत्मा राम चौटाला, पवन कुमार सुकेराखेड़ा, राजा पेन्टर, जगसीर सिंह मांगेआना, दलबीर सिंह हैबूआना, टेकचंद छाबड़ा, महेन्द्र डुडी, प्रहलाद राय, अश्विनी शर्मा, जग्गा सिंह बराड़ आदि उपस्थित थे।
इस मौके पर मंच का संचालन दीपक बागड़ी उपाध्यक्ष श्रमिक प्रकोष्ठ इनेलो जिला सिरसा ने किया।
बैठक को संबोधित करते हुए पदम जैन ने कार्यकर्ताओं को आपसी द्वेष भावना भूलकर पार्टी हित में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को जो भी जिम्मेवारी सौंपी गई है, उसे वह ईमानदारी से निभाए। पार्टी कार्यकर्ता सप्ताह में दो घंटे पनवाडी, आढ़ती, चाय विक्रेता, बारबर की दुकान पर बिताए और वहां एकत्रित लोगों को हरियाणा सरकार की तुगलकी नीतियों से परिचित करवाए। पार्टी का प्रत्येक पदाधिकारी अपने बूथ को मजबूत करे। बूथ मजबूत होगा, तो पार्टी का कैडर मजबूत होगा। जिला अध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि अगर कोई कार्यकर्ता कैडर में सही तरीके से कार्य नहीं करता, तो उसकी शिकायत पार्टी पदाधिकारियों को करें, ताकि उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सके।
जैन ने कहा कि लगातार छह साल से प्रदेश में राज कर रही कांग्रेस सरकार ने जिला सिरसा में विकास के नाम पर एक भी ईंट नहीं लगाई। लूट-खसूट करके अपने घर भरने वाली कांग्रेस जिला सिरसा में बढ़ते कदम रैली करने जा रही है। रैली को भ्रष्टाचार में बढ़ते कदम नाम दिया जाना चाहिए था। चूंकि कांग्रेस नेताओं ने कदम केवल अपने और अपने रिश्तेदारों के ही बढ़ाएं हैं। बैठक को बुद्धिजीवि प्रकोष्ठ हरियाणा के सदस्य राम सिंह चहल, केएल लूथरा, धर्मपाल बालासर, सूरजभान खनगवाल, एडवोकेट प्रदीप मैहता, धर्मवीर नैन, जसवीर सिंह जस्सा, कृष्णा फौगाट, चरणजीत रोड़ी एमएलए कालांवाली, कृष्ण कम्बोज एमएलए रानियां, जगरूप सिंह ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर रणवीर सिंह राणा, राधेराम गोदारा, डॉ. गिरधारी लाल, विनोद अरोड़ा, नरेन्द्र सिंह बराड़, संदीप सिंह सन्नी गंगा, सर्वजीत सिंह मसीतां, दर्शन मोंगा, रूकमा सिहाग, गुरप्रीत सिंह कुलार, गिरधारी लाल बिस्सू, लखविंद्र सिंह लक्खा, गुरजीत सिंह, भजन लाल नम्बरदार अबूबशहर, कृष्ण गुम्बर, सुरेश कुक्कू, कश्मीर करीवाला, गुलजिन्द्र सिंह सोना, हरी सिंह, सीता देवी, पुष्पा दैड़ान, बलदेव गर्ग, कुलदीप सिंह जम्मू, सुखविंद्र कुलार, नसीब गार्गी, नीलकांत मैहता लवली, सुरिन्द्र छिन्दा, सुभाष मित्तल, रणजीत सिंह अलीकां, गुरचरण सिंह, सुखजिन्द्र सिंह काला जापानी, जोगिन्द्र सिंह डाल, विक्की चोरा, देवीलाल लूगरिया, दर्शन सोनी, गुरविन्द्र सिंह भोला, गुरपाल सिंह पाली, रवि कुक्कड़, आत्मा राम चौटाला, पवन कुमार सुकेराखेड़ा, राजा पेन्टर, जगसीर सिंह मांगेआना, दलबीर सिंह हैबूआना, टेकचंद छाबड़ा, महेन्द्र डुडी, प्रहलाद राय, अश्विनी शर्मा, जग्गा सिंह बराड़ आदि उपस्थित थे।
इस मौके पर मंच का संचालन दीपक बागड़ी उपाध्यक्ष श्रमिक प्रकोष्ठ इनेलो जिला सिरसा ने किया।
रेहड़ी मालिक पर उबला रिफाईंड तेल डाल दिया
डबवाली (लहू की लौ) एक अंडा व पकौड़ा रेहड़ी मालिक पर उबलता हुआ रिफाईंड तेल डाल कर एक युवक ने उसे बुरी तरह से झुलसा दिया। जिसे उपचार के लिए डबवाली के सामान्य अस्पताल में दाखिल करवाया गया। घायल पृथ्वी चन्द (36) पुत्र शिवचरण निवासी भाटी कलोनी, किलियांवाली ने बताया कि वह डबवाली के एफसीआई गोदाम के पास शाम को अंडा और ब्रेड पकौड़ा की रेहड़ी लगाता है। रविवार शाम को वह एफसीआई गोदाम के पास रेहड़ी लगाये हुए था। कड़ाही में डाले हुए रिफाईंड में ग्राहक के लिए ब्रेड तल रहा था। इसी दौरान वहां पर शराब के ठेके पर काम करने वाला विक्की नामक युवक आया और उसने दो ट्रे अंडा तथा बने हुए पकौड़ फेंक दिये। यहीं नहीं बल्कि आरोपी युवक ने छालनी की सहायता से कड़ाही को उसकी ओर उड़ेल दिया। जिससे उसकी एक टांग बुरी तरह झुलस गई। उसने बताया कि विक्की शराब के नश्ेा में धुत्त था और उसे कह रहा था कि वह शराब पीने वालों को यहां गिलास न दे। जबकि वह तो गिलास रखता ही नहीं।
तथ्य तो यह है कि यह मामला राजकीय रेलवे पुलिस और थाना शहर पुलिस के बीच में उलझ कर रह गया है। थाना शहर पुलिस घटनास्थल को जीआरपी के अन्तर्गत बताती है जबकि जीआरपी इसे थाना शहर पुलिस का क्षेत्र बताती है। परिणामस्वरूप घायल न्याय के लिए दोनों पुलिसों के बीच पिस रहा है। जीआरपी डबवाली के कार्यकारी प्रभारी हवलदार रणवीर सिंह ने बताया कि वह मौका पर गये थे। लेकिन घटनास्थल थाना शहर के अन्तर्गत आने के कारण उनकी कार्यवाही में नहीं आता। इधर थाना शहर के एएसआई गोपाल राम ने कहा कि उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया है। घटनास्थल जीआरपी का क्षेत्र बनता है।
तथ्य तो यह है कि यह मामला राजकीय रेलवे पुलिस और थाना शहर पुलिस के बीच में उलझ कर रह गया है। थाना शहर पुलिस घटनास्थल को जीआरपी के अन्तर्गत बताती है जबकि जीआरपी इसे थाना शहर पुलिस का क्षेत्र बताती है। परिणामस्वरूप घायल न्याय के लिए दोनों पुलिसों के बीच पिस रहा है। जीआरपी डबवाली के कार्यकारी प्रभारी हवलदार रणवीर सिंह ने बताया कि वह मौका पर गये थे। लेकिन घटनास्थल थाना शहर के अन्तर्गत आने के कारण उनकी कार्यवाही में नहीं आता। इधर थाना शहर के एएसआई गोपाल राम ने कहा कि उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया है। घटनास्थल जीआरपी का क्षेत्र बनता है।
रेल तले आकर कटा
डबवाली (लहू की लौ) गाड़ी तले आने से एक युवक की मौत हो गई। मरने वाला युवक कौन है, इसका पता नहीं चल पाया। फिहाल युवक के शव को बठिंडा के सरकारी अस्पताल के डैड रूम में पहचान के लिए रखा गया है।
रेलवे का की-मैन कन्हैया लाल प्रतिदिन की तरह सोमवार सुबह गश्त पर था। किलोमीटर 38/12-13 के निकट किलियांवाली (पंजाब) क्षेत्र में उसे रेल लाईन में एक शव पड़ा हुई दिखाई दिया। उसने इसकी जानकारी तुरंत डबवाली रेलवे स्टेशन अधीक्षक महेश सरीन को दी। हालांकि युवक किस गाड़ी तले आया इसका पता नहीं चल पाया।
काफी दूर तक घसीटा
सूचना पाकर मौका पर पहुंचे डबवाली जन सहारा सेवा संस्था के अध्यक्ष आरके नीना तथा एम्बूलैंस चालक कुलवंत सिंह पथराला ने बताया कि रेलगाड़ी ने युवक को काफी दूर तक घसीटा। बाद में अवारा कुत्ते शव को रेलवे लाईन से घसीटकर काफी दूर ले गए। उन्होंने मौका पर पहुंचकर कुत्तों को हटाया और शव को कब्जे में लिया।
बठिंडा जीआरपी पहुंची
सूचना पाकर मौका पर पहुंचे बठिंडा जीआरपी के हैंड कांस्टेबल परमजीत सिंह ने बताया कि मृतक युवक की पहचान नहीं हो पाई है। युवक की आयु 24-25 साल है। उसने लाईट ब्लू रंग का लॉअर, पीले रंग की नीली धारी वाली टी-शर्ट, जामनी कलर की लाल धारीदार शर्ट तथा ग्रे रंग की जॉकेट पहनी हुई है। युवक की दाईं बाजू पर अंग्रेजी में जीएसडी खुदा हुआ है। दाईं बाजू के हाथ की एक अंगुली में छल्ला भी पहना हुआ है। पुलिस ने स्टेशन मास्टर महेश सरीन के ब्यान पर दफा 174 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई अमल में लाई है। युवक के शव को पहचान के लिए 72 घण्टे के लिए बठिंडा के सरकारी अस्पताल के डैड रूम में रखा गया है।
रेलवे का की-मैन कन्हैया लाल प्रतिदिन की तरह सोमवार सुबह गश्त पर था। किलोमीटर 38/12-13 के निकट किलियांवाली (पंजाब) क्षेत्र में उसे रेल लाईन में एक शव पड़ा हुई दिखाई दिया। उसने इसकी जानकारी तुरंत डबवाली रेलवे स्टेशन अधीक्षक महेश सरीन को दी। हालांकि युवक किस गाड़ी तले आया इसका पता नहीं चल पाया।
काफी दूर तक घसीटा
सूचना पाकर मौका पर पहुंचे डबवाली जन सहारा सेवा संस्था के अध्यक्ष आरके नीना तथा एम्बूलैंस चालक कुलवंत सिंह पथराला ने बताया कि रेलगाड़ी ने युवक को काफी दूर तक घसीटा। बाद में अवारा कुत्ते शव को रेलवे लाईन से घसीटकर काफी दूर ले गए। उन्होंने मौका पर पहुंचकर कुत्तों को हटाया और शव को कब्जे में लिया।
बठिंडा जीआरपी पहुंची
सूचना पाकर मौका पर पहुंचे बठिंडा जीआरपी के हैंड कांस्टेबल परमजीत सिंह ने बताया कि मृतक युवक की पहचान नहीं हो पाई है। युवक की आयु 24-25 साल है। उसने लाईट ब्लू रंग का लॉअर, पीले रंग की नीली धारी वाली टी-शर्ट, जामनी कलर की लाल धारीदार शर्ट तथा ग्रे रंग की जॉकेट पहनी हुई है। युवक की दाईं बाजू पर अंग्रेजी में जीएसडी खुदा हुआ है। दाईं बाजू के हाथ की एक अंगुली में छल्ला भी पहना हुआ है। पुलिस ने स्टेशन मास्टर महेश सरीन के ब्यान पर दफा 174 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई अमल में लाई है। युवक के शव को पहचान के लिए 72 घण्टे के लिए बठिंडा के सरकारी अस्पताल के डैड रूम में रखा गया है।
कांग्रेस का होगा नपा अध्यक्ष-काण्डा
डबवाली (लहू की लौ) हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य तथा हरियाणा राज्य गृहमंत्री गोपाल कांडा के अनुज गोबिन्द कांडा ने कहा कि डबवाली नगरपालिका का अध्यक्ष कांग्रेस का ही बनेगा। लेकिन इस पद पर किसका चयन होगा यह अभी निश्चित नहीं है।
वे शनिवार को नगरपालिका की पूर्व अध्यक्षा सिम्पा जैन के निवास स्थान कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वह 25 दिसम्बर को सिरसा में होने जा रही मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की बढ़ते कदम रैली के लिए कांग्रेस जनों को न्यौता देने के लिए आये थे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पालिका का अध्यक्ष कांग्रेस का हो इसके लिए वह अपनी पूरी भूमिका निभायेंगे और जो पार्षद रूठे हुए हैं उन्हें मनायेंगे। उनकी शिकायतों को दूर करते हुए उन्हें जो मान सम्मान मिलना चाहिए वह मान सम्मान भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि सिरसा जिला में कांगे्रस कार्यकर्ताओं की भरमार है लेकिन नेताओं ने पार्टी में ही अपने आदमी बना रखे हैं। जिसके चलते आम वर्कर का नुक्सान हो रहा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि नेता चाहे बड़ा है या छोटा वह अपना काम निकाल ही लेता है। लेकिन अगर कहीं नुक्सान होता है वर्कर का होता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह नेताओं के चंगुल में फंसने की अपेक्षा पार्टी के लिए काम करें और पार्टी के ही बनकर रहें। यदि कार्यकर्ताओं में एकता रहेगी तो नेता भी उनके काम भाग कर करेंगे।
डबवाली के विकास के संबंध में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विकास के काम तो हो रहे हैं, कहीं मैटीरियल की कमी के कारण ऐसा हो रहा है। लेकिन कांग्रेस में कमी है तो केवल यहीं है कि उनमें कोई भी कार्यकर्ताओं को जगाने वाला नहीं है।
उनके अनुसार 25 दिसम्बर की रैली केवल जिला की रैली नहीं होगी बल्कि यह प्रदेश स्तर की रैली होगी जिसमें डबवाली की कॉलेज भवन बनाने, ओवरब्रिज के निर्माण तथा कलोनियों को मंजूरी दिलवाने की मांग भी रखी जायेगी। उन्होंने कहा कि हुड्डा की खेल नीति और जमीन अधिग्रहण नीति श्रेष्ठ होने के कारण उनकी देश विदेश में प्रशंसा हो रही है। जिसके चलते सिरसा जिला के लोग भी हुड्डा को सुनना पसन्द करते हैं।
इस मौके पर राजेन्द्र जैन तथा उसकी धर्मपत्नी सिम्पा जैन ने गोबिन्द कांडा को दोशाला देकर सम्मानित किया। गोपाल मित्तल और नवरतन बांसल ने भगवान कृष्ण की बाल-गोपाल मूर्ति देकर सम्मानित किया। इस मौके पर प्रेम कुमार सिरसा, कुलदीप गदराना, जग्ग सिंह बराड़, संजय हिटलर, मलकीत सिंह गंगा, छोटू सहारण, गुरजन्ट सिंह बराड़, जसवन्त सिंह बराड़, वेदपाल नेहरा, पार्षद बिन्दिया महंत, हरनेक सिंह, पूर्व पार्षद इन्द्रजीत सिंह, आरके वर्मा, सुखविन्द्र सूर्या, संतोष अरोड़ा, भीम सिहाग, महिन्द्रपाल सुथार, चौटाला के पूर्व सरपंच कृष्ण लाल बिश्नोई उपस्थित थे।
वे शनिवार को नगरपालिका की पूर्व अध्यक्षा सिम्पा जैन के निवास स्थान कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वह 25 दिसम्बर को सिरसा में होने जा रही मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की बढ़ते कदम रैली के लिए कांग्रेस जनों को न्यौता देने के लिए आये थे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पालिका का अध्यक्ष कांग्रेस का हो इसके लिए वह अपनी पूरी भूमिका निभायेंगे और जो पार्षद रूठे हुए हैं उन्हें मनायेंगे। उनकी शिकायतों को दूर करते हुए उन्हें जो मान सम्मान मिलना चाहिए वह मान सम्मान भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि सिरसा जिला में कांगे्रस कार्यकर्ताओं की भरमार है लेकिन नेताओं ने पार्टी में ही अपने आदमी बना रखे हैं। जिसके चलते आम वर्कर का नुक्सान हो रहा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि नेता चाहे बड़ा है या छोटा वह अपना काम निकाल ही लेता है। लेकिन अगर कहीं नुक्सान होता है वर्कर का होता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह नेताओं के चंगुल में फंसने की अपेक्षा पार्टी के लिए काम करें और पार्टी के ही बनकर रहें। यदि कार्यकर्ताओं में एकता रहेगी तो नेता भी उनके काम भाग कर करेंगे।
डबवाली के विकास के संबंध में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विकास के काम तो हो रहे हैं, कहीं मैटीरियल की कमी के कारण ऐसा हो रहा है। लेकिन कांग्रेस में कमी है तो केवल यहीं है कि उनमें कोई भी कार्यकर्ताओं को जगाने वाला नहीं है।
उनके अनुसार 25 दिसम्बर की रैली केवल जिला की रैली नहीं होगी बल्कि यह प्रदेश स्तर की रैली होगी जिसमें डबवाली की कॉलेज भवन बनाने, ओवरब्रिज के निर्माण तथा कलोनियों को मंजूरी दिलवाने की मांग भी रखी जायेगी। उन्होंने कहा कि हुड्डा की खेल नीति और जमीन अधिग्रहण नीति श्रेष्ठ होने के कारण उनकी देश विदेश में प्रशंसा हो रही है। जिसके चलते सिरसा जिला के लोग भी हुड्डा को सुनना पसन्द करते हैं।
इस मौके पर राजेन्द्र जैन तथा उसकी धर्मपत्नी सिम्पा जैन ने गोबिन्द कांडा को दोशाला देकर सम्मानित किया। गोपाल मित्तल और नवरतन बांसल ने भगवान कृष्ण की बाल-गोपाल मूर्ति देकर सम्मानित किया। इस मौके पर प्रेम कुमार सिरसा, कुलदीप गदराना, जग्ग सिंह बराड़, संजय हिटलर, मलकीत सिंह गंगा, छोटू सहारण, गुरजन्ट सिंह बराड़, जसवन्त सिंह बराड़, वेदपाल नेहरा, पार्षद बिन्दिया महंत, हरनेक सिंह, पूर्व पार्षद इन्द्रजीत सिंह, आरके वर्मा, सुखविन्द्र सूर्या, संतोष अरोड़ा, भीम सिहाग, महिन्द्रपाल सुथार, चौटाला के पूर्व सरपंच कृष्ण लाल बिश्नोई उपस्थित थे।
खस्ता हाल है कालांवाली की मुख्य सड़कें
कालांवाली (नरेश सिंगला) मण्डी कालांवाली में मुख्य सड़क मार्गों की हालत खस्ता होने के कारण सैंकड़ों पैदल व वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
डबवाली व ओढ़ां से आकर मण्डी कालांवाली में प्रवेश करने वाले लोगों का स्वागत करने के लिए टूटी-फूटी सड़क हमेशा तैयार रहती है। इस सड़क की दयनीय स्थिति को देखते हुए वाहन चालक धीमी गति से वाहन चलाने में ही अपनी भलाई समझते हैं। यहीं नहीं अधिकारियों व नेताओं के वाहन भी प्रतिदिन यहां से होकर गुजरते हैं लेकिन शायद इस सड़क मार्ग को दुरूस्त करना जरूरी नहीं समझा गया। मण्डी कालांवाली में पंजाब बस स्टैंड वाला सड़क मार्ग कहने को ही सड़क मार्ग है और यह मार्ग वर्षों से अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। काफी समय पूर्व जब ये सड़क मार्ग बनाया गया था उसके कुछ माह बाद ही इस मार्ग की हालत पहले जैसे हो गई थी और अब यहां सड़क की बजाय यहां सिर्फ पत्थर ही दिखाई देते हैं। सड़क नीची होने के कारण बरसात के दिनों में यहां पानी भर जाता है जो कि कई दिन तक खड़ा रहता है। इसी प्रकार रोड़ी रोड़ भी अपनी अत्यंत जर्जर हालत के कारण वाहन चालकों के लिए सिरदर्द बनी हुई है।
मण्डी का मुख्य सड़क मार्ग होने के कारण यहां पर वाहन चालकों को परेशानियों से जूझते आसानी से देखा जा सकता है। इसके अलावा रेलवे फाटक रोड़, देसू रोड़ व सहारा क्लब के पास वाली रोड़ का बीचों बीच से टूटा होना भी अक्सर दुर्घटनाओं को निमन्त्रण देता रहता है। मण्डी वासियों की मांग है कि इन टूटे हुए सड़क मार्गों की रिपेयर करवाकर मण्डी वासियों की परेशानियों को विराम दिया जाए।
डबवाली व ओढ़ां से आकर मण्डी कालांवाली में प्रवेश करने वाले लोगों का स्वागत करने के लिए टूटी-फूटी सड़क हमेशा तैयार रहती है। इस सड़क की दयनीय स्थिति को देखते हुए वाहन चालक धीमी गति से वाहन चलाने में ही अपनी भलाई समझते हैं। यहीं नहीं अधिकारियों व नेताओं के वाहन भी प्रतिदिन यहां से होकर गुजरते हैं लेकिन शायद इस सड़क मार्ग को दुरूस्त करना जरूरी नहीं समझा गया। मण्डी कालांवाली में पंजाब बस स्टैंड वाला सड़क मार्ग कहने को ही सड़क मार्ग है और यह मार्ग वर्षों से अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। काफी समय पूर्व जब ये सड़क मार्ग बनाया गया था उसके कुछ माह बाद ही इस मार्ग की हालत पहले जैसे हो गई थी और अब यहां सड़क की बजाय यहां सिर्फ पत्थर ही दिखाई देते हैं। सड़क नीची होने के कारण बरसात के दिनों में यहां पानी भर जाता है जो कि कई दिन तक खड़ा रहता है। इसी प्रकार रोड़ी रोड़ भी अपनी अत्यंत जर्जर हालत के कारण वाहन चालकों के लिए सिरदर्द बनी हुई है।
मण्डी का मुख्य सड़क मार्ग होने के कारण यहां पर वाहन चालकों को परेशानियों से जूझते आसानी से देखा जा सकता है। इसके अलावा रेलवे फाटक रोड़, देसू रोड़ व सहारा क्लब के पास वाली रोड़ का बीचों बीच से टूटा होना भी अक्सर दुर्घटनाओं को निमन्त्रण देता रहता है। मण्डी वासियों की मांग है कि इन टूटे हुए सड़क मार्गों की रिपेयर करवाकर मण्डी वासियों की परेशानियों को विराम दिया जाए।
गुण्डागर्दी : रेहड़ी पलटाई, पुलिस वाले को जड़ा थप्पड़
डबवाली (लहू की लौ) एक महिला द्वारा रेहड़ी से मूंगफली उठाने पर शुक्रवार रात को पंजाब बस अड्डा के सामने बवाल खड़ा हो गया। महिला के तामीरदारों ने नंगी किरपानों, कापों तथा डंडों से एक रेहड़ी चालक पर धावा बोल दिया। सूचना पाकर मौका पर आए पंजाब पुलिस के कर्मचारियों को थप्पड़ तक जड़ दिया।
पंजाब बस अड्डा के सामने बजरंग नाम का एक व्यक्ति मूंगफली, गज्जक बेचता है। शुक्रवार शाम को उसके पास एक महिला आई और मूंगफली उठा ली। महिला और बजरंग में कहासुनी हो गई। महिला ने इसे अपनी बेईज्जती समझा और उपरोक्त मामले की जानकारी अड्डा के पास ही खड़े अपने किसी परिचित को दी। रोजमर्रा की तरह बजरंग अपनी दुकान बंद कर चलता बना। कुछ देर बाद महिला सात-आठ व्यक्तियों के साथ दोबारा वहां आ धमकी और आस-पास के दुकानदारों से बजरंग का पता पूछा। लेकिन दुकानदारों ने बजरंग के बारे में पता होने से अनभिज्ञता जताई।
बजरंग का पता न मिलने से तिलमिलाए ये लोग बस अड्डा के सामने मूंगफली की रेहड़ी लगाने वाले राजेन्द्र कुमार (40) निवासी डबवाली के पास पहुंचे। उससे बजरंग का पता पूछा। लेकिन राजेन्द्र ने भी पता मालूम न होने की बात कही। राजेन्द्र के अनुसार गुस्से से लाल हुए इन लोगों ने उस पर नंगी तलवारों, कापो तथा डंडों से हमला कर दिया। वह तो बाल-बाल बच गया। लेकिन उसकी रेहड़ी पलट दी। जिससे उसका करीब बारह हजार रूपए का नुक्सान हुआ।
इधर बस अड्डा पर खड़े पंजाब पुलिस के सुखमन्दर नामक हवलदार ने इसकी सूचना पुलिस चौकी में दी। भनक पाकर आरोपी उससे भी जा भिड़े। उसका मोबाइल छीन लिया और थप्पड़ जड़ दिया। सूचना पाकर मौका पर पहुंचे किलियांवाली पुलिस चौकी के प्रभारी एएसआई कश्मीरी लाल तथा एक अन्य हवलदार लक्खा से भी इन लोगों ने बदसलूकी की।
पंजाब बस अड्डा के सामने बजरंग नाम का एक व्यक्ति मूंगफली, गज्जक बेचता है। शुक्रवार शाम को उसके पास एक महिला आई और मूंगफली उठा ली। महिला और बजरंग में कहासुनी हो गई। महिला ने इसे अपनी बेईज्जती समझा और उपरोक्त मामले की जानकारी अड्डा के पास ही खड़े अपने किसी परिचित को दी। रोजमर्रा की तरह बजरंग अपनी दुकान बंद कर चलता बना। कुछ देर बाद महिला सात-आठ व्यक्तियों के साथ दोबारा वहां आ धमकी और आस-पास के दुकानदारों से बजरंग का पता पूछा। लेकिन दुकानदारों ने बजरंग के बारे में पता होने से अनभिज्ञता जताई।
बजरंग का पता न मिलने से तिलमिलाए ये लोग बस अड्डा के सामने मूंगफली की रेहड़ी लगाने वाले राजेन्द्र कुमार (40) निवासी डबवाली के पास पहुंचे। उससे बजरंग का पता पूछा। लेकिन राजेन्द्र ने भी पता मालूम न होने की बात कही। राजेन्द्र के अनुसार गुस्से से लाल हुए इन लोगों ने उस पर नंगी तलवारों, कापो तथा डंडों से हमला कर दिया। वह तो बाल-बाल बच गया। लेकिन उसकी रेहड़ी पलट दी। जिससे उसका करीब बारह हजार रूपए का नुक्सान हुआ।
इधर बस अड्डा पर खड़े पंजाब पुलिस के सुखमन्दर नामक हवलदार ने इसकी सूचना पुलिस चौकी में दी। भनक पाकर आरोपी उससे भी जा भिड़े। उसका मोबाइल छीन लिया और थप्पड़ जड़ दिया। सूचना पाकर मौका पर पहुंचे किलियांवाली पुलिस चौकी के प्रभारी एएसआई कश्मीरी लाल तथा एक अन्य हवलदार लक्खा से भी इन लोगों ने बदसलूकी की।
अग्निकांड पीडि़तों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी
डबवाली (लहू की लौ) करीब पंद्रह साल पूर्व डबवाली में घटित अग्निकांड की दुखद छाया अभी भी नगर का पीछा नहीं छोड़ रही है। पीडि़तों में इस कांड का दर्द भले ही छुप गया है। लेकिन भीतर ही भीतर मधुमेह की तरह उन्हें खा रहा है। पीडि़तों को सरकारों से बड़ी आशाएं थी। लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला। अगर कहीं से कुछ मिला, तो वह न्याय अदालत से ही मिला। जिससे पीडि़तों के जख्म कुछ शांत हुए, लेकिन अभी भी जख्मों पर मरहम लगाने के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है।
23 दिसंबर 1995 को 1 बजकर 47 मिनट पर डबवाली के डीएवी स्कूल द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह में अचानक आग लगने से 442 दर्शक काल का ग्रास बन गए। जिसमें 136 महिलाएं, 258 बच्चे शामिल थे। जबकि 150 से भी अधिक घायल हुए। विश्व में अब तक का यह सबसे बड़ा अग्निकांड है। जिसमें इतनी भारी संख्या में जीवित लोग झुलस कर शहीद हो गए और घायल हुए। घायलों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चला और कुछ घायल हो ऐसे भी हैं, जिनका आज भी इलाज चल रहा है।
अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन डबवाली के प्रवक्ता विनोद बांसल ने बताया कि साल 1996 में न्याय पाने के लिए एसोसिएशन को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जाना पड़ा। अदालत ने एसोसिएशन की याचिका पर साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश टीपी गर्ग पर आधारित एक सदस्यीय आयोग का गठन करके उन्हें संबंधित पक्षों पर मुआवजा निर्धारित करने का अधिकार दिया। मार्च 2009 को आयोग ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दी। नवंबर 2009 में हाईकोर्ट ने मुआवजा के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार को 45 प्रतिशत और डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत मुआवजा राशि पीडि़तों को अदा करने के आदेश दिए। अदालत ने सरकार को 45 प्रतिशत मुआवजा के रूप में 21 करोड़, 26 लाख, 11 हजार 828 रूपए और 30 लाख रूपए ब्याज के रूप में अदा करने के आदेश दिए। जबकि डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत के रूप में 30 करोड़ रूपए की राशि अदा करने के लिए कहा।
आदेश के बावजूद भी करना पड़ा संघर्ष
अग्निकांड पीडि़तों को अदालत द्वारा मुआवजा दिए जाने के आदेश जारी करने के बावजूद भी जब सरकार ने इसके विरूद्ध अपील करने की ठानी तो इसकी भनक पाकर इनेलो से डबवाली के विधायक डॉ. अजय सिंह चौटाला को अग्निकांड पीडि़तों को साथ लेकर संघर्ष करना पड़ा। जिसके चलते सरकार ने तो अपने हाथ पीछे खींच लिए। लेकिन डीएवी मुआवजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चला गया।
डीएवी को भरना पड़ा 10 करोड़
सुप्रीम कोर्ट में मुआवजा से राहत पाने के लिए गए डीएवी संस्थान को उच्चतम न्यायालय ने 10 करोड़ रूपए की राशि पीडि़तों को देने के आदेश दिए और इसके बाद सुनवाई करने की बात कही। इससे मजबूर होकर 15 मार्च 2010 को डीएवी संस्थान ने 10 करोड़ रूपए की राशि अदालत में जमा करवाई। अब 5 जनवरी 2011 को इस याचिका पर सुनवाई होनी है। पीडि़तों को अदालत से न्याय की आशा है, जिसके चलते पीडि़तों को उम्मीद बंधी है कि उच्चतम न्यायालय केवल पीडि़तों के पक्ष में ही निर्णय नहीं करेगी, बल्कि उन्हें जो मुआवजा कम मिला है, उसे भी बढ़ाकर देगी।
अग्निकांड पीडि़तों को उच्च न्यायालय ने मुआवजा राशि अदा करने के आदेश देकर उनके जख्मों पर मरहम तो लगाई है। लेकिन जख्मों की टीस अभी भी पीडि़तों के बदन और मन पर कायम है। जिसको समय के साथ-साथ उनके रिहबेलीटेशन के लिए और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। जिसमें बेरोजगारों के लिए रोजगार, पीडि़तों के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा और जब तक उन्हें रोजगार नहीं मिलता, तब तक उन्हें आर्थिक सहायता।
23 दिसंबर 1995 को 1 बजकर 47 मिनट पर डबवाली के डीएवी स्कूल द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह में अचानक आग लगने से 442 दर्शक काल का ग्रास बन गए। जिसमें 136 महिलाएं, 258 बच्चे शामिल थे। जबकि 150 से भी अधिक घायल हुए। विश्व में अब तक का यह सबसे बड़ा अग्निकांड है। जिसमें इतनी भारी संख्या में जीवित लोग झुलस कर शहीद हो गए और घायल हुए। घायलों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चला और कुछ घायल हो ऐसे भी हैं, जिनका आज भी इलाज चल रहा है।
अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन डबवाली के प्रवक्ता विनोद बांसल ने बताया कि साल 1996 में न्याय पाने के लिए एसोसिएशन को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जाना पड़ा। अदालत ने एसोसिएशन की याचिका पर साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश टीपी गर्ग पर आधारित एक सदस्यीय आयोग का गठन करके उन्हें संबंधित पक्षों पर मुआवजा निर्धारित करने का अधिकार दिया। मार्च 2009 को आयोग ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दी। नवंबर 2009 में हाईकोर्ट ने मुआवजा के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार को 45 प्रतिशत और डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत मुआवजा राशि पीडि़तों को अदा करने के आदेश दिए। अदालत ने सरकार को 45 प्रतिशत मुआवजा के रूप में 21 करोड़, 26 लाख, 11 हजार 828 रूपए और 30 लाख रूपए ब्याज के रूप में अदा करने के आदेश दिए। जबकि डीएवी संस्थान को 55 प्रतिशत के रूप में 30 करोड़ रूपए की राशि अदा करने के लिए कहा।
आदेश के बावजूद भी करना पड़ा संघर्ष
अग्निकांड पीडि़तों को अदालत द्वारा मुआवजा दिए जाने के आदेश जारी करने के बावजूद भी जब सरकार ने इसके विरूद्ध अपील करने की ठानी तो इसकी भनक पाकर इनेलो से डबवाली के विधायक डॉ. अजय सिंह चौटाला को अग्निकांड पीडि़तों को साथ लेकर संघर्ष करना पड़ा। जिसके चलते सरकार ने तो अपने हाथ पीछे खींच लिए। लेकिन डीएवी मुआवजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चला गया।
डीएवी को भरना पड़ा 10 करोड़
सुप्रीम कोर्ट में मुआवजा से राहत पाने के लिए गए डीएवी संस्थान को उच्चतम न्यायालय ने 10 करोड़ रूपए की राशि पीडि़तों को देने के आदेश दिए और इसके बाद सुनवाई करने की बात कही। इससे मजबूर होकर 15 मार्च 2010 को डीएवी संस्थान ने 10 करोड़ रूपए की राशि अदालत में जमा करवाई। अब 5 जनवरी 2011 को इस याचिका पर सुनवाई होनी है। पीडि़तों को अदालत से न्याय की आशा है, जिसके चलते पीडि़तों को उम्मीद बंधी है कि उच्चतम न्यायालय केवल पीडि़तों के पक्ष में ही निर्णय नहीं करेगी, बल्कि उन्हें जो मुआवजा कम मिला है, उसे भी बढ़ाकर देगी।
अग्निकांड पीडि़तों को उच्च न्यायालय ने मुआवजा राशि अदा करने के आदेश देकर उनके जख्मों पर मरहम तो लगाई है। लेकिन जख्मों की टीस अभी भी पीडि़तों के बदन और मन पर कायम है। जिसको समय के साथ-साथ उनके रिहबेलीटेशन के लिए और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। जिसमें बेरोजगारों के लिए रोजगार, पीडि़तों के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा और जब तक उन्हें रोजगार नहीं मिलता, तब तक उन्हें आर्थिक सहायता।
विशेष बच्चे सर्वजीत ने बनाई सबसे सुन्दर पेंटिंग
डबवाली (लहू की लौ) सैंट जोसफ हाई स्कूल डबवाली के प्रबंधक फादर रोसेरियो ने कहा कि समाज में हम सभी किसी न किसी कमी के चलते विकलांग हैं। विकलांगता को दूर करने के लिए दो ही रास्ते हैं एक डाक्टर का और दूसरा विकलांग बच्चों को प्यार और सेवा करके।
वे विश्व विकलांग दिवस के संबंध में प्रैजिनटेशन सिस्टर्ज संस्था शाखा डबवाली द्वारा विकलांगों की आयोजित एक दिवसीय प्रतियोगिताओं के समापन पर उपस्थित विकलांग बच्चों तथा उनके अभिभावकों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मां के लिए बच्चे में कभी भी कोई कमी नहीं होती, क्योकि बच्चे और मां के बीच प्यार होता है, जो कमी की अनदेखी कर देता है। यदि हम सभी को प्यार करेंगे तो कमियां नहीं रहेंगी। समाज से विकलांगता भी दूर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मदर टरेसा ने ईसा मसीह से सभी से प्यार करने की शिक्षा ली और संसार की सेवा की। इसी प्रकार हमें भी मदर टरेसा से शिक्षा लेते हुए एक दूसरे से प्यार करना चाहिए।
इस मौके पर मुख्यातिथि तथा सरकारी अस्पताल डबवाली में तैनात डॉ. अमरदीप जस्सी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि विकलांग बच्चों को भले ही किस्मत ने धोखा देकर विकलांग बना दिया। लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने खेलों का प्रदर्शन किया है, उससे उन्होंने यह दिखा दिया है कि वे किसी से कम नहीं है। वातावरण, अभिभावकों या बीमारियों के चलते विकलांग होने के बावजूद भी यदि व्यक्ति दृढ निश्चयी है, तो विकलांगता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। उन्होंने बताया कि न देखने वाली और न सुनने वाली महिला हैलन ने इस बात को साबित कर दिया कि वह इस प्रकार की विकलांगता होते हुए भी बहुत कुछ कर सकती है।
उन्होंने कहा कि शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग होना ही विकलांगता नहीं, बल्कि उसकी राय में जो नास्तिक हैं और काम करना नहीं चाहते, ऐसे लोग ही वास्तव में विकलांग हैं। हमें जीने का नजरिया बदलना होगा, हमेशा खुश रहकर काम करना होगा। जो हिम्मत से काम करते हैं और भगवान का नाम लेकर अपने मार्ग पर चलते हैं, विकलांगता उनके आड़े नहीं आ सकती।
प्रैजिनटेशन सिस्टर्ज की स्थानीय प्रभारी निशा ने बताया कि इस कार्यक्रम के दौरान तेईस विशेष बच्चों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि मटर गेम्स में गुरप्रीत कौर प्रथम, आकाश द्वितीय, बलविंद्र तृतीय रहा। जबकि कैंडल गेम में आकाश ने बाजी मारी। गुरप्रीत, बलविंद्र, किरण, ममता, वीरपाल और मेघा ने भी विजय पाई। पेंटिंग प्रतियोगिता में सर्वजीत कौर प्रथम रही। जबकि अजय और गुरप्रीत द्वितीय, भूषण और किरणजीत कौर ने तृतीय स्थान पाया। इस मौके पर विशेष बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। संस्था की सिस्टर सलमा और रोजी भी उपस्थित थी। जबकि मंच का संचालन रविंद्र कौर ने बखूबी निभाया।
वे विश्व विकलांग दिवस के संबंध में प्रैजिनटेशन सिस्टर्ज संस्था शाखा डबवाली द्वारा विकलांगों की आयोजित एक दिवसीय प्रतियोगिताओं के समापन पर उपस्थित विकलांग बच्चों तथा उनके अभिभावकों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मां के लिए बच्चे में कभी भी कोई कमी नहीं होती, क्योकि बच्चे और मां के बीच प्यार होता है, जो कमी की अनदेखी कर देता है। यदि हम सभी को प्यार करेंगे तो कमियां नहीं रहेंगी। समाज से विकलांगता भी दूर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मदर टरेसा ने ईसा मसीह से सभी से प्यार करने की शिक्षा ली और संसार की सेवा की। इसी प्रकार हमें भी मदर टरेसा से शिक्षा लेते हुए एक दूसरे से प्यार करना चाहिए।
इस मौके पर मुख्यातिथि तथा सरकारी अस्पताल डबवाली में तैनात डॉ. अमरदीप जस्सी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि विकलांग बच्चों को भले ही किस्मत ने धोखा देकर विकलांग बना दिया। लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने खेलों का प्रदर्शन किया है, उससे उन्होंने यह दिखा दिया है कि वे किसी से कम नहीं है। वातावरण, अभिभावकों या बीमारियों के चलते विकलांग होने के बावजूद भी यदि व्यक्ति दृढ निश्चयी है, तो विकलांगता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। उन्होंने बताया कि न देखने वाली और न सुनने वाली महिला हैलन ने इस बात को साबित कर दिया कि वह इस प्रकार की विकलांगता होते हुए भी बहुत कुछ कर सकती है।
उन्होंने कहा कि शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग होना ही विकलांगता नहीं, बल्कि उसकी राय में जो नास्तिक हैं और काम करना नहीं चाहते, ऐसे लोग ही वास्तव में विकलांग हैं। हमें जीने का नजरिया बदलना होगा, हमेशा खुश रहकर काम करना होगा। जो हिम्मत से काम करते हैं और भगवान का नाम लेकर अपने मार्ग पर चलते हैं, विकलांगता उनके आड़े नहीं आ सकती।
प्रैजिनटेशन सिस्टर्ज की स्थानीय प्रभारी निशा ने बताया कि इस कार्यक्रम के दौरान तेईस विशेष बच्चों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि मटर गेम्स में गुरप्रीत कौर प्रथम, आकाश द्वितीय, बलविंद्र तृतीय रहा। जबकि कैंडल गेम में आकाश ने बाजी मारी। गुरप्रीत, बलविंद्र, किरण, ममता, वीरपाल और मेघा ने भी विजय पाई। पेंटिंग प्रतियोगिता में सर्वजीत कौर प्रथम रही। जबकि अजय और गुरप्रीत द्वितीय, भूषण और किरणजीत कौर ने तृतीय स्थान पाया। इस मौके पर विशेष बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। संस्था की सिस्टर सलमा और रोजी भी उपस्थित थी। जबकि मंच का संचालन रविंद्र कौर ने बखूबी निभाया।
'ऐट पीएमÓ पर भावुक हुए केवी
डबवाली (लहू की लौ) बढ़ते कदम रैली में अधिक से अधिक भीड़ जुटाने के लिए कांग्रेसी नेता जनता के सामने तेवर बदलकर आ रहे हैं। कोई कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नेता के नाम पर फूट डालने की बात करता है, तो कोई बेचारा अपना दर्द जनता के समक्ष रखकर लोगों के जज्बात कांग्रेस के साथ जोडऩे का प्रयास करता है। शनिवार को डबवाली में जनता को रिझाने के लिए कांग्रेसी नेता मक्खियों की तरह भिनभिनाते रहे। तरह-तरह के प्रलोभन और आश्वासन देते रहे। लोगों का विश्वास जीतने के लिए कांग्रेसी नेताओं ने कांग्रेस की ही आलोचना करनी शुरू कर दी। गोबिंद कांडा ने वर्करों की सहानुभूति के लिए नेताओं को रौंदा, तो शाम की ऐट पीएम पर डॉ. केवी सिंह ने अपने दर्द लोगों को सुनाए, सुनाते-सुनाते इतने भावुक हो गए कि उन्होंने अपने आकाओं पर यह आरोप जड़ दिया कि वह यहां भी कहीं विकास करवाते हैं, तो उन्हें पुरस्कार के रूप में हल्का से बनवास दे दिया जाता है। लेकिन इस बार वह किसी भी कीमत पर बनवाास पर नहीं जाएंगे। भले ही उन्हें हल्का बदलने के लिए कहा जा रहा है। वे डबवाली में ही अपने भाग्य को अजमाएंगे। डबवाली उनका अपना घर है।
शनिवार को ऐट पीएम का समय था। वार्ड नं. 14 के पार्षद विनोद बांसल के निवास स्थान पर डॉ. केवी सिंह की सभा चल रही थी। लोगों को 25 दिसंबर की बढ़ते कदम रैली में शामिल होने का न्यौता दिया जा रहा था। न्यौता देते-देते केवी सिंह एकदम भावुक हो उठे और बोल पड़े कि ओएसडी रहते समय करीब साढ़े तीन साल तक उन्होंने रानियां हल्के में विकास की गंगा बहाई। करीब 16 स्कूल अपग्रेड करवाए। यहीं नहीं गलियां व सड़कें पक्की करवाई। चूंकि मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने उन्हें वहां से टिकट देने का आश्वासन दिया था। जब हुड्डा को सीआईडी रिपोर्ट मिली कि डबवाली और ऐलनाबाद से चौटाला परिवार का सदस्य चुनाव मैदान में उतर रहा है, तो उन्हें वहां से डबवाली भेज दिया गया। डबवाली में उन्होंने 10 माह के भीतर कांग्रेस को डबवाली नगरपालिका की सत्ता, फिर लोकसभा चुनाव में विजय दिलाई। यहीं नहीं बल्कि कई करोड़ रूपए खर्च करके क्षेत्र की गलियां, सड़कें बनवाई। लेकिन अब उस पर हल्का बदलने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इस बार उसने ठान ली है, कि वह अपना हल्का नहीं बदलेंगे। डबवाली में रहेंगे, डबवाली के लोगों के काम करवाएंगे, डबवाली के लोगों के लिए लड़ेंगे और स्वयं भी डबवाली में ही अपना भाग्य अजमाएंगे।
उन्होंने लोगों को भी उलाहना दिया कि कांग्रेस ने तो उन्हें डबवाली से टिकट दी लेकिन अगर लोग मेरा साथ देते और मुझे जीता देते, आज डबवाली का नक्शा ओर होता। जीते हुए व्यक्ति को सरकार में जितना सम्मान मिलता है, हारे हुए को उतना सम्मान नहीं मिलता। यही वजह है कि आज उनके काम करवाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। अन्यथा चुटकी में उनके काम हो जाते।
शनिवार को ऐट पीएम का समय था। वार्ड नं. 14 के पार्षद विनोद बांसल के निवास स्थान पर डॉ. केवी सिंह की सभा चल रही थी। लोगों को 25 दिसंबर की बढ़ते कदम रैली में शामिल होने का न्यौता दिया जा रहा था। न्यौता देते-देते केवी सिंह एकदम भावुक हो उठे और बोल पड़े कि ओएसडी रहते समय करीब साढ़े तीन साल तक उन्होंने रानियां हल्के में विकास की गंगा बहाई। करीब 16 स्कूल अपग्रेड करवाए। यहीं नहीं गलियां व सड़कें पक्की करवाई। चूंकि मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने उन्हें वहां से टिकट देने का आश्वासन दिया था। जब हुड्डा को सीआईडी रिपोर्ट मिली कि डबवाली और ऐलनाबाद से चौटाला परिवार का सदस्य चुनाव मैदान में उतर रहा है, तो उन्हें वहां से डबवाली भेज दिया गया। डबवाली में उन्होंने 10 माह के भीतर कांग्रेस को डबवाली नगरपालिका की सत्ता, फिर लोकसभा चुनाव में विजय दिलाई। यहीं नहीं बल्कि कई करोड़ रूपए खर्च करके क्षेत्र की गलियां, सड़कें बनवाई। लेकिन अब उस पर हल्का बदलने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इस बार उसने ठान ली है, कि वह अपना हल्का नहीं बदलेंगे। डबवाली में रहेंगे, डबवाली के लोगों के काम करवाएंगे, डबवाली के लोगों के लिए लड़ेंगे और स्वयं भी डबवाली में ही अपना भाग्य अजमाएंगे।
उन्होंने लोगों को भी उलाहना दिया कि कांग्रेस ने तो उन्हें डबवाली से टिकट दी लेकिन अगर लोग मेरा साथ देते और मुझे जीता देते, आज डबवाली का नक्शा ओर होता। जीते हुए व्यक्ति को सरकार में जितना सम्मान मिलता है, हारे हुए को उतना सम्मान नहीं मिलता। यही वजह है कि आज उनके काम करवाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। अन्यथा चुटकी में उनके काम हो जाते।
तारे आसमां से धरती पे किसने उतारे..
डबवाली (लहू की लौ) बाल वाटिका मॉडल स्कूल मंडी किलियांवाली का वार्षिक अभिभावक एवं पारितोषिक वितरण समारोह रविवार को डबवाली के भगवान श्रीकृष्णा कॉलेज ऑफ एजूकेशन में स्थित मदन मैमोरियल हाल में सम्पन्न हुआ। जिसमें विद्यालय के एलकेजी से लेकर द्वितीय कक्षा तक के 198 बच्चों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि रणवीर सिंह राणा जिला प्रधान महासचिव इंडियन नैशनल लोकदल ने मां सरस्वती के समक्ष ज्योति प्रज्जवलित करके की। द्वितीय कक्षा के दिव्यांश ने हम तकदीर हैं कल के हिन्दुस्तान की कविता सुनाई। यूकेजी के दिव्यांश ने चाचा नेहरू के जीवन पर प्रकाश डाला। एलकेजी के नन्हें-मुन्ने बच्चों ने फिल्मी गीत मैं इधर चला, मैं उधर चला, न जाने मैं किधर चला पर नृत्य किया। जबकि द्वितीय कक्षा के विद्यार्थियों ने मइया यशोदा तेरा कन्हैया गाकर माहौल भक्तिमय बना दिया।
यहां यूकेजी के विद्यार्थियों ने तारे आसमां से धरती पे किसने उतारे...., प्रथम कक्षा के विद्यार्थियों ने जूबी डूबी... पर डांस करके दर्शकों की वाहवाही लूटी वहीं द्वितीय कक्षा की रेणुका ने घर को जन्नत सा बना देती हैं बेटियां, पर कविता सुना कर सभी को भाव विभोर कर दिया। वाटिका की प्रिंसीपल वन्दना मैहता ने स्कूल की प्रगति रिपोर्ट पढ़ी और आये हुए मेहमानों का धन्यवाद किया। जबकि मंच संचालन अध्यापिका राज वधवा ने किया।
मुख्य अतिथि रणवीर सिंह राणा ने अपने सम्बोधन में कहा कि बच्चे शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ रहे हैं। समाज के लिए यह अच्छा संकेत है। इससे देश के विकास को नई दिशा मिलेगी।
इस मौके पर सुभाष गुप्ता एडवोकेट, वेदप्रकाश जिन्दल, अरूण जिन्दल, नीरज जिन्दल, एसके दुआ, प्रिंसीपल बाल मंदिर स्कूल किलियांवाली एमएस देवगुन, भगवान श्रीकृष्ण कॉलेज ऑफ एजूकेशन की प्रिंसीपल पूनम गुप्ता, रिटायर्ड बैंक अधिकारी राजकुमार गर्ग, रविन्द्र गर्ग मैनेजर हरियाणा ग्रामीण बैंक रोहतक, आढ़तिया सुरेन्द्र बांसल, विजय गुप्ता एडवोकेट, अनिल गोयल एडवोकेट उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि रणवीर सिंह राणा जिला प्रधान महासचिव इंडियन नैशनल लोकदल ने मां सरस्वती के समक्ष ज्योति प्रज्जवलित करके की। द्वितीय कक्षा के दिव्यांश ने हम तकदीर हैं कल के हिन्दुस्तान की कविता सुनाई। यूकेजी के दिव्यांश ने चाचा नेहरू के जीवन पर प्रकाश डाला। एलकेजी के नन्हें-मुन्ने बच्चों ने फिल्मी गीत मैं इधर चला, मैं उधर चला, न जाने मैं किधर चला पर नृत्य किया। जबकि द्वितीय कक्षा के विद्यार्थियों ने मइया यशोदा तेरा कन्हैया गाकर माहौल भक्तिमय बना दिया।
यहां यूकेजी के विद्यार्थियों ने तारे आसमां से धरती पे किसने उतारे...., प्रथम कक्षा के विद्यार्थियों ने जूबी डूबी... पर डांस करके दर्शकों की वाहवाही लूटी वहीं द्वितीय कक्षा की रेणुका ने घर को जन्नत सा बना देती हैं बेटियां, पर कविता सुना कर सभी को भाव विभोर कर दिया। वाटिका की प्रिंसीपल वन्दना मैहता ने स्कूल की प्रगति रिपोर्ट पढ़ी और आये हुए मेहमानों का धन्यवाद किया। जबकि मंच संचालन अध्यापिका राज वधवा ने किया।
मुख्य अतिथि रणवीर सिंह राणा ने अपने सम्बोधन में कहा कि बच्चे शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ रहे हैं। समाज के लिए यह अच्छा संकेत है। इससे देश के विकास को नई दिशा मिलेगी।
इस मौके पर सुभाष गुप्ता एडवोकेट, वेदप्रकाश जिन्दल, अरूण जिन्दल, नीरज जिन्दल, एसके दुआ, प्रिंसीपल बाल मंदिर स्कूल किलियांवाली एमएस देवगुन, भगवान श्रीकृष्ण कॉलेज ऑफ एजूकेशन की प्रिंसीपल पूनम गुप्ता, रिटायर्ड बैंक अधिकारी राजकुमार गर्ग, रविन्द्र गर्ग मैनेजर हरियाणा ग्रामीण बैंक रोहतक, आढ़तिया सुरेन्द्र बांसल, विजय गुप्ता एडवोकेट, अनिल गोयल एडवोकेट उपस्थित थे।
18 दिसंबर 2010
बाल-बाल बचे डीएसपी
डबवाली (लहू की लौ) जीटी रोड़ रेलवे फाटक पर वीरवार शाम को एक ट्रक डीएसपी डबवाली की गाड़ी से टकरा गया। गाड़ी मामूली नुक्सान हुआ लेकिन चालक इसमें सवार डीएसपी बाल-बाल बच गये।
जीटी रोड़ रेलवे फाटक वीरवार शाम को बन्द था। लगभग आधा घंटे के बाद जैसे ही फाटक खुला तो दोनों साईडों के वाहनों को एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग गई। इसी दौरान बाजार साईड से सायरन बजाती हुई डीएसपी बाबू लाल की गाड़ी भी इस जाम की लपेट में आ गई। इसी दौरान फाटक क्रॉस करता एक ट्रक इस गाड़ी से जा टकराया।
डीएसपी गाड़ी के चालक बघेल सिंह ने बताया कि उसने साईड से आ रहे ट्रक को रूकने का इशारा किया, ट्रक रूक भी गया। लेकिन जैसे ही उनकी गाड़ी क्रॉस करने लगी तो ट्रक चालक ने अचानक ट्रक चला दिया जो गाड़ी में आ लगा। जिससे वे बाल-बाल बच गये। उसने कहा कि ट्रक चालक ने शराब पी रखी थी।
ट्रक चालक सुखजिन्द्र सिंह निवासी सुखदेव सिंह निवासी मलेरकोटला ने बताया कि उसके ट्रक में मूंगफली भरी हुई है। लेकिन व्यापारियों ने उन्हें सुरक्षित मूंगफली पहुंचाने की खुशी में शराब पिलाई। लेकिन वह इस गाड़ी को जल्दबाजी में निकाल कर किलियांवाली बैरियर पर ले जा रहे थे कि फाटक के पास यह हादसा हो गया। सूचना पाकर मौका पर थाना शहर प्रभारी बलवन्त जस्सू अपने दल बल के साथ पहुंच गये।
जीटी रोड़ रेलवे फाटक वीरवार शाम को बन्द था। लगभग आधा घंटे के बाद जैसे ही फाटक खुला तो दोनों साईडों के वाहनों को एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग गई। इसी दौरान बाजार साईड से सायरन बजाती हुई डीएसपी बाबू लाल की गाड़ी भी इस जाम की लपेट में आ गई। इसी दौरान फाटक क्रॉस करता एक ट्रक इस गाड़ी से जा टकराया।
डीएसपी गाड़ी के चालक बघेल सिंह ने बताया कि उसने साईड से आ रहे ट्रक को रूकने का इशारा किया, ट्रक रूक भी गया। लेकिन जैसे ही उनकी गाड़ी क्रॉस करने लगी तो ट्रक चालक ने अचानक ट्रक चला दिया जो गाड़ी में आ लगा। जिससे वे बाल-बाल बच गये। उसने कहा कि ट्रक चालक ने शराब पी रखी थी।
ट्रक चालक सुखजिन्द्र सिंह निवासी सुखदेव सिंह निवासी मलेरकोटला ने बताया कि उसके ट्रक में मूंगफली भरी हुई है। लेकिन व्यापारियों ने उन्हें सुरक्षित मूंगफली पहुंचाने की खुशी में शराब पिलाई। लेकिन वह इस गाड़ी को जल्दबाजी में निकाल कर किलियांवाली बैरियर पर ले जा रहे थे कि फाटक के पास यह हादसा हो गया। सूचना पाकर मौका पर थाना शहर प्रभारी बलवन्त जस्सू अपने दल बल के साथ पहुंच गये।
जन्म प्रमाण पत्र के बदले मांगी रिश्वत
डबवाली (लहू की लौ) गांव अलीकां के युवक ने डबवाली के सामान्य अस्पताल के हैल्थ सुपरवाईजर पर जन्म प्रमाण पत्र बनवाने की एवज में सुविधा शुल्क का आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत एएमओ डबवाली को की है।
गांव अलीकां के शुकरपाल सिंह पुत्र दलौर सिंह ने बताया कि उसने अपने बड़े भाई गुरपाल सिंह, भांजे गुरमेल सिंह पुत्र जगसीर का जन्म प्रमाण पत्र बनवाना था। इसके लिए उसने सभी आवश्यक कार्यवाही पूरी करके फाईलों को डबवाली सामान्य अस्पताल के हैल्थ सुपरवाईजर दर्शन सेठी को प्रमाण पत्र बनाने के लिए दे दी। लेकिन सेठी पहले तो चक्कर लगवाता रहा। लेकिन बाद में बुधवार को 500 रूपये प्रति जन्म प्रमाण पऋ की मांग करने लगा और कहने लगा कि इसमें सभी प्रकार की फीस आ जायेगी। इस संबंध में शुक्रवार को शिकायतकर्ता ने डबवाली सामान्य अस्पताल के एसएमओ विनोद महिपाल को शिकायत देकर इंसाफ की गुहार लगाई है। इस सन्दर्भ में दर्शन सेठी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 5 दिन पहले उनके पास शुकरपाल सिंह दो फाईलें लेकर आया था। लेकिन व्यस्तता के चलते उसका काम समय पर नहीं हो सका। उसने मात्र 35 रूपये प्रति फाईल सरकारी फीस ही मांगी थी न कि 500 रूपये प्रति फाईल।
एसएमओ विनोद महिपाल ने बताया कि उपरोक्त शिकायत के आधार पर 7 दिन के भीतर हैल्थ सुपरवाईजर दर्शन सेठी से जवाब मांगा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि सेठी की उनके पास मौखिक रूप से पहले भी काफी शिकायतें आयी हैं लेकिन इसे समझाने पर भी इसमें कोई सुधार नहीं हुआ।
गांव अलीकां के शुकरपाल सिंह पुत्र दलौर सिंह ने बताया कि उसने अपने बड़े भाई गुरपाल सिंह, भांजे गुरमेल सिंह पुत्र जगसीर का जन्म प्रमाण पत्र बनवाना था। इसके लिए उसने सभी आवश्यक कार्यवाही पूरी करके फाईलों को डबवाली सामान्य अस्पताल के हैल्थ सुपरवाईजर दर्शन सेठी को प्रमाण पत्र बनाने के लिए दे दी। लेकिन सेठी पहले तो चक्कर लगवाता रहा। लेकिन बाद में बुधवार को 500 रूपये प्रति जन्म प्रमाण पऋ की मांग करने लगा और कहने लगा कि इसमें सभी प्रकार की फीस आ जायेगी। इस संबंध में शुक्रवार को शिकायतकर्ता ने डबवाली सामान्य अस्पताल के एसएमओ विनोद महिपाल को शिकायत देकर इंसाफ की गुहार लगाई है। इस सन्दर्भ में दर्शन सेठी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 5 दिन पहले उनके पास शुकरपाल सिंह दो फाईलें लेकर आया था। लेकिन व्यस्तता के चलते उसका काम समय पर नहीं हो सका। उसने मात्र 35 रूपये प्रति फाईल सरकारी फीस ही मांगी थी न कि 500 रूपये प्रति फाईल।
एसएमओ विनोद महिपाल ने बताया कि उपरोक्त शिकायत के आधार पर 7 दिन के भीतर हैल्थ सुपरवाईजर दर्शन सेठी से जवाब मांगा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि सेठी की उनके पास मौखिक रूप से पहले भी काफी शिकायतें आयी हैं लेकिन इसे समझाने पर भी इसमें कोई सुधार नहीं हुआ।
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