10 सितंबर 2010

गुरदीप 'हीराÓ को इंसाफ मिलने की उम्मीद

डबवाली (लहू की लौ) गांव पन्नीवाला रूलदू का हीरा क्या एक बार फिर खुली हवा में सांस ले सकेगा? इस प्रश्न का उत्तर तो प्रशासन के आला अधिकारी ही दे सकते हैं। लेकिन सबकुछ मालूम होते हुए भी वे अनजान बने हुए हैं। लेकिन हीरा इंसाफ मिलने की उम्मीद लिए हुए जी रहा है।
उपमंडल डबवाली के गांव पन्नीवाला रूलदू का गुरदीप 'हीराÓ  पिछले 18 वर्षों से जंजीरों में बंधा है। हीरा को जो बीमारी है उसे साईंस के विशेषज्ञ लाईलाज नहीं मानते हैं। इलाज के बाद हीरा आजाद पंछी की तरह खुली हवा में अपने पंख फैलाकर उड़ सकता है। लेकिन यह तभी संभव हो सकता है, जब प्रशासन उसके प्रति संजीदा हो और उसका उपचार करवाए। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि प्रशासन ने आज तक हीरा की ओर कदम नहीं बढ़ाया है। यहां बता दें कि गुरदीप उर्फ हीरा भाइयों में से सबसे छोटा है। उसकी उम्र 35 वर्ष हो चुकी है। बाल्यकाल से ही हीरा किसी से कुछ नहीं कहता था। स्कूल से वापिस घर आने के बाद वह गुमसुम सा घर के एक कोने में बैठा रहता। जैसे-तैसे उसने गांव के सरकारी स्कूल से पांचवी पास की। लेकिन 6वीं में प्रवेश पाते ही उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। जवानी में पांव रखते ही उसे न जाने क्या हुआ वह घर के सदस्यों से बदसलूकी करने लगा। इसी दौरान हीरा के पिता कौर सिंह की हृदय घात से मौत हो गई। वे सिंचाई विभाग में कार्यरत थे। पिता की मौत के बाद हीरा और तनाव में रहने लगा। वह परिवार के सदस्यों से मारपीट भी करने लगा। बिना बताए वह घर से दूर जाने लगा। सूचना मिलने पर परिवार के सदस्य उसे ढूंढकर घर वापिस लाते। हीरा का चैकअप सिरसा और बठिंडा के डॉक्टरों को भी करवाया। डॉक्टरों की सलाह थी कि हीरा मानसिक रूप से बीमार है। उसे घर में ही रखें।
30 अगस्त को इस मामले में एसएमओ डॉ. विनोद महिपाल से पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि हीरा की पूरी मदद की जाएगी। जिला सिरसा में कोई भी मनोरोग चिकित्सक नहीं है। इसके चलते हीरा को रोहतक में भेजा जाएगा। अस्पताल की ओर से रोहतक लेजाने के लिए उसे एम्बूलैंस उपलब्ध करवाई जाएगी।

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