10 नवंबर 2009

न्याय के लिए भटकते-भटकते थक चुके हैं, जो मिला वही अच्छा....

डबवाली (लहू की लौ) 14 वर्षों से न्याय के लिए लड़ते-लड़ते अग्निकांड पीडि़तों में से कुछ तो वृद्ध होकर इतना थक चुके हैं कि वे इस बात से संतुष्ट है कि जो निर्णय अदालत ने दे दिया, वे उन्हें मान्य है और जो अदालत ने मुआवजा घोषित किया, उसी से वे संतोष करने को मजबूर हैं।
आंखों में आंसू लिये करीब 72 वर्षीय वृद्ध फोटोग्राफर रोशन लाल आहूजा 23 दिसम्बर 1995 के अग्निकांड को याद करते ही दहल उठते हैं और कहते हैं कि इस कांड ने उसके दो होनहार युवा बच्चे कील लिये और पिछले 14 वर्षों से वह अदालत में न्याय की लड़ाई लड़ते-लड़ते अब तो इतने थक चुके हैं कि उन्हें अदालत जो भी मुआवजा का फैसला दे देगी, उसी से ही संतोष कर लेंगे। अब उनकी उम्र भी अधिक नहीं रही है और बच्चे तो जा ही चुके हैं। एक पोता था, उसे उसकी पुत्रवधू अपने साथ ले गई।
इधर अग्निकांड में आकर अपनी जवानी गंवा चुकी गीता रानी के पिता अमर लाल भी यही कहते हैं कि वे भी लड़ाई लड़ते-लड़ते थक चुके हैं। उनकी बेटी अपाहिज होकर घर बैठी है। न तो सरकार ने और न ही डीएवी ने उसकी बेटी को नौकरी दी। अपाहिज होने के कारण फिलहाल उसकी शादी भी कहीं नहीं हो पाई है। अदालत ने जो भी फैसला दिया है उससे वे संतुष्ट है और संतोष करने के अतिरिक्त उनके पास ओर कोई राह भी नहीं है।
अग्निकांड पीडि़त विनोद बांसल से जब इस संदर्भ में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि अदालत ने जो निर्णय दिया है, उससे उन्हें कुछ न्याय तो मिला है। हालांकि लम्बे समय के बाद न्याय मिल पाया है। फैसले को पढऩे और अपने साथी अग्निकांड पीडि़तों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करेंगे।
अग्निकांड पीडि़त सुच्चा सिंह भुल्लर का कहना है कि अदालत ने न्याय की उम्मीद तो जगाई है और वे भी फैसले को पढऩे के बाद ही अपनी राय इस पर दे सकेंगे।

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