24 दिसंबर 2009

अभी भी नहीं लिया किसी ने सबक

डबवाली (लहू की लौ) डबवाली अग्निकांड को हुए करीब 14 वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन अभी तक इस कांड के प्रभावित लोगों के जख्मों पर किसी ने भी मरहम लगाने का प्रयास नहीं किया है। हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि 12 वर्ष के बाद रूढी की भी सुनी जाती है और 14 वर्ष का वनवास काटकर प्रभु श्री राम भी अयोध्या लौट आये थे। लेकिन अग्निकांड को हुए 14 वर्ष होने के बावजूद भी आज तक न तो किसी राजनीतिक ने सुध ली है और न ही लोगों या प्रशासन ने कोई सबक सीखा है।
डबवाली अग्निकांड 23 दिसम्बर 1995 को घटित हुआ था। इससे पूर्व और इसके बाद आज तक इतना बड़ा अग्निकांड दुनिया में कहीं घटित नहीं हुआ और ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसा हो भी ना। डबवाली अग्निकांड में 442 बच्चे, महिला-पुरूष, युवा और वृद्ध शहीद हुए थे। उस समय की सरकार ने इस कांड से सबक लेते हुए यह घोषणा की थी कि डबवाली के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को सिविल अस्पताल बना दिया जाएगा और यहां पर बर्न यूनिट भी स्थापित किया जाएगा। इस दौरान कई सरकारें बदली लेकिन किसी ने भी इन घोषणाओं पर ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप अग्निकांड में घायल हुए बच्चों को अब भी अपने इलाज के लिए दिल्ली, चण्डीगढ़ और रोहतक जाना पड़ रहा है। अभी भी कुछ बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें इलाज करवाते-करवाते शायद उम्र ही बीत जाये।
अग्निकांड को देखते हुए एतहात के तौर पर सरकार ने यह भी प्रावधान किया था कि जब भी कहीं शादी समारोह होगा तो वहां पर लगने वाले टैण्ट इस हिसाब से लगाये जाएंगे कि उनमें आने-जाने के लिए चार प्रवेश द्वार होने जरूरी हैं और टैण्ट के लिए फायर ब्रिगेड की मंजूरी भी जरूरी है। यहीं नहीं बल्कि आग जलाने का काम टैण्ट से काफी दूरी पर होगा। लेकिन इन सब नियमों को धत्ता बताकर कार्यक्रम पहले की तरह ही चल रहे हैं। भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में अग्नि से बचाव के लिए कोई प्रबन्ध नहीं किये जा रहे हैं।
अग्निकांड पीडि़त रमेश सचदेवा ने कहा कि सरकार ने डबवाली के सीएचसी को जनरल अस्पताल बनाने की घोषणा तो कर दी। लेकिन अभी तक इसे जनरल अस्पताल का दर्जा नहीं मिला है। 100 बैड के अस्पताल को हाल ही में 60 बैड का तो कर दिया गया है। लेकिन न तो पूरे बैड हैं और न ही 60 बैड वाली सुविधाएं।
बर्न यूनिट की स्थापना अभी तक नहीं की गई। फिजियोथेरेपिस्ट भी नियुक्त नहीं किया गया। घायलों की हालत यह है कि गर्मी में उनके जख्म फिर से संजीव हो उठते हैं और इलाज के लिए उन्हें दिल्ली, चण्डीगढ़ और रोहतक जाना पड़ता है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जाहिर किया कि डीएमसी और सीएमसी लुधियाना के अस्पतालों को घायलों के इलाज के लिए नामजद करने के बाद अब लिस्ट से काट दिया गया है। जबकि डीएमसी और सीएमसी में ही अधिकांश मरीज अपना इलाज करवाते रहे हैं और वहां के डॉक्टर जो इलाज करते थे, उससे परिचित हैं। उन्होंने मांग की कि इन अस्पतालों को भी पुन: सूचिबद्ध किया जाये।
डबवाली के सरकारी अस्पताल की हालत तो यह है कि यहां पर न तो एक्स-रे और न ही अल्ट्रासाऊंड स्पैशलिस्ट है। हालांकि अल्ट्रासाऊंड मशीन को आये करीब 8 वर्ष हो चुके हैं। यहां के अस्पताल में फिजियोथेरेपी के लिए जो सामान मंगवाया गया था, वह भी नदारद है। सचदेवा ने मांग की है कि डबवाली के सिविल अस्पताल में बर्न यूनिट स्थापित करके किसी बर्न स्पैशलिस्ट को नियुक्त किया जाये और घायलों का इलाज डबवाली में ही हो।
अग्निकांड में अपने दोनों हाथ गंवा चुके उमेश कुमार पुत्र परमानन्द मित्तल के अनुसार जब यह कांड हुआ, उस समय वह 14 वर्ष का था। अब उसकी आयु 28 वर्ष है। हाथों से विकलांग होते हुए भी, उसने जैसे-तैसे 12वीं पास कर ली। अब वह नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा है। अग्निकांड की स्मृति के समय 23 दिसम्बर को जब भी राजनीतिक श्रद्धांजलि देने आते हैं, तो उन्हें नौकरी का आश्वासन देते हैं। बाद में अग्निकांड पीडि़तों को भूल जाते हैं और वह पिछले करीब 8 सालों से देखता आ रहा है कि अग्निकांड पीडि़तों के साथ राजनीतिक हीन भावना के साथ पेश आते हैं और केवल टॉफी देने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करते। घायलों की हालत यह है कि वह जीवित भी मुर्दे के समान हैं।
14 वर्ष पूर्व हुए अग्निकांड से लगता है कि सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा। यही कारण है कि डबवाली में दो फायर ब्रिगेड स्टेशन होने के बावजूद भी इन फायद ब्रिगेड स्टेशनों पर स्टॉफ का अत्यंत अभाव है। फायर ब्रिगेड सूत्रों के अनुसार दोनों फायर ब्रिगेड स्टेशनों के 4 वाहनों पर करीब 76 जनों का स्टॉफ चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में दोनों फायर स्टेशनों पर केवल 21 का ही स्टॉफ है। यहां तक की इन फायर स्टेशनों के पास आवश्यक सामान भी नहीं है। पिछले दिनों रामां मण्डी में आग बुझाने के लिए डबवाली नगरपालिका की फायर ब्रिगेड को भेजा गया था। जिसको दंगाईयों ने क्षतिग्रस्त कर दिया और इसके बाद नई गाड़ी मांगने पर सिरसा से एक गाड़ी भेजी गई। जिसकी हालत यह है कि उसमें से पानी ही टपक रहा है।

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