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Lahoo Ki Lau

युवा दिलों की धड़कन, जन जागृति का दर्पण, निष्पक्ष एवं निर्भिक समाचार पत्र

25 दिसंबर 2010

15 वर्ष बाद भी हरे हैं नेहा के जख्म

डबवाली (लहू की लौ) डबवाली अग्निकांड के पंद्रह साल बाद भी इस कांड के शिकार हुए कई बच्चों के जख्म अभी भी वैसे के वैसे हैं। जैसे पंद्रह साल पूर्व थे। युवा अवस्था में भी प्रभावित बच्चे ही नजर आ रहे हैं। फिलहाल तो मां-बाप इनकी संभाल कर रहा है। लेकिन भविष्य में उनकी संभाल कौन करेगा। विशेषकर उन परिस्थितियों में जब वह लड़की है।
अग्निकांड में आई डीएवी की चौथी कक्षा की नेहा पंद्रह साल बाद भी जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। उसकी हालत उसका दर्द ब्यां कर रही है। पंद्रह साल पूर्व हुए अग्निकांड के बाद नेहा का परिवार चण्डीगढ़ चला गया था। डबवाली कोर्ट परिसर में अपने पिता संजय मिढ़ा के साथ मुआवजा राशि लेने आई नेहा की हालत देखकर कोर्ट परिसर में खड़े सैंकड़ों लोगों की आंखे नम हो गई। अग्निकांड में स्वयं झुलसे संजय मिढ़ा (45) ने बताया कि अग्निकांड से पूर्व उसका डबवाली में ट्रेक्टरों का अच्छा कारोबार था। लेकिन वह और उसकी बेटी नेहा मिढ़ा इस अग्निकांड का शिकार हुई। तभी से उनके पांव नहीं लगे और उन्हें यहां चण्डीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा। उनके अनुसार उनकी बेटी नेहा उस समय डीएवी में चौथी कक्षा की छात्रा थी और आठ वर्ष की थी। इन दिनों उसकी आयु 23 वर्ष है।
मिढ़ा के अनुसार 23 दिसंबर 1995 की घटना को पंद्रह साल बीत चुके हैं। लेकिन नेहा के जख्मों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। उसकी हालत इतनी नाजुक है कि वह न तो उठ-बैठ सकती है और न ही आगे पढऩे के लायक रही है। वह कमजोर इतनी हो चुकी है कि डॉक्टर ने उसकी प्लास्टिक सर्जरी करने से भी इंकार कर दिया है। आयु 23 वर्ष होने के बावजूद भी उसका शारीरिक विकास रूक जाने से वह छोटी बच्ची ही लग रही है। उन्हें चिंता है तो केवल यहीं कि इस समय तो वे उसे संभाल रहे हैं। लेकिन उनके बाद नेहा की परवरिश कौन करेगा।
अग्निकांड त्रासदी का शिकार इस नन्हीं बच्ची की जिन्दगी कैसे बीतेगी और इसको संसार में जीने का अधिकार दे रखने के लिए सरकार इसके लिए क्या करेगी, यह प्रश्न अब भी स्वयं नेहा के जहन में हिलोरे खा रहा है।

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