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युवा दिलों की धड़कन, जन जागृति का दर्पण, निष्पक्ष एवं निर्भिक समाचार पत्र

04 जून 2010

चौपाल पर चुनाव के चर्चे

बनवाला (जसवन्त जाखड़) इन दिनों जिला सिरसा में जिला परिषद, ब्लाक समिति और पंचायत के चुनाव का प्रचार जोरों पर है। हालांकि 6 जून को प्रत्याशियों की पोल मत पेटियां तथा ईवीएम मशीनें खोल देंगी।
गांव बनवाला में जिला परिषद, ब्लाक समिति और पंचायत चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशी अपनी-अपनी बात मतदाताओं के समक्ष रखने के लिए आ रहे हैं। इस बार ग्रामीण मतदाता उतना भोला नहीं है, जितना कि प्रत्याशी समझते हैं। वह हर बात को समझता है, भले ही उसे रिझाने के लिए शराब की ही क्यों न पिलाई जा रही हो। मतदाता इस बात को लेकर चल रहा है, कि अगर प्रत्याशी इस मौके पर उसे खिलाते-पिलाते हैं, तो खा पी लेना चाहिए। वोट तो अपने मन से ही देनी है। जब ये जीत जाएंगे तब उनकी सुनवाई कहां होने वाली है।
गांव के देवीलाल चौक पर बैठे हुए युवक प्रत्याशियों का प्रचार सुनने के बाद अक्सर बड़े ही मजे से बाते करते हैं कि यहां विकास की बात तो सभी करने आ रहे हैं, लेकिन वायदे पर खरा कौन उतरेगा, ये तो उसे अजमाने पर ही पता चल पाएगा। वे यह भी सोचते हैं कि आखिर वोट किसको दें। आपस में विचार-विमर्श तो करते हैं, लेकिन फिर मन को मसोस कर कहते हैं कि चलो 6 जून आएगी तब यहां मन करेगा, वहां मोहर लगा देंगे।
इसी प्रकार चौपाल में बैठे हुए वृद्ध भी हुक्का गुडग़ुड़ाते हुए अक्सर इन दिनों चुनाव की ही बात करते हैं, चूंकि मौसम भी तो चुनाव है, अब बेचारे हाड़ी काटकर कुछ समय आराम के साथ-साथ प्रत्याशियों के भाषण सुनकर मंनोरजन भी कर रहे हैं। इन चुनावों के मौसम में वृद्ध अपनी बेटों को यह सुझाव देना भी भूल गये हैं कि बेटा हाड़ी के बाद अब सावनी भी आनी है और खेत में जाकर इसकी बिजाई भी करनी है और आगे की भी सोचनी है।
भूप सिंह टाड़ा  का कहना है कि गांव का विकास रूका हुआ है, वे तो उसी को वोट देंगे, जो गांव की और भाईचारे की बात करेगा।
सरवन गोदारा  का कहना है कि कैसा जमाना आ गया है, सरपंच पद के लिए भी एमएलए जैसा प्रचार करना पड़ रहा है। भोंपू पूरा दिन गांव में बजते हैं और गांव की शांति भंग हो रही है, यह भी पता नहीं, कि जीतकर ये लोग गांव का कितना विकास करवाएंगे।
प्रेम भांभू  का कहना है कि प्रत्याशी अब तो बड़े-बड़े वायदे कर रहे हैं, लेकिन जब जीत हासिल होगी तो वायदे तो भूल जाएंगे, मतदाता को भी भूल जाएंगे। फिर कहेंगे हमें तो वोट डाला ही नहीं, हम तुम्हारे वोट से कहा बनें हैं।
रामकुमार का कहना है कि चुनाव में वोट डालने का अधिकार उसे मिल गया है और वह तो अपने वोट को पूरी तरह सोच-समझकर ही प्रयोग करेगा। उसका तो लक्ष्य एक ही है जो गरीब की सुनेगा, वह उसको जरूर वोट देगा।
हरबन्स जाखड़ का कहना है कि जीते कोई भी लेकिन वह अपने कत्र्तव्य को याद रखे। सबकी सुनें और सबको सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं का लाभ दे।

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