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29 अक्तूबर 2011

पेस्टीसाईड से तैयार किया जा रहा है केला


डबवाली | हम केला के रूप में फल नहीं जहर खा रहे हैं। जी हां, यह बात सौ फीसदी सच है। केला पकाने में जहर का प्रयोग किया जा रहा है। कच्चे केले वातानुकूलित कमरों में रखकर उचित ताप पर पकाए जा रहे हैं। इससे पूर्व रसायनिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। महज 48 घंटे में हरे रंग से पीले रंग में आए केले को मार्किट में उतारा जा रहा है। रसायनिक प्रक्रिया में प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर का प्रयोग किया जाता है। हरियाणा बागवानी तथा स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस केले को जहर करार दिया है।
कच्चे केले को पकाकर बाजार में बेचने वाली फर्मों ने अपने गोदाम साथ लगते पंजाब के जिला श्रीमुक्तसर साहिब के गांव किलियांवाली तथा जिला बठिंडा के गांव नरसिंह कलोनी में बना रखे हैं। जो गुजरात, महाराष्ट्र तथा आंध्रप्रदेश से सस्ते दामों पर कच्चा केला मंगवाती है। हरियाणा में टैक्स भरे बिना चोर रास्तों से इन्हें गोदामों तक पहुंचाया जाता है। कच्चा माल पहुंचते ही गोरखधंधे से जुड़े लोग उसे पकाने में जुट जाते हैं। केला पकाने में पेस्टीसाईड की दुकानों में मिलने वाले प्लांट ग्रोथ रेगुलेटरों को प्रयोग में लाया जाता है।
इस विधि से बनता है केला
इथीगोल्ड एक प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर है। इस क्षेत्र में लगे गोदाम ज्यादातर इसी का प्रयोग करते हैं। टब में पानी इक्ट्ठा किया जाता है। जिसमें इथीगोल्ड (पौध बाढ़ नियंत्रक) मिलाकर रसायन तैयार कर लिया जाता है। इस रसायन में कच्चे केलों को भिगोकर करेटों में रखा जाता है। गोदामों में एल्युमिनियम शीट का प्रयोग करके एक चैम्बर तैयार होता है। इस चैम्बर में तापमान को कंट्र्रोल में रखने की पूरी व्यवस्था स्थापित होती है। चैम्बर में रसायन से भीगे केलों की करेटों को रख दिया जाता है। रसायनिक क्रिया और वातावरण के प्रभाव में हरे रंग का केला 48 घंटों के भीतर तैयार होकर मार्किट में आ जाता है। यह केला डबवाली शहर के साथ-साथ पंजाब की रामां मण्डी, मलोट, गिदड़बाहा में सप्लाई होता है।
डबवाली तथा साथ लगते पंजाब क्षेत्र में केले की मांग है। गोदामों को कच्चा केला महज 8 से लेकर 11 रूपए प्रति किलो तक उपलब्ध होता है। 48 घंटों के भीतर पकने के बाद इसका रेट दोगुणा हो जाता है। फल विक्रेता के पास पहुंचते-पहुंचते रेट बढ़कर 30 रूपए किलो हो जाता है। क्षेत्र में प्रतिदिन 300 क्विंटल केले की खपत हो रही है।
बागवानी विकास अधिकारी अमर सिंह पूनियां के अनुसार प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (पौध बाढ़ नियंत्रक) एक जहर है। ये कई नामों से बाजार में बिकता है। इंसानी स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले लोग इसे फल पकाने में प्रयोग करने लगे हैं। कच्चे केले को इसमें भिगोने के बाद मात्र 5 घंटों के दौरान यह काम करना शुरू कर देता है। इसकी हीट से केला कुछ ही घंटों में पककर तैयार हो जाता है। हीट पर कंट्रोल करने के लिए केलों को वातानुकूलित कमरों में रखा जाता है। इस विधि से तैयार किया गया केला फल न रहकर जहर बन जाता है। इसे खाने वाले इंसान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडऩा लाजिमी है।
सरकारी अस्पताल के कार्यकारी एसएमओ डॉ. एमके भादू के अनुसार केले को उपरोक्त ढंग से पकाना स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। इस विधि से तैयार किया गया केला विष बन जाता है।

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