खेत में मिट्टी को स्वस्थ व उपजाऊ बनाए रखने की ओर ध्यान देना जरुरी : आशीष मैहता
डबवाली (लहू की लौ)पराली को जलाने से पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति तो विकराल रूप धारण करती ही है साथ ही खेत में मिट्टी की सेहत भी खराब होती है, भूमि की उर्वरकता में कमी आती है। इसलिए सरकार ही नहीं बल्कि कृषि विशेषज्ञ भी पराली प्रबंधन के अलग-अलग तरीके बताकर किसानों को उन्हें अपनाने के लिए जोर दे रहे हैं। अनेक किसान इन तरीकों से खेतों में बची पराली को जलाने की बजाय उसका सदुपयोग कर अच्छी फसलों से लाभ भी कमा रहे हैं। ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान आशीष मैहता भी जो गांव सुकेराखेड़ा में अपनी कृषि भूमि पर पिछले 8 वर्षों से फसल अवशेष प्रबंधन पद्धतियों का अभ्यास कर रहे हैं।
आशीष मैहता के मुताबिक उन्होंने फसल अवशेष प्रबंधन पद्धति अपना कर मिट्टी की छिद्रता, कार्बन की मात्रा में वृद्धि और सूक्ष्मजीवी गतिविधि में अत्यधिक वृद्धि में उल्लेखनीय अंतर महसूस किया है। इससे धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ पौधों की शक्ति में वृद्धि हुई है। पहले की तुलना में कीटों के हमले और अन्य बीमारियां कम हुई हैं। उन्होंने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य किसी भी देश की राष्ट्रीय संपत्ति है और आंत का स्वास्थ्य सीधे मिट्टी के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। ऐसे में मिट्टी के स्वास्थ्य के रखरखाव पर ध्यान जरुर दिया जाना चाहिए। हमें फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपलब्ध तकनीकों पर काम करना चाहिए और राष्ट्र के हित में ऐसी तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए।
उन्होंने बताया कि वे अपनी कृषि भूमि पर हैप्पी सीडर तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जो फसल अवशेष प्रबंधन के लिए किफायती और प्रभावी समाधान प्रदान करती है। हैप्पी सीडर एक नो-टिल प्लांटर है, जिसे ट्रैक्टर के पीछे खींचा जाता है, जो बिना किसी पूर्व बीज तैयारी के सीधे पंक्तियों में बीज बोता है। यह ट्रैक्टर के पीटीओ के साथ संचालित होता है और तीन-बिंदु लीकेज के साथ इससे जुड़ा होता है। इसमें एक स्ट्रॉ मैनेजिंग चॉपर और एक जीरो टिल ड्रिल होता है जो पिछली फसल के अवशेषों में नई फसल बोना संभव बनाता है। फ्लेल प्रकार के सीधे ब्लेड स्ट्रॉ मैनेजमेंट रोटर पर लगे होते हैं जो बुवाई के दांत के संपर्क में आने वाले ठूंठ को काटते हैं। यह पिछली फसल के अवशेषों को बोए गए खेत में गीली घास के रूप में जमा करता है। मुख्य रूप से इसका उपयोग उत्तर भारत में धान की कटाई के बाद गेहूं बोने के लिए किया जाता है।
आशीष मैहता ने बताया कि धान की पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और मीथेन जैसे ग्रीन हाउस गैसों के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर का भारी मात्रा में उत्सर्जन होता है।
उन्होंने बताया कि फसल की बुवाई और अंकुरण में समस्या से बचने व हैप्पी सीडर से कुशलतापूर्वक कार्य लेने के लिए धान की कटाई करते समय एक सुपर एसएमएस (सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) की आवश्यकता होती है, जो अवशेषों को काटकर खेत में समान रूप से फैला देता है। निस्पंदन को बढ़ाकर और वाष्पीकरण को कम करके मिट्टी की नमी को सुरक्षित रखता है, तापमान को नियंत्रित करता है। अनेक प्रकार की क्रियाओं के साथ कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को धीमा करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, जिससे कार्बन हानि कम होती है। आशीष मैहता ने सरकार से अपील की है कि शोध करके फसल अवशेष प्रबंधन पद्धतियों को ओर ज्यादा सुगम बनाया जाए ताकि किसान इसे अपना सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें