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Lahoo Ki Lau

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22 नवंबर 2024

डबवाली में 34000 क्विंटल धान बिकने की इन्तजार में

15 नवंबर तक फसल मंडी में लाने वाले किसानों का सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदे धान-कामरा

डबवाली (लहू की लौ) डबवाली में लगभग 34000 क्विंटल धान  बिकने की इन्तजार में है। हरियाणा सरकार द्वारा एमएसपी पर 2320/-रुपये प्रति के हिसाब से जितना क्षेत्र मेरी फसल मेरा ब्यौरा पर दर्ज है, लेने का लक्ष्य रखा था और खरीद की अंतिम तिथि 15 नवंबर थी। हैफेड और डीएफसी ने यह खरीद करनी थी लेकिन अंतिम तारीख को 58000 क्विंटल मे से लगभग 24000 क्विंंटल के लगभग खरीद हुई बाकी 34000 क्विंंटल की खरीद नहीं की गई यह बहाना बनाकर कि डबवाली के शैलरों का कोटा पूरा हो गया है।

डबवाली आढ़ती एसोसिएशन के पूर्व प्रधान व हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के अध्यक्ष व आढ़ती ऐसोसिएशन के प्रदेश प्रैस सचिव गुरदीप कामरा दर्दी ने  इस पर कहा कि जब सरकार को पहले पता होता है कि कितना धान मंडी में आएगा तो समय रहते इसके लिए क्यों नहीं योजना बनाई गई जो किसान 15 तारीख तक मंडी में अपना धान ले आए उनका धान समर्थन मूल्य पर सरकार को खरीदना चाहिए। आगे दर्दी ने इस बात की जानकारी डीएफएससी मुकेश कुमार को कर दी गई है और उन्होंने इस बारे में अपनी जांच भी की है। इसके अलावा प्रदेश ऐसोसिएशन व सरकार के उच्च अधिकारियों के संज्ञान में भी यह बात पहुंचा दी है। अब सरकार के पाले में यह है कि वो क्या निर्णय लेती है, यदि अभी भी खरीद नहीं की तो कामरा ने कहा कि सुबह जिन किसानों की अभी धान नहीं बिकी उनसे मीटिंग कर आगे रणनीति तय करेंगें।

सरकार से मांग की एक दिन के लिए उन किसानों की.समर्थन मूल्य पर खरीद जरूर करें जो 15 नवंबर से पहले फसल मंडी में ले आऐ थे। ताकि अपनी फसल बेचने में पेरशानी ना हो। ज्ञात रहे साथ लगते पंजाब प्रदेश में ये ही खरीद 30 नवंबर तक जारी रहेगी। कामरा ने कहा कि अगर सरकार ने जल्द फैसला न लिया तो किसान और आढ़तिया मिल कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।

सीएम के जहाज के साथ उड़े अधिकारियों के वायदे

आज भी इन्तजार में दिन निकल गया कि खरीद होगी लेकिन दिन भर सभी अधिकारी यह कहते दिखे थोड़ी देर में आदेश आ सकता है, खरीद होगी। ज्ञातव्य रहे मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जब तक सिरसा में रहे तब तक सभी अधिकारी यह कहते रहे जरूर खरीद होगी। लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री हवाई जहाज में बैठे, अधिकारियों के वायदे भी जहाज के साथ उड़ गए। अब अफसरों की भाषा में कुछ अलग रवैया है।

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