जोनल गेम्स हो जाते हैं 2500 रूपए में
डबवाली (लहू की लौ) जिला सिरसा में इन दिनों जोनल गेम्स करवाई जा रही हैं। जिसमें शिक्षा विभाग मेजबान स्कूल को 2500 रूपए की राशि चूना छिड़कने से लेकर टैण्ट और पानी की व्यवस्था के लिए देता है। इतनी कम राशि के चलते खेल मैदान स्तरीय रूप से तैयार नहीं होता, ऐसे में खेलें खिलाडिय़ों के लिए मजाक बन कर रह गई हैं। खिलाडिय़ों में उत्साह की अपेक्षा हीन भावना भर रही है।
शिक्षा विभाग की ओर से जिला में खेल मुकाबले करवाए जा रहे हैं। लेकिन जिन मैदानों पर ये मुकाबले हो रहे हैं, वे स्तर हीन है। कबड्डी हो या फिर खो-खो का खेल खिलाड़ी चोटिल हो रहे हैं। लेकिन इसके पीछे बड़ा कारण विभाग की ओर से स्कूल प्रबंधक को खेलों के लिए मिलने वाला भाड़ा है। खेल दो दिन चलें या फिर तीन दिन विभाग मात्र 2500 संबंधित स्कूल को खेलों के प्रबंधन के लिए उपलब्ध करवाता है। इन रूपयों से मैदान को खेलों के योग्य बनाना होता है। साथ में चूना से लेकर कुर्सी, स्टेशनरी, पानी, टैण्ट आदि की व्यवस्था करनी होती है। पिछले दिनों हुई लड़कों की जोनल गेम्स पर नजर दौड़ाई जाए तो अकेले खालसा स्कूल में करीब 500 बच्चों ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की। आसमान से बरसती आग के बीच पानी ही उनका एकमात्र सहारा बना। लेकिन पानी का एक टैंक 400 से लेकर 500 के बीच है। एक दिन में पानी के तीन टैंक खप जाते हैं। दो दिनों में सरकारी भाड़े से ऊपर खर्च हो जाता है। ऐसे में युवा खिलाडिय़ों को खेल स्तरीय मैदान, टीम इंचार्ज को स्टेशनरी, प्रतियोगिताओं के लिए चूना तथा गर्मी से बचने के लिए सिर पर टैण्ट मिलना मुश्किल है।
खिलाडिय़ों ने बताया कि खेल मैदान के चारों और टैण्ट की व्यवस्था होनी चाहिए। चूंकि प्रतियोगिता में भाग लेने आए खिलाडिय़ों को अपनी गेम के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। इतने समय में वह चिलचिलाती धूप से हार जाता है। दूसरा गेम का स्थान भी खेलने लायक नहीं होता।
खालसा स्कूल में चल रही जोनल गेम्स में खेल प्रभारी राजन कुमार ने बताया कि उनके मैदान में खिलाडिय़ों को कोई समस्या नहीं आ रही। शिक्षा विभाग की ओर से उपलब्ध करवाए जा रहे पैसे को ठीक ढंग से लगाया जा रहा है। खिलाडिय़ों को कोई दिक्कत न आए इसके लिए विद्यालय अपने स्तर पर भी कार्य करता है।
जोनल गेम्स डबवाली के ईओ भीम सिंह ने बताया कि सरकार की ओर से एक जोनल टूर्नामेंट करवाने पर 2500 रूपए दिए जाते हैं। इतनी राशि में दो दिन की गेम आसानी से हो जाती है। अगर कुछ ज्यादा हो जाए तो विद्यालय अपनी जेब से खर्च कर लेता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें