अब फिर से दहशत में किसान तथा कृषि विभाग, 1993 में चकजालू, रामगढ़ तथा गोरीवाला में नहर किनारे पेड़ों पर बैठ गया था टिड्डी दल

रामगढ़, चकजालू तक पहुंच गई थी टिड्डी
कृषि विभाग से रिटायर्ड बीएओ सुरजीत सहारण ने अक्तूबर 1993 को याद करते हुए बताया कि शाम को सूचना मिली थी कि टिड्डी दल चौटाला सीमा से आएगा। हुआ भी ऐसा, गंगा होते हुए टिड्डी दल रामगढ़, चकजालू, गोरीवाला एरिया में पहुंच गया। अंधेरा हो गया था, इस वजह से नहर के किनारे पेड़ों पर बैठ गया। सूचना मिलने पर गंगा गांव में एसडीओ के साथ दो दर्जन एडीओ पहुंचे थे। स्प्रे के लिए दवा मंगवाई गई थी। हम सुबह की प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे ही सूर्योदय हुआ तो टिड्डी वापिस चौटाला से राजस्थान सीमा में चली गई। इसके बाद हम करीब एक हफ्ते तक टिड्डी के अंडे ढूंढ़ते रहे थे, लेकिन हमें कहीं नहीं मिले। उस समय करीब दो किलोमीटर लंबा झुंड था।
पहले गुलाबी, फिर ब्राऊन, तीसरी अवस्था में पीले रंग की हो जाती है टिड्डी
टिड्डी की तीन अवस्थाएं होती हैं। सबसे छोटे आकार की टिड्डी गुलाबी रंग की होती है। दूसरी अवस्था में इसका रंग ब्राऊन हो जाता है। व्यस्क टिड्डी पीले रंग की होती है। मादा टिड्डी की पहचान है कि उस पर काले धब्बे होंगे। चट्ठा गांव के खेतों में पांच माह पहले जो टिड्डी थी, वह दूसरी अवस्था की है। उसमें से कोई मादा नहीं थी। बताते हैं कि मादा टिड्डी जमीन पर बैठती है, अपने उदर भाग को जमीन की नमी तक 15 सेंटीमीटर तक लेजाकर अंडे देती है।
चौटाला गांव के किसान दया राम ऊलाणिया के अनुसार वर्ष 1993 का भयावह दौर याद आता है। वह 10वीं कक्षा में था। किसी ने शाम को टिड्डी दल देखा। जिसकी लंबाई कई किलोमीटर थी। विद्यालय से छुट्टी कर दी गई, ताकि टिड्डी दल से निपटा जा सकें। उस वक्त ग्रामीणों ने पुलिस चौकी का घेराव कर लिया था। तब जिला प्रशासन अलर्ट हुआ था। दल को देखा जरुर गया था। लेकिन नुकसान नहीं हुआ। संभव है कि हवा का रुख बदलने के कारण वह वापिस चला गया हो।
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