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Lahoo Ki Lau

युवा दिलों की धड़कन, जन जागृति का दर्पण, निष्पक्ष एवं निर्भिक समाचार पत्र

18 जून 2020

देश की आन-बान-शान के लिए शहीद हो गया था छोटू

राजस्थान की सीमा से सटे गांव लोहगढ़ के रहने वाले थे शहीद छोटू सिंह
भारतीय जवानों के अदम्य साहस को दुनियां ने किया था सलाम
डबवाली (लहू की लौ)चीन के इरादे हमेशा नापाक ही रहे हैं। बातचीत से मसला हल करने का राग अलापने वाले 'ड्रैगनÓ ने हमेशा धोखे से वार किया है। भारतीय जवानों ने धोखेबाज चीन को करारा जवाब दिया है। हंसते-हंसते शहीदी पाई है, लेकिन तिरंगा नहीं झुकने दिया। करीब 58 साल पहले चीन भारतीय सीमा में दाखिल हुआ था। पहाड़ी क्षेत्र की चोटियों पर बनी भारतीय चौंकियों को ध्वस्त करते हुए कब्जा जमा लिया था। भारी बर्फवारी के बीच चोटी पर बैठा दुश्मन भारतीय शेरों पर गोली, बारुद दाग रहा था। सीना छलनी होने के बावजूद सैनिक पीछे नहीं हटे। इन सैनिकों में से एक थे जिला सिरसा के उपनगर डबवाली के गांव लोहगढ़ निवासी छोटू सिंह।
जब चीन ने दिया था धोखा
बात 11 नवंबर 1962 की है। उस दौरान छोटू सिंह सिक्ख रेजिमेंट में शामिल थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन केहमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। लेकिन चीनी सैनिकों ने घेराबंदी करने के बाद धोखे से जवान को शहीद कर दिया। 9 दिन बाद 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा दी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जवानों के अदम्य साहस को सराहा गया, तो वहीं चीन की छवि धूमिल हुई। बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए छोटू सिंह का शव घर नहीं पहुंचा था। उसकी वर्दी तथा बिस्तर लेकर सेना के जवान पहुंचे। परिजनों ने वर्दी और बिस्तर पकड़ा, पंजाबी में पूछा-छोटू कित्थे आ। सैनिकों ने जवाब दिया-वो शहीद हो गया है। बताया जाता है कि शहीद छोटू सिंह का परिवार राजस्थान के टोलनगर में चला गया था। अब परिवार राजस्थान की तहसील विजयनगर के गांव 18एसडी में रहता है। शहीद के दो बेटे तथा दो बेटियां हैं। बेटों ने भारतीय फौज में शामिल होने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

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