
लोगों को कैसे ठगा जा रहा है, इसके लिए मास्क को जानना बेहद जरुरी है। मास्क डबल या ट्रिपल लेयर कपड़े या प्लास्टिक का बना होता है। डिस्पोजेबल मास्क का थोक रेट 2 से 3 रुपये है। जबकि मेडिकल स्टोरों पर यह 8 से 10 रुपये में बेचा जा रहा है। इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती। कोरोना के कारण पहली बार लॉक डाऊन हुआ था, तब सरकार ने स्वयं ही डिस्पोजेबल मास्क का उपरोक्त मूल्य निर्धारित किया था। डबवाली के ग्रामीण आंचल को ही लेते हैं, ग्रामीण शहर जाने के लिए मास्क खरीदने सीधा मेडिकल पर जाते हैं और मास्क मांगते हैं। मेडिकल संचालक डबल लेयर डिस्पोजल पकड़ाकर उससे मनमाना दाम वसूल लेता है। यह तो रही ग्रामीण आंचल की बात।
वॉशेबल मास्क के नाम पर ठगी
शहर में स्थिति कोई ज्यादा भिन्न नहीं है। डबवाली की बात करें तो स्थानीय स्तर पर मास्क निर्माता हैं, इसके अलावा पंजाब के लुधियाना से काफी माल शहर में लाया गया। अब भी वॉशेबल मास्क का नाम देकर खूब बेचा जा रहा है। बताते हैं कि 50-60 रुपये तक मास्क बिका। सामने नेट, पीछे मुलायम कपड़े से बना बिना सर्टिफाइड यह मास्क खूब प्रचलित है।
डबल लेयर यह मास्क फिलहाल 15-17 रुपये में बिक रहा है। जोकि निर्माण मूल्य से दुगुनी कीमत है। वहीं सरकार को जीएसटी का चूना लगाया गया। चूंकि ये मास्क बिना बिल, बिना मार्का बिक रहे हैं।
मल्टी नेशनल कंपनियां मैदान में
देसी निर्माताओं के साथ-साथ स्वास्थ्य प्रॉडक्ट बनाने वाली कई मल्टी नेशनल कंपनियों के मास्क भी मैदान में पहुंचे हैं। ये मास्क भी वॉशेबल हैं। मल्टीनेशनल कंपनी की मुहर लगी होने के कारण इनकी कीमत करीब 65 से 70 रुपये है। अनिवार्य होने के कारण लोग रंग-बिरंगे मास्क को खरीदने में खूब रुची दिखा रहे हैं। हालांकि सीधे तौर पर उनकी जेब पर डाका डाला जा रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें